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सऊदी अरब सरकार ने दिया हदीसो की समीक्षा का आदेश, भारतीय “फ़तवेबाजो” को लगा जोर का झटका

सऊदी अरब सरकार ने एक बहुत ही बड़ा और अप्रत्याशित कदम उठाया है. सऊदी सरकार ने हदीसो की समीक्षा के लिए विद्वानों के समूह का गठन किया है, ताकि इसका इस्तेमाल हिंसा और आतंकवाद को सही ठहराने के लिए न हो। सऊदी अरब के संस्कृति और सूचना मंत्री के हवाले से रॉयटर्स ने खबर दी कि किंग सलमान ने हदीसों के इस्तेमाल की समीक्षा के लिए एक अथॉरिटी (किंग सलमान कॉम्प्लेक्स) का गठन किया है।

यहाँ यह जानना बहुत जरूरी है की इस्लाम में हदीस धार्मिक कानून और नैतिक मार्गदर्शन के लिए पवित्र कुरान के बाद दूसरा सबसे बड़ा स्रोत है। सऊदी सरकार के इस समूह का लक्ष्य कट्टरवादी और झूठी बातों के अलावा ऐसी चीजों को हटाना है जो इस्लाम की शिक्षा के खिलाफ हैं और अपराध, मर्डर व आतंकवादी करतूतों को जस्टिफाई करती हैं। सऊदी सरकार के अनुसार किंग सलमान कॉम्प्लेक्स सही और विश्वसनीय हदीसों का स्रोत बनेगा और इस्लाम की भलाई का कार्य करेगा. सऊदी सरकार के इस कदम ने पूरी दुनिया के इस्लामी जानकारों को हैरान और परेशान कर दिया है. कुछ जानकार इसका स्वागत कर रहे हैं, वहीं कुछ इसपर बोलने से कतरा रहे हैं।

भारत के सामाजिक कार्यकर्ता एम. एन. करासेरी ने कहा, ‘हदीसों की समीक्षा का कदम स्वागतयोग्य है, क्योंकि इस तरह के आरोप हैं कि इसमें कुछ के साथ छेड़छाड़ गलत इरादे से किया गया।’चेकन्नूर मौलवी ने जोरदार तरीके से हदीसों की प्रमाणिकता पर यह कहते हुए सवाल उठाए थे कि इनसे छेड़छाड़ की गई है। उनके अलावा सी.एन. अहमद ने भी हदीसों की वैधता पर कुछ नरम तरीके से सवाल उठाए। हदीस को खारिज करना भी चेकन्नूर की हत्या के कारणों में से एक था।’ उन्होंने उम्मीद जताई की इस समीक्षा से काफी समस्याएं दूर हो जाएंगी।

केरल के नदवातुल मुजाहिदीन (KNM) के राज्य प्रमुख टी. पी. अब्दुल्ला कोया मदनी इस घटनाक्रम पर प्रतिक्रिया देने में सावधानी बरत रहे हैं। उन्होंने कहा, ‘मुझे सऊदी अरब सरकार के फैसले के बारे में जानकारी नहीं है, लेकिन इनकी समीक्षा में कोई बुराई नहीं है खासकर इस बात को ध्यान में रखकर कि इस्लामिक स्टेट जैसे आतंकवादी समूह धार्मिक मान्यताओं का गलत इस्तेमाल कर रहे हैं। कट्टरवादी धार्मिक लिखावटों का इस्तेमाल अपनी बुराई को सही ठहराने के लिए करते हैं।

वहीं दूसरी ओर हदीस को लेकर सख्त रुख अपनाने की वजह से आलोचना के शिकार अब्दुल सलाम सुल्लामी ने कहा, ‘किसी हदीस को सिर्फ इसलिए नहीं सही कहा जा सकता कि यह बुखारी में है। आपको बुखारी में विरोधाभासी हदीस मिल सकते हैं। आखिरकार वह भी (इमाम बुखारी) इंसान हैं और गलती करने की संभावना है।’ ‘किसी हदीस को स्वीकार करने का सबसे अच्छा साधन है कि प्रयोगसिद्धी और तर्क-वितर्क के आधार पर इसकी समीक्षा करें। यदि कहीं लिखा है कि आग गर्म नहीं तो इसे खारिज कर दें।’

निश्चय ही यह एक अच्छा कदम होगा, और इससे इस्लामी कट्टरपंथियों पे लगाम भी लगेगी, लेकिन इस कदम पे शक होना भी लाजिमी है, क्युकी सऊदी सरकार स्वयं सलाफी और वहाबी विचारधारा को बढ़ावा देती है और यही विचारधारा पूरे विश्व में आतंकवाद के बढ़ावे के पीछे मुख्य कारण मानी जाती है।