जर्मनी। दुर्दांत आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट (आईएस) की क्रूरता किस हद तक पहुंच चुकी है इसका अंदाजा 17 साल की यजीदी लड़की यास्मिन को देख लगाया जा सकता है। आईएस के चंगुल से छुड़ाई गई यास्मिन के अंदर इतना खौफ था कि उसने फिर उनकी गिरफ्त से बचने के लिए खुद को जला लिया। यास्मिन ने सोचा कि जलने के बाद वह ‘बदसूरत’ हो जाएगी और आईएस के लड़ाके फिर उसका रेप नहीं करेंगे।
पीड़ित लड़की ने इराक के रिफ्यूजी कैंप में रहने के दौरान ही खुद को जलाया। एक दिन उसे भ्रम हो गया कि आईएस के लड़ाके उसके रिफ्यूजी कैंप के बाहर आ गए हैं। इसके बाद उसने खुद पर गैसोलिन छिड़क कर आग लगा ली। यास्मिन यजीदियों के खिलाफ आईएस की क्रूरता के हजारों उदाहरणों में से एक है।
आईएस की क्रूरता से बचाई गईं यजीदी लड़कियों के लिए काम करने वाले जर्मन डॉक्टर किजोहान को जब कैंप में यास्मिन मिली तब उसका चेहरा और बाल पूरी तरह से झुलस चुके थे। वह नाक, होठ और कान खो चुकी थी।
यास्मिन उन 1100 यजीदी लड़कियों/महिलाओं में से एक है, जिन्हें आईएस के चंगुल से छुड़ाया गया है। ये सभी फिलहाल जर्मनी में मनोवैज्ञानिक इलाज ले रही हैं। डॉक्टर किजोहान इस प्रॉजेक्ट को हेड कर रहे हैं।
3 अगस्त 2014 को आईएस के लड़ाकों ने उत्तरी इराक के सिंजर इलाके पर कब्जा कर लिया था। यह इलाका यजीदियों का घर माना जाता है। वहां उन्होंने यजीदियों को तीन ग्रुपों में बांटा। पहला जवान लड़के, जिनका इस्तेमाल उन्होंने लड़ाई के लिए किया। दूसरा ऐसे बुजुर्ग जिन्होंने इस्लाम नहीं स्वीकार किया उन्हें मार दिया गया। तीसरा महिलाओं और लड़कियों का ग्रुप। आईएस ने इनकी बिक्री की और इन्हें दासी बनाया। यास्मिन इन्हीं में से एक थी।
जर्मनी में अपने कमरे में बैठी यास्मिन
जलने के बाद यास्मिन