धारावाहिक साल दर साल चलते हैं, इसलिए धारावाहिक देखने से मेरा मोहभंग हो गया था। इनकी कहानी का अंत शीघ्र होता ही नहीं है बल्कि दिन-प्रतिदिन डिस्क्लेमर से मन में कौतूहल रह जाता था कि “अब क्या होगा ?” बहुत एक बार कुछ धारावाहिक बीच से ही बंद हो गए, उनकी कहानी का अंत पता ही नही चला। मैने बचपन में “मेहेर”, “अपराजिता” दिलचस्पी के साथ देखा था और शक्तिमान जोश खरोश के साथ देखा था।
इसके बाद धारावाहिक से रुचि खत्म होने के पीछे मेरा संवेदनशील स्वभाव था कि आखिर कब तक इंतजार करूं कहानी का अंत जानने के लिए। मेरे लिए एक दिन का इंतजार या हफ्ते में एक दिन आने वाले धारावाहिक का इंतजार करना मानों वर्षों से अपनी प्रेमिका के कुछ तो बोल देने का इंतजार रहता हो कि पल पल भारी लगने लगते है।
आनंदी ये नाम इतना प्रसिद्ध था कि धारावाहिक की दुनिया से बहुत दूर रहने के बाद भी इस नाम से मैं भी परिचित था। आनंदी का रियल नेम “प्रत्यूषा” तो मुझे तब पता चला जब धारावाहिक का अंत ही नहीं, बल्कि प्रत्यूषा की जिंदगी की कहानी का अंत हो गया था। इंसान की जिंदगी भी एक धारावाहिक ही है।
जिंदगी के उतार-चढ़ाव और गमगीन हालात से ऊबकर प्रत्यूषा ने अपनी जिंदगी ही खत्म कर ली। प्रत्यूषा साधारण नहीं, बल्कि असाधारण नाम था। उसने जमशेदपुर से जिंदगी के संघर्ष की शुरूआत करके मुंबई की रंगीली दुनिया में सफलता अर्जित कर ली थी। देश के कोने-कोने की आम जनता प्रत्यूषा को आनंदी के नाम से अधिक जानती थी।
प्रत्यूषा की जिंदगी में नाम और शोहरत की कमीं नहीं थी। प्रत्यूषा को आनंदी के रूप में प्रेम करने वाली जनता की तादाद भी अत्यधिक थी, लेकिन जीवन का सच है कि हृदयतल में किसी एक की मुहब्बत ही आत्मसुख प्रदान करती है। व्यक्ति कितना भी प्रसिद्ध हो, लेकिन किसी एक का आत्मीय प्रेम ही उसके जीवन के सुख की नींव होती है।
प्रत्यूषा की जिंदगी में भी वर्तमान प्रेमी राहुल राज थे। लेकिन किवदंती के अनुसार सच माने तो राहुल ने प्रत्यूषा को धोखा दिया था। प्यार में जहर पिला देना, लेकिन धोखा मत देना वरना घुट-घुट कर मरते हुए एक दिन कोई आनंदी आत्महत्या कर लेती है।
प्रत्यूषा ने आत्महत्या कर ली और मीडिया में प्रत्यूषा के संघर्ष की दांस्ता बयां होने लगी। प्रत्यूषा के एक्स लवर से लेकर राहुल राज तक और उसके घर परिवार से लेकर दोस्तों के बयान जगजाहिर होने लगे। इस दौरान ही मेरी उम्मीद के मुताबिक कि अगर वास्तव में राहुल प्रत्यूषा से प्यार करता था तो इस वक्त कम से कम राहुल की तबीयत सही नहीं होनी चाहिए।
ये रही प्रेम मोहब्बत और शोहरत की बात, लेकिन इस मामले की मीडिया कवरेज को लेकर मेरे मन में एक सामाजिक चिंता का भय सताने लगा। इस दौरान जिस किसी भी चैनल को बदलने की कोशिश की बस सिर्फ एक डिस्क्लेमर “लव ब्वायफ्रेंड ब्रेकअप, आनंदी का गुनहगार कौन है ? , प्रत्यूषा केस की इनसाइड स्टोरी ! , मोहब्बत मौत और मिस्ट्री।”
मैं हसूं या गाऊं अथवा रोऊं ! बेशक प्रत्यूषा की मौत की खबर चलनी चाहिए। मौत की पूरी पड़ताल होनी चाहिए, लेकिन इसी देश में, इसी समाज में कर्ज तले दबे हुए किसानों की मौत हो जाती है। हमारे चित्रकूट के भरतकूप की खदान में काम करने वाले मजदूर की मौत सर पर पत्थर गिरने से हो गई, लेकिन खबर तो आसमां से चांद तारे तोड़कर लाने के समान होगा बड़ी मुश्किल से ही कहा जा सकता है कि किसी नेशनल चैनल में एक पट्टी चल गई हो और प्रिंट मीडिया में कुछ संतुलित मजबूरी भरे शब्दो के साथ ये खबर दम तोड़ देती है।
इस देश और समाज में गरीबों की मौत दवा के अभाव में हो जाती है। भूख न मिटने से और रोजगार न मिलने से देश के भविष्य की मौत हो जाती है, लेकिन शायद ही कभी प्रत्यूषा की मौत की तरह लालायित होकर किसान, मजदूर और जवान की मौत की खबरें लाइमलाइट में आतीं हों अगर आती भी हैं, तो यदाकदा आतीं हैं। मतलब कि कुछ एक उदासीनता से खबर चलाकर अपने कर्तव्य का पालन करके पल्ला झाड लेते है।
जिस प्रकार से टेलीविजन स्टार प्रत्यूषा के लिए खबर चलाई, गईं काश इस देश का मीडिया एक किसान के मौत की मिस्ट्री, एक आम प्रेमी प्रेमिका की मुहब्बत मौत और मिस्ट्री, एक शहीद की शहादत का गुनहगार कौन? मजदूर कल्लू केस की इनसाइड स्टोरी। मीडिया इतनी ही तेजी से चला देता तो शायद शासन, प्रशासन जाग जाता और उस गरीब औरत के अनाथ बच्चों को भी न्याय मिल जाता, जिसकी मौत आज से छः महीने पहले सड़क दुर्घटना में हो गई थी। एक तेज रफ्तार बोलैरो ने आकर मां को कुचल दिया था और बच्चे आज अनाथ हो गए, लेकिन इनके दर्द की मिस्ट्री को कौन महसूस करेगा?
ये जिंदगी और मौत के बीच का वह समय है, जो अंगारों की तरह का सच उजागर करता है। सचमुच अभी भी चौतरफा सुधार की जरूरत है वरना यह कहना बेमानी है कि समाज के सबसे निचले स्तर के व्यक्ति को न्याय मिलेगा, लाभ मिलेगा, विकास होगा। ये सबकुछ अभी भी बेमानी लगता है, एक दिवास्वप्न सा प्रतीत होता है, जिसका जितना ग्लैमर है उसका उतना हक आज भी है। बस आम आदमी तो निरीह था, है और रहेगा।
परंतु हार नहीं मानना होगा एक बड़े सामाजिक बदलाव के लिए सबको प्रयास करना होगा तब जाकर कायनात बदलेगी और समाज के गरीब तबके का उद्धार हो पाएगा। प्रत्यूषा की मौत के प्रति हमारी संवेदना होनी चाहिए। प्रत्यूषा को भावभीनी श्रद्धांजलि के साथ सवाल जो उठाएं हैं उन पर चिंतन-मनन होना चाहिए और आत्मसात करके काम शुरू किया जा सकता है क्यूंकि वक्त अभी भी है।