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विधान सभा चुनाव की चर्चा में कोई विकास तो कोई दल-जाति की कर रहा बात

सोनभद्र । जाति और मजहब के नाम पर मतदान की रवायत से इनकार नहीं किया जा सकता, क्योंकि जातिवादी रूढ़ी वादिता हावी है, जो अब नासूर बनती जा रही है। हालांकि ज्यादातर मतदाता जाति, धर्म और मजहब से परे मानव कल्याण तथा विकास के मुद्दे पर वोट देने के लिए कृत संकल्पित बता रहे हैं। इस वक्त चट्टी-चैराहों, चाय-पान की दुकानों से लेकर गांव की चैपालों तक केवल विधान सभा चुनाव की ही चर्चा हो रही है। जिसमें वोटर अपने-अपने तर्क रख रहे हैं।
जनपद के चारों विधान सभा क्षेत्रों घोरावल, रावर्टसगंज, ओबरा (सु) व दुद्धी (सु) में आखिरी चरण सात मार्च को चुनाव होगा। प्रत्याशी तथा उनके समर्थक मतदाताओं को रिझाने के उद्देश्य से जनता के द्वार पहुंच वायदें के पुल बांधने में पीछे नहीं हट रहे हैं। मतदान उनके पक्ष में हो इसके लिए वे हर तरह के हथकंडे भी अपनाने शुरू कर दिए हैं। इन प्रत्याशियों के लोक लुभावने वायदे को सच माने तो अब क्षेत्र में समस्याएं पूरी तरह समाप्त हो जाएगी। फिर भी इनके बड़बड़ाने पर हर चुनाव में ठगी जा रही जनता को विश्वास नहीं हो रहा है। क्योंकि चुनावी वायदे सुनते-सुनते जनता पूरी तरह ऊब चुकी है। इनका कहना है कि वायदे सिर्फ चुनाव के दिन ही होते हैं। चुनाव बीतने के बाद फिर पांच साल तक गुम हो जाते हैं। यही नहीं जनता के बीच जाकर उनकी समस्याओं को सुनकर उसके समाधान के लिए जनप्रतिनिधियों को फुर्सत नहीं मिलती। वे निरूस्वार्थ में ही व्यस्त रहते हैं। यही कारण है कि चुनावी सरगर्मीओं में आम जनता अपने को शामिल होने से कतरा रहे हैं। कहते हैं कि कोउ नृप होइ हमें का हानी, चेरि छोड़ होउब ना रानी समय के साथ चुनाव का तरीका भी बदलता जा रहा है। जो देश व समाज के हित में कतई ठीक नहीं है। अबकि विधानसभा चुनाव में पंचायत चुनाव की भांति जातिवाद पर वोटिंग होने की आशंका जताई जा रही है। सियासी पंडितों की माने तो बात सच हुई तो यह चुनावी फिजा को बदल सकती है। इससे प्रत्याशियों के लिए यहां जातीय समीकरणों को साधना टेढ़ी खीर साबित हो सकती है राजनीतिक जानकारों का यह भी मानना है कि जो जातिगत समीकरणों को साध लेता है, उसी के सिर जीत का ताज सजता है। बहरहाल जो भी हो देखना है कि इस बार प्रत्याशी विकास या जातिगत समीकरणों के सहारे चुनावी वैतरणी पार हो पाते हैं या नहीं।
इन सेट में लगाएं –
प्रदूषण को कोई नहीं बनाता मुद्दा
चुनाव के दौरान प्रत्याशी विकास कराने का वायदा तो करते हैं किंतु प्रदूषण को कोई भी मुद्दा नहीं बनाता और ना ही इस बारे में गंभीरता से सोचता है। ऊर्जा की राजधानी कहे जाने वाले जनपद सोनभद्र मैं प्रदूषित वातावरण जहां जन-जीवन के लिए हानिकारक साबित हो रहा है, वहीं अवैध तरीके से दोहन होने से प्राकृतिक संपदाओं और नदियों के अस्तित्व पर भी संकट खड़ा है। ऐसे में देश के प्रथम प्रधानमंत्री पं० जवाहरलाल नेहरू का क्षेत्र को स्विट्जरलैंड बनाने का सपना टूटता नजर आ रहा है। इस सम्बन्ध में शिक्षित युवा अखिलेश मौर्य व सुनील कुमार सहित तमाम प्रबुद्ध जनों का कहना है कि विकास परक योजनाओं के साथ ही पर्यावरण संरक्षण पर भी जनप्रतिनिधियों द्वारा गंभीरता पूर्वक पहल किया जाना चाहिए। जिससे आम जनजीवन स्वस्थ रहे और प्राकृतिक सौंदर्य बना रहे।