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लगातार हो रहे थे धमाके, लगा बचना मुश्किल है

संजय श्रीवास्वत
अयोध्या। चार दिनों से हंगरी बॉर्डर पर फंसे दो और छात्र मंगलवार सुबह अयोध्या पहुंच गए। शहर के रिकाबगंज निवासी दो छात्र जब घर पहुंचे तो परिजनों के आंसू छलक पड़े।
छात्रों ने जो आपबीती बताई व डराने वाली थी। उनके अनुसार लगातार धमाके हो रहे थे, लग रहा था कि बचना मुश्किल है, अपने घर लौट नहीं सकेंगे। यूक्रेन में फंसे अयोध्या जिले के सभी सात छात्र सकुशल घर वापस आ गए हैं।
सभी ने सरकार के प्रयासों की सराहना की है। शहर के रिकाबगंज निवासी आशुतोष गुप्ता का पुत्र त्रिशूल गुप्ता व भतीजा जयंत गुप्ता मंगलवार की सुबह चार बजे अयोध्या पहुंचे।
परिजन उन्हें सकुशल देखकर भावुक हो उठे उनकी आंखों से खुशी के आंसू छलक उठे। त्रिशूल गुप्ता ने से बात करते हुए कहा कि जब वे यूक्रेन की हालात याद करते हैं तो सिहरन पैदा हो जाती है।
बताया कि वे अपने भाई जयंत के साथ यूक्रेन के खारकीव शहर में थे। एक मार्च को टैक्सी करके रेलवे स्टेशन पहुंचे। जहां शाम को तीन बजे ट्रेन से लिविव पहुंचे। इससे पहले ट्रेन की यात्रा बहुत ही दुखदाई रही।
लगातार धमाके हो रहे थे लगा बचना मुश्किल है। एक-एक बोगी में दो-दो सौ छात्रों को ठूंस-ठूंस कर बिठाया गया था, कई लोग बीमार भी हो गए। लिविव पहुंचे वहां खतरे का सायरन बजने लगा हमें बंकर में छुपना पड़ा।
यहां से हम 40 छात्र बस कर हंगरी पहुंचे। यहां कैंप में रुके। बॉर्डर पर बहुत भीड़ थी। पहले यूक्रेनी लोगों को निकाला जा रहा था फिर छात्रों की बारी आ रही थी।
उन्होंने बताया कि तीन मार्च की शाम छह बजे हंगरी की राजधानी बुडापेस्ट पहुंचे तब जाकर मुसीबत कम हुई। यहां तीन दिन रुकना पड़ा। छह मार्च शाम को हम हवाईजहाज से रवाना हुए।
कहा कि बुडापेस्ट पहुंचने के बाद हमारे लिए भारत सरकार की ओर से सभी जरूरी व्यवस्थाएं की गईं थी। छात्रों को उम्मीद है कि भारत सरकार उनके भविष्य के लिए कुछ उपाय करेगी।
त्रिशूल ने बताया कि 24 फरवरी से लेकर एक मार्च तक हम खारकीव में फंसे रहे। जहां छह दिन में केवल एक बार ही भोजन कर पाए। ज्यादातर समय बंकर में ही गुजारना पड़ता था। खतरे का सायरन बजने के बाद बंकर में जाना पड़ता था।
शाम चार बजे से कर्फ्यू लग जाता था। बताया कि कई बार तो ये स्थिति आई कि भोजन के लिए लंबी लाइन लगती थी जब तक हमारा नंबर आया तब तक भोजन ही खत्म हो चुका था। ऐसे में अक्सर हम कॉफी, बेड व बिस्किट खाकर ही रह जाते थे, खौफ में नींद भी नहीं आती थी।