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सामाजिक समरसता की मिसाल हैं सलीम अख्तर, 25 साल से बना रहे है बजरंगी पताका

झारखंड के धनबाद में भीड़भाड़ वाले पुराना बाजार में एक छोटी सी दुकान बजरंगी पताके से भरी पड़ी है। दुकान में दीवार पर एक तरफ छोटा सा तिरंगा झंडा है और उसके बगल में बगदाद शरीफ स्थित पीर हजरत शेख अब्दुल गफ्फार और उनके मजार ए शरीफ की तस्वीर। यह दुकान सलीम अख्तर उर्फ लड्डू भाई की है। ये 25 वर्षों से बजरंगी पताका बना रहे हैं।

दुकान के अंदर सिलाई मशीन पर लाल कपड़ों को बजरंगी पताके का आकार देने वाले लड्डू भाई और उनकी दुकान इलाके में सामाजिक समरसता की मिसाल हैं। पुराना बाजार में बजरंगी पताके की और भी दुकानें हैं, लेकिन इनके हाथ के बने पताके यहां के पूरे इलाके में मशहूर हैं। इनकी दुकान पर मोलभाव भी नहीं होता। हर पताके पर उसकी कीमत लिखी है। ग्राहक कीमत देखते हैं और उनकी समझ में जो आता है लड्डू भाई के हाथों में थमा कर ले जाते हैं।

पताका बनाते-बनाते लड्डू भाई कहते हैं, ‘दाम के अनुसार ज्यादातर लोग पैसे दे देते हैं। कुछ थोड़े कम भी देते हैं तो चल जाता है। ऐसे भी यह ऊपर वाले का काम है। जो भी है वह उसी के रहमो करम से है।’ वे बताते हैं कि यह दुकान उनके पिता की थी जो कपड़ा मरम्मत का काम करते थे। उनके बाद वह भी यही काम कर हैं।

देश की हिन्दू-मुस्लिम राजनीति पर लड्डू भाई कहते हैं, ‘मैं पढ़ा लिखा नहीं हूं। राजनीति नहीं समझ आती। इतना जानता हूं कि मेरे पिता इसी दुकान में काम करते थे और अब मैं कर रहा हूं। यहां हिन्दू, मुसलमान, सिख सभी धर्म के लोग रहते हैं। बचपन से अभी तक कभी इन मुद्दों को लेकर यहां विवाद होते नहीं देखा। मेरी दुकान से बजरंगी पताका हिन्दू परिवार के लोग खरीद रहे हैं। कभी यह एहसास ही नहीं हुआ कि हम दोनों में कुछ अंतर है।’

देश की हिन्दू-मुस्लिम राजनीति पर लड्डू भाई कहते हैं, ‘मैं पढ़ा लिखा नहीं हूं। राजनीति नहीं समझ आती। इतना जानता हूं कि मेरे पिता इसी दुकान में काम करते थे और अब मैं कर रहा हूं। यहां हिन्दू, मुसलमान, सिख सभी धर्म के लोग रहते हैं। बचपन से अभी तक कभी इन मुद्दों को लेकर यहां विवाद होते नहीं देखा। मेरी दुकान से बजरंगी पताका हिन्दू परिवार के लोग खरीद रहे हैं। कभी यह एहसास ही नहीं हुआ कि हम दोनों में कुछ अंतर है।’

लड्डू भाई कहते हैं, रामनवमी के पहले तीन महीने में वे प्रतिदिन तीन घंटे बजरंगी पताका बनाते हैं। इस काम में उनके परिवार के अन्य सदस्य भी मदद करते हैं। हर साल छोटे-बड़े करीब 1500 पताका वे बनाते हैं। पहले 2000 के करीब पताका बनाते थे, लेकिन रेडिमेड पताके के कारण यह संख्या थोड़ी कम हुई है।

लड्डू भाई के अनुसार, बजरंगी पताका की बिक्री से हर साल 20 से 25 हजार रुपये का मुनाफा हो जाता है। यह उनके लिए बोनस जैसा होता है। यह साल भर की उनकी सबसे बड़ी कमाई होती है। बाकी दिन वह कपड़ा रिपेयरिंग का अपना पुराना काम करते हैं।