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इतिहास गवाह है…’रिजॉर्ट राजनीति’ से कई बार बची व गिरी हैं सरकारें

नई दिल्‍ली। कर्नाटक में सरकार बनाने और बचाने दोनों के लिए जोड़-तोड़ चल रहा है. एक ओर बीजेपी है तो दूसरी ओर कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन. दोनों पक्ष एक-दूसरे पर विधायकों की खरीद-फरोख्‍त का आरोप लगा रहे हैं. कांग्रेस ने अपने विधायकों को बीजेपी से बचाने के लिए बेंगलुरु के बिडाड़ी शहर स्थित ईगलटन रिजॉर्ट में रखा था. उसके बाद उन्‍हें हैदाराबाद शिफ्ट कर दिया. जेडीएस विधायक भी उनके साथ हैं. विधायकों की हॉर्स ट्रेडिंग रोकने के लिए कई बार दलों ने रिजॉर्ट-होटल का सहारा लिया है. कर्नाटक में ऐसा पहले कई बार हो चुका है.

80 के दशक में हुई शुरुआत
इसकी शुरुआत 80 के दशक में हुई थी जब आंध्र के सीएम रामाराव विधायकों को लेकर बेंगलुरु के रिजॉर्ट पहुंचे थे. 1984 में आंध्र प्रदेश में तेदेपा प्रमुख एनटी रामाराव को बहुमत साबित करना था. तब कर्नाटक के सीएम व मित्र आरके हेगड़े ने उन्हें विधायकों के साथ कर्नाटक के देवानाहैली रिजॉर्ट में पनाह दी थी. इसके बाद 2002 में महाराष्ट्र में कांग्रेस के मुख्‍यमंत्री बिलासराव देशमुख 2002 में 40 विधायकों को लेकर बेंगलुरू पहुंचे. उनके रुकने की व्यवस्था तब मौजूदा विधायक शिवकुमार ने ही की थी.

 

2004 में भी कर्नाटक में यही स्थिति बनी थी
2004 में भी कर्नाटक में त्रिशंकु विधानसभा थी. भाजपा को 90, कांग्रेस को 65 व जेडीएस को 58 सीटें मिली थीं. जेडीएस विधायकों को बेंगलुरू के एक रिजॉर्ट में बुलाया गया था. जेडीएस ने कांग्रेस को समर्थन दिया था. विधायक रिजॉर्ट से सीधे वोट डालने विधानसभा पहुंचे थे. इसके बाद 2006 में कुमारस्वामी ने एचडी देवेगौड़ा से अलग होकर भाजपा के साथ सरकार बनाई थी. वह अपने समर्थक विधायकों के साथ इगलटन रिजॉर्ट में ठहरे थे. 2008 में भाजपा पहली बार 110 सीटें पाई. बीएस येद्दियुरप्पा ने सरकार बनाने का दावा पेश किया. उस समय भी कांग्रेस और जेडीएस ने विधायकों को बेंगलुरू में रोका था.

2017 में राज्‍यसभा चुनाव का मामला
गुजरात में बीते साल राज्यसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस ने 44 विधायकों को बंगलुरु भेजा था. अहमद पटेल को राज्यसभा पहुंचाने के लिए कांग्रेस ने यह कदम उठाया था. रिजॉर्ट में विधायकों की प्रेस कॉन्फ्रेंस और परेड भी हुई थी. इससे अहमद पटेल अपनी सीट बचाने के कामयाब रहे थे.