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केजरीवाल बनाम एलजीः पढ़ें- संविधान पीठ में किस जज ने क्या कहा?

नई दिल्ली। दिल्ली सरकार और लेफ्टिनेंट गवर्नर के बीच शुरू हुई जंग पर सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की बेंच का फैसला आ चुका है. अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने पूरी तरह से साफ कर दिया है कि महज संविधान की धारा 239 एए के तहत दी गई शक्तियों के अलावा दिल्ली के लेफ्टिनेंट गवर्नर दिल्ली सरकार के मंत्रिमंडल की मदद और सलाह से काम करने के लिए बाध्य हैं.

पांच जजों की बेंच में शामिल चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के अलावा जज एके सीकरी, एएम खानविलकर, डीवाई चंद्रचूड़ और अशोक भूषण शामिल हैं. दिल्ली सरकार और लेफ्टिनेंट गवर्नर के बीच उपजे विवाद पर तीन जजों ने अपना फैसला सुनाया जबकि दो जजों एके सीकरी और एएम खानविलकर ने चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के फैसले से इत्तेफाक रखते हुए अपना फैसला अलग से नहीं दिया.

चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा का फैसला-कोर्ट को लोकतांत्रिक सिद्धांतों पर ही संविधान का व्याख्यान करना होगा. राज्य के तीनों अंग संविधान से जुड़े हैं. लिहाजा कोर्ट का फैसला संविधान की भावना पर आधारित होना चाहिए.

-मदद और सलाह के संदर्भ में सामूहिक जिम्मेदारी का सिद्धांत बेहद अहम है.

-केन्द्र और राज्य को संघीय ढांचे का पालन करने की जरूरत है

-शाब्दिक व्याखान से ज्यादा अहम संदर्भ व्याख्यान है.

-केन्द्र-राज्य संबंध में दिल्ली की विशेष जगह है, दिल्ली का लेफ्टिनेंट गवर्नर किसी अन्य राज्य के गवर्नर की तरह नहीं है.

-लेफ्टिनेंट गवर्नर मंत्रिपरिषद की मदद और सलाह से बंधा है. हालांकि उसे संविधान की धारा 239 एए के तहत मामले को राष्ट्रपति के संदर्भ हेतु भेजने का अधिकार है. लेफ्टिनेंट गवर्नर स्वतंत्र रूप से फैसला नहीं ले सकता  और उसे मंत्रि-परिषद की मदद और सलाह से ही फैसला करने की जरूरत है.

-लेफ्टिनेंट गवर्नर को मंत्रिपरिषद के साथ सामंजस्य बनाकर काम करने की जरूरत है.

-संविधान के मुताबिक मंत्रिपरिषद को अपने फैसले की सूचना लेफ्टिनेंट गवर्नर को देनी है लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि मंत्रिपरिषद लेफ्टिनेंट गवर्नर के अधीन है.

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ का फैसला-संवैधानिक झगड़ों से लोकतंत्र के लचीलेपन का परीक्षण होता है.

-संविधान की व्याख्या संवैधानिक नैतिकता पर ही आधारित होनी चाहिए

-जनता की संप्रभुता, शासन का लोकतांत्रिक तरीका और धर्मनिरपेक्षता संविधान का अभिन्न अंग है. संविधान का मूल ढांचा घटकों की शक्तियों पर कुछ प्रतिबंध लगाता है.

-मदद और सलाह का सिद्धांत सामूहिक लोकतंत्र की संवैधानिक अवधारणा को मजबूत करता है.

-लोकतांत्रिक शासन में वास्तविक शक्ति और जिम्मेदारी चुने हुए प्रतिनिधियों में निहित है.

-संविधान की धारा 239 एए की व्याख्यान में कोर्ट को लोकतांत्रिक भावना को आगे बढ़ाना है

-संविधान की धारा 239 एए के तहत ‘कोई मुद्दा’ कोई तुच्छ मुद्दा नहीं हो सकता. ऐसा करने पर शासन करना संभव नहीं होगा

-लेफ्टिनेंट गवर्नर को यह समझने की जरूरत है कि वह खुद नहीं बल्कि मंत्रिपरिषद पर मौलिक फैसलों का दायित्व है.

-लेफ्टिनेंट गवर्नर को मंत्रिपरिषद की मदद और सलाह से काम करना चाहिए या उन मामलों में जहां राष्ट्रपति के फैसले से कोई मामला राष्ट्रपति के लिए संदर्भित है वह स्वतंत्र तौर पर फैसला नहीं ले सकता है.

जस्टिस अशोक भूषण का फैसला-राजधानी दिल्ली क्षेत्र पर केंद्र सरकार और दिल्ली सरकार को कानून बनाने का विस्तृत अधिकार है.

-संविधान की धारा 239 एए (4) को छोड़कर दिल्ली के लेफ्टिनेंट गवर्नर को मंत्रिपरिषद की मदद और सलाह पर चलना होगा.

-संविधान की धारा 239 एए के तहत दी गई शक्तियों पर महज संवैधानिक जरूरत पड़ने पर ही लेफ्टिनेंट गवर्नर फैसला कर सकता है.