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साक्षी, तुम राजनीति का शिकार हो गयी हो, कीचड़ से निकलकर दलदल में पहुँच गयी हो

पूजा व्रत गुप्ता

साक्षी ,
मैं जानती हूँ , तुम्हें अपने पिता से नफ़रत हो गयी थी और ये नफ़रत यूँ ही नहीं जन्मी होगी । छोटी -छोटी बातें तुम्हारे अंदर ना जाने कब से घर करती रही होंगी। आमतौर पर बेटियों के साथ ऐसा ही होता है । पिता का अनुसाशन , उनकी अकड़ , उनका गुस्सा , उनकी ज़िद , बेटियों के हिस्से आती है पर इन्हीं सब के सामानांतर वो एक ऐसे पिता के साथ भी होती है , जो उन्हें इस दुनिया में सबसे ज़्यादा सुरक्षित महसूस कराता है , जो उसकी इच्छाओं को नहीं गिराता , जो उसे वक़्त देता है , उसकी परवाह करता है और भले ही ना कहे , पर प्यार करता है।

मुझे दुःख है तुम्हारे पिता तुम्हें वो सब नहीं दिखा पाए । उनका अनुसाशन , उनकी अकड़ , उनकी जिद और गुस्सा तुम पर हावी रहा । शायद उनके पास वक़्त ही नहीं था । वैसे भी , वो राजनीति में हैं , उनके वक़्त को लेकर परिवार में हर किसी को शिकायत रहती होगी और फिर उनके राजनीति से जुड़े होने के कारण , घर की हर छोटी – बड़ी बात , आम घरों की अपेक्षा अलग होती होगी।
तुम्हारा घूमना , फिरना , बोलना , दोस्त बनाना , सब कुछ तुम्हारी बाकी सहेलियों से बिल्कुल अलग रहा होगा। और उसी ” अलग ” दुनिया में तुम फिट नहीं हो पायीं ।

अच्छा हुआ , तुम्हें प्यार हुआ … वो भी किसी बाहर के लड़के से नहीं , एक ऐसे लड़के से जो बचपन से तुम्हारे घर आता – जाता रहा । ज़ाहिर है बाहर का कोई लड़का तुम्हारी ज़िन्दगी में आ भी नहीं पाता , इसलिए तुम उसके साथ वो सब बाँटने लगीं जो अब – तक तुम्हारे मन को छलनी कर रहा था । तुम्हें प्यार चाहिए था ? हमदर्दी चाहिए थी , एक ऐसा इंसान चाहिए था जो तुम्हारी उस कैद दुनिया से तुम्हें आज़ादी के सपने दिखाए । उसने दिखाए और ले गया।
यहाँ तक सब अच्छा था साक्षी। तुमने कुछ ग़लत नहीं किया। जीवनसाथी चुनना गलत नहीं होता। तुम्हारा इस तरह जाना भी गलत नहीं है , अपनी जान को ख़तरा बताकर दुनियाँ के सामने आना भी ग़लत नही है ।

पर जानती हो ग़लत क्या है ? ग़लत ये है कि जब तुम स्टूडियो में कैमरे के सामने ज़ार – ज़ार रोती हो और वो लड़का जिसके लिए तुमने अपने पूरे घर को कटघरे में खड़ा दिया , वो तुम्हें चुप कराने की बजाय सिर्फ इसलिए रोने देता है ताकि सामने लगा कैमरा तुम्हारे आँसू हर एंगल से कैद कर सके । वही लड़का , जो तुम्हें कुछ देर पहले , किसी बात को कैमरे पर ना कहने के लिए कंधा दबाकर इशारा तो कर देता है लेकिन तुम्हारे आँसू देखकर कंधा तब ही सहलाता है , जब उसे लगता है , अब कैमरा उसकी ओर है।
अपनी छोटी सी ज़िन्दगी में तुमने राजनीति बख़ूबी देखी होगी साक्षी , पर वो लड़का, जो अब सीना फुलाये तुम्हारे बगल में बैठता है ना , उसने बचपन से , तुम्हारे घर आ – आकर , राजनीति सिर्फ़ देखी ही नहीं , सीखी भी है।

मुझे दुःख है , तुम राजनीति का शिकार हो गयी हो। कीचड़ से निकलकर दलदल में पहुँच गयी हो।

(पत्रकार पूजा व्रत गुप्ता के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)