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पूरी दुनिया देख रही भारत का आत्मबल और ताकत

राजेश श्रीवास्तव

एक तरफ जहां कोरोना महामारी ने दुनिया के सैकड़ों देशों को अपने कब्जे में ले रखा हैं और सभी देश अपने-अपने हिसाब से उसका मुकाबला कर रहे हैं। लेकिन लंबे समय से वह देश जिनके बारे में यह कहा जाता है कि उनके यहां कभी सूर्य अस्त नहीं हो सकता, उनका सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है। चाहे अमेरिका हो, इटली हो या फिर कोई इसी तरह का विकसित देश। खुद इसका उपज चीन भी अपने कई नागरिकों को काल के गाल में समाता देख चुका है।

भले ही वह इसे स्वीकार करे या न करे। वहीं इस पूरे प्रकरण में अगर सबसे ज्यादा अच्छी तरह इसका मुकाबला अगर कोई देश कर रहा है तो वह भारत है। खुद पूरी दुनिया इसका गवाह है और कई देशों ने इस तथ्य को स्वीकार भी किया है। जिस तरह के बड़े जनसंख्या वाले देश में शुमार भारत में इस समय कोरोना संक्रमण के मामले किसी भी अन्य देश की तुलना में बेहद कम हैं और उनसे मरने वालों का आंकड़ा तो महज दशमलव से भी कम है। जबकि इससे उपचारित होने वालों का अांकड़ा तो किसी भी देश के मुकाबले बहुत बेहतर है।

भारत सरकार और उसके राज्यों की सरकारों ने अपने-अपने यहां जिस तरह की मुस्तैदी दिखायी है उससे साफ हो गया है कि आज भी भारत में वह जुनून और आत्मबल है कि वह किसी भी बड़ी से बड़ी मुसीबत का सामना कर सकता है और विश्व गुरू बनने की अगर किसी में शक्ति है तो वह भारत में ही है। यह बात भी सौ फीसद सच है कि भारत चिकित्सा संसाधनों में अन्य विकसित देशों से बहुत पीछे है लेकिन कोरोना वायरस के मामले में उसने इस मिथक को भी पीछे छोड़ दिया है।

जब सारी दुनिया के वैज्ञानिक इसकी काट के लिए वैक्सीन खोज रहे हैं तब हमारा देश इससे ग्रसित लोगों का इलाज अपनी पचासों साल पुरानी एक दवा से कर रहा है। और यह केवल तुक्के से नहीं बल्कि कई देशों ने इसे स्वीकार किया है और अमेरिका जैसा शक्तिशाली देश ने तो भारत के सामने मलेरिया की दवा के लिए हाथ ही पसार दिया। शायद यह पहला मौका होगा जब अमेरिका को भारत के आगे हाथ फैलाने पड़े वह भी मामूली दवा के लिए और भारत ने भी बड़ा मन दिखाते हुए न केवल अमेरिका को बल्कि पूरी दुनिया को मलेरिया की दवा प्रचुर मात्रा में बांटी और आज पूरी दुनिया के मरीजों का इलाज भारत से बनी दवा से हो रहा है।

यह भारत के मस्तक की चमक ही है कि उसने पूरी दुनिया को यह दिखा दिया है कि अब भारत वह नहीं रहा जो मुसीबत पड़ने पर दुनिया के सामने हाथ फैलाये अब भारत अपनी स्थिति को सुधारना भी जानता है । हालांकि पहले भी भारत पर कई बार इसकी आजादी के पहले से लेकर अब तक कई बार मुसीबतों का पहाड़ टूटा लेकिन भारत हर बार पहले से ज्यादा शक्तिशाली होकर उभरा है। चाहे पाकिस्तान से यद्ध रहा हो, चाहे करगिल रहा हो, चाहे बंगलादेश का मामला रहा हो या परमाणु बम का परीक्षण या फिर 37० और सीएए व नोटबंदी जैसे फैसले।

पूरी दुनिया में जहां लाशों का ढेर लगा हुआ है और शवों को रखने या दफन करने के लिए जगह नहीं बची है वहीं भारत में अब यह संख्या घटने लगी है और जिस रफ्तार से शुरुआत में मरीज बढ़ रहे थ्ो अब वह औसत से भी आधी रह गयी है। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जहां दो बार लॉक डाउन करके यह दिखा दिया कि इस देश के लिए जहान की कीमत है लेकिन जान की कीमत इतनी बड़ी जनसंख्या होने के बावजूद सबसे ज्यादा है। अब ज्यादा लगभग एक महीने का लॉक डाउन पूरा हो चुका है तब देश उसके सुखद परिणाम भी देख रहा है और शायद वह दिन दूर नहीं जब भारत इससे मुक्त हो सकता है।

हालांकि जहां तक अर्थव्यवस्था की बात है तो यह बात सही है कि भारत में यह अगले कुछ सालों तक गड़बड़ाने वाली है तो यह सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया का हाल होने वाला है। लेकिन भारत ने जिस तरह मुसीबत के समय करोड़ों राशन कार्ड धारकों को निशुल्क राशन, कम्युनिटी किचन के माध्यम से निशुल्क भोजन, कंटàोल रूम के माध्यम से निशुल्क राशन, करोड़ों श्रमिकों को एक हजार रुपये का तीन महीने तक राहत राशि, पेंशन धारकों को तीन महीने तक पेंशन, तीन महीने तक निशुल्क रसोई गैस उज्जवला गैस धारकों के लिए जैसी योजनाओं को साध कर निर्बल वर्ग की पूरी मदद की।

वहीं अन्य देशो में फंसे भारतीय नागरिकों के लिए पूरी ताकत लगा कर उन्हें अपने देश में वापस लायी, यह सराहनीय कदम है। भारत की इस पूरी कवायद को बिगाड़ने की कोशिश एक वर्ग तब्लीगी जमात ने जरूर की, उन्होंने जो षड़यंत्र रचा, उसका सच पूरे देश ने देखा कि किस तरह एक वर्ग ने पूरे देश को खतरे में डाला। जब पूरा देश एकजुट होकर कोरोना महामारी से लड़ रहा था तब जमात के लोगों ने पूरे मंसूबे को ही चकनाचूर करने का मन बना डाला लेकिन वह अपने मंसूबे में कामयाब कभी नहीं होंगे, भले ही उन्होंने फौरी तौर पर जरूर मुसीबत खड़ी कर दी। इस वर्ग ने धरती के भगवान कहे जाने वाले डाक्टरों, पुलिसकर्मियों को भी नहीं बख्शा, ऐसे में इन पर कुछ लिखना व कहना गैर जरूरी ही होगा।