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सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा दायर मुकदमे को तत्काल सूचीबद्ध करने पर आदेश पारित करने से इनकार कर दिया

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा दायर मुकदमे को तत्काल सूचीबद्ध करने पर आदेश पारित करने से इनकार कर दिया। बता दें, राज्य सरकार ने केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) पर कानून के तहत राज्य से आवश्यक मंजूरी हासिल किए बिना चुनाव बाद हिंसा के मामलों में अपनी जांच आगे बढ़ाने का आरोप लगाया है।

पश्चिम बंगाल सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ को बताया कि मामले की सुनवाई नौ बार स्थगित की जा चुकी है। साथ ही बताया कि यह मामला न्यायमूर्ति बी आर गवई की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष सूचीबद्ध है।

मैं नहीं कर रहा सुनवाई: सीजेआई
उन्होंने कहा, ‘मामला सामने आ रहा है, लेकिन हम संविधान पीठ के समक्ष हैं। अगर इस पर बुधवार या गुरुवार को सुनवाई हो सकती है।’ इस पर किसी तरह का आदेश देने से इनकार करते हुए प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘मैं मामले पर सुनवाई नहीं कर रहा हूं। आप उस बेंच के समक्ष जाइए, वे ही फैसला लेंगे। हम कोई आदेश पारित नहीं कर रहे हैं।’

कुछ दिनों तक इंतजार…
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि कोई जल्दबाजी नहीं है। इस मामले में कुछ दिनों तक इंतजार किया जा सकता है। इस पर सिब्बल ने कहा कि इंतजार नहीं किया जा सकता है क्योंकि मामला 2021 में दायर किया गया था और हम 2024 में हैं।

राज्य सरकार की ये दलील
पश्चिम बंगाल सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 131 के तहत केंद्र के खिलाफ शीर्ष अदालत में एक मूल मुकदमा दायर किया है। राज्य सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 131 के तहत दायर अपने मूल दीवानी मुकदमे में दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम 1946 के प्रावधानों का हवाला दिया और कहा कि केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) राज्य सरकार से बिना अनुमति हासिल किए जांच में आगे बढ़ रहा है और प्राथमिकी दर्ज कर रहा है, जबकि कानून के तहत ऐसा करना अनिवार्य है।

16 नवंबर, 2018 को, पश्चिम बंगाल सरकार ने राज्य में जांच और छापे मारने के लिए केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को दी गई सामान्य सहमति वापस ले ली थी।