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राइट टू लॉ यानी कानून का अधिकार के मुहीम में लगे डॉ. विजय सोनकर शास्त्री

नई दिल्ली। भाजपा के 11, अशोका रोड केंद्रीय कार्यालय के अपने चेंबर से एक नायाब मुहिम का संचालन करने में जुटे हैं डॉ. विजय सोनकर शास्त्री। मुहिम रंग लाई तो देश को एक नायाब अधिकार मिलेगा। नाम है-राइट टू लॉ यानी कानून का अधिकार। इस कानून को पास कराने के लिए सरकार के समक्ष सवा करोड़ भारतीयों के हस्ताक्षर पेश करने की मुहिम शास्त्री ने छेड़ रखी है। हस्ताक्षरों को राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भेजा जाएगा। ताकि संसद से राइट टू लॉ कानून की शक्ल ले सके। इसी के साथ हर भारतीय को कानूनी शिक्षा आसानी से सुलभ हो सके।  शास्त्री सांसद और राष्ट्रीय अनुसूचित जाति-जनजाति के अध्यक्ष भी रहे हैं। इस वक्त पार्टी में प्रवक्ता की जिम्मेदारी निभा रहे हैं। मगर लीक से हटकर की गई उनकी पहल उन्हें सुर्खियों में रखे हुए है। खास बात है कि इस मुहिम को संघ प्रमुख मोहन भागवत, पीएम मोदी, भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और  केंद्रीय कानून मंत्रालय का भी समर्थन हासिल है। कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद खुद मंच पर आकर मुहिम को सपोर्ट कर चुके हैं।

मुहिम छेड़ने की जरूरत कैसे महसूस हुई

विजय सोनकर शास्त्री कहते तीन सवाल उठाते हैं. 1. संविधान एवं कानून से अनभिज्ञ देश के 99 प्रतिशत नागरिकों को कानून का ज्ञान कैसे हो? 2. अधिकार प्राप्ति की दिशा में चल रहे टुकड़ों-टुकड़ों में संघर्ष का स्थायी समाधान क्या हो? 3. जनता द्वारा चुनी हुई सरकारों के कामकाज में देश के सभी नागरिकों की भागीदारी सुनिश्चित कैसे हो?

इन सवालों का जवाब सुनिश्चित करने के लिए राइट टू लॉ मुहिम शुरू की गई है। शास्त्री ‘कानून का अधिकार’ नामक पुस्तक भी लिख चुके हैं। जिसमें देश स्तर पर चलाए जा रहे ऐसे अभियान की रूपरेखा को करीने से समझाया गया है। जनता के लिए इस जन अभियान को साहित्यिक रूप से पेश किया गया है। इस पुस्तक के तीन भाग हैं—प्रथम भाग में जन-अभियान का अर्थ, भावार्थ एवं क्रियात्मक योजनाओं का उल्लेख है। दूसरे और तीसरे भाग में क्रमशः भारत का संविधान एवं भारतीय दंड संहिता का संक्षिप्त स्वरूप है। प्रस्तुत पुस्तक के माध्यम से भारत के पूरे संविधान को आधा घंटा एवं पूरी भारतीय दंड संहिता को पंद्रह मिनट में पढ़ा जा सकता है।

कानून बनने से नहीं मारा जाएगा किसी का हक

डॉ. शास्त्री कहते हैं कि उन्होंने जमीनीस्तर पर काम किया। पता चला कि देश की 99 प्रतिशत जनता को तो मूलभूत नियम-कायदों की जानकारी ही नहीं है। गांवों में कानूनी शिक्षा के प्रावधान हैं, मगर किसी को जानकारी ही नहीं है।   व्यक्ति को अधिकार के साथ उसके क्या कर्तव्य हैं यह भी पता चलने चाहिए। साथ ही उसे यह भी पता होना चाहिए कि उसका कौन सा काम अपराध हो सकता है ।अगर लोगों को अपने देश के कानूनों का ही पता नहीं होगा तो कैसे उनसे एक बेहतरीन नागरिक बनने की उम्मीद की जा सकती है। यह किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए बहुत बुरी स्थिति है। बकौल शास्त्री- यह अभियान लोकतांत्रिक और राष्ट्रव्यापी अभियान है। अगर एक साधारण व्यक्ति को उसके संवैधानिक अधिकारों के बारे में पता है तभी वो अपने सामाजिक,आर्थिक और राजनीतिक अधिकारों की रक्षा कर सकता है।

पांच सौ सांसद, दो हजार विधायकों से लेंगे समर्थन

राइट टू लॉ बिल पास कराने के लिए शास्त्री का प्लान देश के पांच सौ से अधिक सांसदों और दो हजार विधायकों से समर्थन हासिल करना है। इसके अलावा सवा करोड़ लोगों के साइन कराने का लक्ष्य रखा गया है। सवा करोड़ लोगों के साइन कराकर उन्हें राष्ट्रपति,उपराष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के साथ-साथ लोक सभा अध्यक्ष को भी भेजेंगे। शास्त्री का कहना है कि दिसंबर तक हस्ताक्षर का काम पूरा हो सकता है। इसके लिए पार्टी कार्यकर्ता शहर से लेकर गांव-गिराव तक आम जन का हस्ताक्षर कराने में जुटे हैं।

सिलेबस में शामिल हो कानून की पढ़ाई

शास्त्री का मानना है कि जिस तरह से गणित, विज्ञान आदि विषयों की पढ़ाई अनिवार्य है, उसी तरह प्राइमरी से लेकर 12 वीं तक के सिलेबस में कानून की पढ़ाई को भी शामिल किया जाए। सिलेबस में कम से कम इतनी जानकारी रखी जाए कि बच्चे जीवन में जरूरी न्यूनतम कानूनी जानकारी से अवगत हो सकें। राइट टू लॉ मुहिम में बतौर कार्यकर्ता जुड़े आशीष सिंह कहते हैं कि यह बहुत उपयोगी मुहिम है। कानून बनने पर आम आदमी को भी तमाम जरूरी जानकारियां सरकारी और गैरसकारी संस्थानों के जरिए आसानी से मिल सकेंगी।

कई किताबें लिख चुके हैं शास्त्री

वाराणसी निवासी डॉ. विजय सोनकर शास्त्री बीएचयू से  एम.बी.ए., पी-एच.डी. (प्रबंध शास्त्र) के साथ ही संपूर्णानंद संस्कृत विश्‍वविद्यालय से शास्त्री की डिग्री लिए। पढ़ाई के दौरान ही संघ की शाखाओं से नाता जुड़ा। हिंदू वैचारिकी और हिंदू संस्कृति को आत्मसात् कर राजनीति में प्रवेश कर सांसद बने। उन्हें भाजपा सरकार में राष्‍ट्रीय अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति आयोग का अध्यक्ष भी बनने का मौका मिला।  मानवाधिकार, दलित हिंदू की अग्नि-परीक्षा, हिंदू वैचारिकी एक अनुमोदन, सामाजिक समरसता दर्शन सहित कई  विषयों पर पुस्तकें लिख चुके हैं।