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कांग्रेस ने खो दी पंजाब में वह जमीन, जो उसने आपातकाल और 1984 के सिख दंगों के बाद भी बचाए रखी थी

चंडीगढ़। पांच राज्यों के चुनावी नतीजों में कांग्रेस के लिए सबसे बुरी खबर पंजाब से आई। अब तक के रुझानों के मुताबिक, पंजाब में कांग्रेस को 20 से भी कम सीटें मिलती दिख रही हैं। नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद देशभर में भाजपा की लहर के बीच कांग्रेस ने जो राज्य बचाए रखे थे, उनमें से एक मजबूत गढ़ पंजाब था, लेकिन कैप्टन अमरिंदर सिंह के अलग हो जाने का कांग्रेस को यहां साफ तौर पर नुकसान होता दिख रहा है। अगर अंतिम नतीजे अब तक सामने आए रुझानों के मुताबिक ही रहते हैं तो यहां कांग्रेस का प्रदर्शन 1977 में आपातकाल के बाद हुए विधानसभा चुनाव से भी खराब रहेगा। तब कांग्रेस 17 सीटें जीतने में कामयाब रही थी। वहीं, 1984 में सिख विरोधी दंगों के बाद 1985 में जब राज्य में विधानसभा चुनाव हुए, तब भी कांग्रेस 32 सीटें जीती थी। 1997 में उसका प्रदर्शन सबसे खराब रहा था, जब पार्टी ने 14 सीटें जीती थीं।

1. 1977 में किन हालात में चुनाव हुए, नतीजे क्या रहे?
1975 में केंद्र की इंदिरा गांधी सरकार ने देशभर में आपातकाल का एलान कर दिया था। इस आपातकाल की अवधि देश में दो साल तक चली थी। 1977 में जब तक आपातकाल खत्म होने का एलान हुआ, तब तक कांग्रेस की छवि पूरे देश में नकारात्मक हो चुकी थी। इसका असर यह हुआ कि 1977 में हुए लोकसभा चुनाव से लेकर सभी राज्यों के विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस का प्रदर्शन सबसे खराब रहा। पंजाब की 117 सीटों में से कांग्रेस को महज 17 सीटें मिली थीं, जबकि इससे पहले 1972 में कांग्रेस ने दमदार प्रदर्शन कर 66 सीटों पर जीत हासिल की थी। पांच साल के अंतराल में अकाली दल की स्थिति मजबूत हुई और उसने अपनी सीटें 24 से बढ़ाकर 58 सीटों तक कर ली थी।

2. 1985 में किन हालात में चुनाव हुए, नतीजे क्या रहे?
1977 में पंजाब विधानसभा चुनाव में अकाली दल के बेहतरीन प्रदर्शन के बावजूद मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल पूरे पांच साल सरकार नहीं चला पाए और पंजाब ने 1980 में फिर चुनाव देखे। इन चुनावों में कांग्रेस ने 63 सीटें जीतकर 8वीं विधानसभा में सत्ता हासिल की। अकाली दल तब 37 सीटों पर ही सीमित रह गया था। कांग्रेस ने दरबारा सिंह को सीएम बनाया। हालांकि, पंजाब में पहली बार अलगाववाद की आवाज कांग्रेस के ही दौर में उठना शुरू हुई। 1984 में पहले ऑपरेशन ब्लू स्टार में जरनैल सिंह भिंडरावाले की मौत और बाद में हुए सिख दंगों से कांग्रेस को बड़ा नुकसान हुआ। 1985 के विधानसभा चुनाव में पार्टी 31 सीटों पर ही सिमट गई।

3. 1997 में किन हालात में पड़े वोट, कांग्रेस का क्या हुआ?
पंजाब की राजनीति के लिए सबसे मुश्किल समय 1980-90 का दौर रहा। पंजाब में आतंकवाद के मामले बढ़ने के चलते 1987 से 1992 तक राष्ट्रपति शासन लगा रहा। 1992 में चुनाव में हुए चुनाव में पूरे राज्य में महज 20 फीसदी वोटिंग हुई और कांग्रेस ने 87 सीटें जीतते हुए पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाई। इन चुनाव में अकाली दल को महज दो सीटें ही मिलीं और बाकी कोई भी पार्टी दहाई का आंकड़ा नहीं छू पाई। लेकिन जल्द ही पंजाब में फैले आतंकवाद को खत्म करने के नाम पर कांग्रेस सरकार पर बड़े पैमाने पर दमन और मानवाधिकारों के उल्लंघन के आरोप लगने लगे। इसका सीधा फायदा अकाली दल मिला, जिसने भाजपा के साथ गठबंधन किया। दोनों पार्टियों ने विधानसभा में कुल (अकाली दल की 75+भाजपा की 18) 92 सीटें हासिल कीं। वहीं, कांग्रेस अपने सबसे खराब प्रदर्शन यानी 14 सीटों के आंकड़े पर सिमट गई।

4. इस बार चुनाव से पहले क्या हुआ?
पंजाब में 2017 में हुए चुनाव में जनता ने कांग्रेस को सिर आंखों पर बिठाते हुए 10 साल बाद फिर सत्ता सौंपी थी। 117 सीटों में से पार्टी को 77 सीटें मिली थीं, जबकि उसकी सबसे करीबी प्रतिद्वंदी आम आदमी पार्टी को 20 सीटें ही मिली थीं। हालांकि, ठीक पांच साल बाद आंकड़े बिल्कुल उलट हैं। जहां इस वक्त रुझानों में आम आदमी पार्टी 90 सीटों का आंकड़ा छू चुकी है, वहीं कांग्रेस अपने 25 साल पहले से भी खराब प्रदर्शन दोहराने की राह पर है।

5. अब कांग्रेस के पास कितने राज्य बचेंगे?
अगर कांग्रेस पंजाब हार जाती है, तो उसके पास सिर्फ दो राज्य- छत्तीसगढ़ और राजस्थान ही बचेंगे। चार और राज्यों में उसके सहयोग वाले गठबंधनों की सरकार है। इनमें महाराष्ट्र, झारखंड और तमिलनाडु शामिल हैं। इसके अलावा जिन चार अन्य राज्यों में चुनाव हो रहे हैं, उनमें से मणिपुर, गोवा और उत्तराखंड में भी कांग्रेस किसी खास फायदे में नहीं दिख रही है।