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राम से भी बड़ा हो गया है मोदी का नाम

राजेश श्रीवास्तव
कुछ लोगों को आज यह शीर्षक अखरेगा तो कुछ को अतिशयोक्ति लगेगी लेकिन आलेख पढ़ने के बाद इससे बेहतर शायद कोई और शीर्षक नहीं हो सकता, आप यही कहेंगे। कभी कहा जाता था कि इस जीवन में कुछ भी हासिल करना है तो राम का नाम ले लीजिये आपकी मन की मुराद पूरी हो जायेगी। यानि सभी समस्याओं की सिर्फ एक चाभी। लेकिन आज के इस आधुनिक युग में प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी ने अपने नाम को इससे भी बड़ा बना दिया है। बीते लोकसभा चुनाव में यह साबित भी हो गया है। देश व प्रदेश की सभी सीटों पर जो भी प्रत्याशी भाजपा या सहयोगी दलों के टिकट पर लड़ रहा था। उसने न प्रचार किया न जनता के बीच गया। जहां प्रत्याशी प्रचार में था वहां लोग उसकी आलोचना भी कर रहे थ्ो लेकिन जब वोट देने की बारी आयी तो लोगों ने वोट उसी को दिया। यह भारतीय राजनीति का वह काल है जिसे मोदी युग के नाम से याद किया जायेगा। ेेऐसा नहीं कि इससे पहले ऐसा समय नहीं आया जब कांग्रेस या अन्य दलों ने सरकार नहीं बनायी। लेकिन 19 साल प्रधानमंत्री के रूप में शासन करने वाली इंदिरा गांधी के युग में भी कोई इंदिरा के नाम से चुनाव नहीं जीत पाता था। प्रत्याशी की अपनी छवि भी मायने रखती थी।
यह इससे भी साफ होता है कि केवल लोकसभा चुनाव ही नहीं बल्कि पूर्व के यूपी के विधानसभा के चुनावों में भी कमोवेश यही तस्वीर उभरी। जीएसटी, नोटबंदी, बेरोजगारी, महंगाई सभी मुद्दे गौड़ हो गये। आज पुरानी बातों को भूल जाइयेे अभी कल की ही रपट है कि देश में इस समय बेरोजगारी पिछले 45 सालों में सर्वोच्च दर पर है जीडीपी धड़ाम हो गयी है। लेकिन जनता को तो बस मोदी ही चाहिए। प्रत्याशी खराब हो या अच्छा कोई फर्क नहीं पड़ता। मोदी आज नाम नहीं बल्कि सारी उम्मीदों की किरण है। सभी को लगता है कि मोदी ही है जो उनकी सभी उम्मीदों को पूरा कर सकता है। मोदी कुछ करें या न करें। विपक्षी नारों से उस पर कोई असर नहीं पड़ने वाला है। यह चुनावी बेला में ही नहीं दिखता बल्कि हालिया की सरकार के गठन में भी साफ दिखायी पड़ा। उन्होंने सबसे वरिष्ठ राजनाथ सिंह को दूसरे नंबर पर शपथ तो दिलायी लेकिन अपने करीबी अमित शाह को गृह मंत्रालय देकर दूसरे नंबर की हैसियत दे दी। निर्मला को वित्त, जे. शंकर को विदेश मंत्रालय देकर उन्होंने साबित कर दिया कि वह जो चाहेंगे वही करेंगे। उन पर किसी का दबाव नहीं चलने वाला।
आज भले ही बेरोजगारी चरम पर हो। महंगाई का सीना छप्पन इंच का हो गया हो। जीडीपी धडाम हो गयी हो। लेकिन देश की जनता को इससे कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है। उसे अपने बच्चों के लिए नौकरी नहीं चाहिए। भाजपा ने तो नारा ही गढ़ा था- नून रोटी खाएंगे, भाजपा को लाएंगे। अब इससे बढ़कर समर्पण और क्या हो सकता है। ऐसे में विपक्ष कैसे कोई भी सीट को जीतने की संकल्पना कर सकता है। मेरे ख्याल से अगर उसे चंद सीटें हासिल भी हुई हैं तो वह ऐसी सीटे हंै जिन पर भारतीय जनता पार्टी ने नजर नहीं गड़ायी होगी। इससे साफ हो जाता है कि मोदी का नाम आज राम से भी बड़ा हो गया है। मोदी सिर्फ नाम नहीं मंत्र है – सफलता का, जीत का, गारंटी का, देशभक्ति का, सरकार बनाने का।