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रोहित वेमुला को फायदा पहुंचाने के लिए माँ ने खुद को बताया था दलित

खुलासा: रोहित वेमुला रिजर्वेशन के लिए बना था दलित, सुसाइड के लिए खुद जिम्मेदार

नई दिल्ली। रोहित वेमुला सुसाइड मामले में चौंकाने वाला खुलासा हुआ है. मिनिस्ट्री ऑफ़ ह्यूमन रिसोर्स डेवलपमेंट द्वारा गठित एक सदस्यीय जुडिसियल कमीशन की जांच रिपोर्ट सामने आया है कि हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी के रिसर्च स्कॉलर रोहित वेमुला ने खुद निराश होकर सुसाइड किया था और किसी ने उसे उकसाया नहीं था.

एक सदस्यीय जुडिसियल कमीशन में शामिल इलाहाबाद हाईकोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस ए.के. रूपनवाल ने अपनी 41 पन्नों की रिपोर्ट में लिखा है कि अनुशासनहीनता के आरोप में रोहित वेमुला को यूनिवर्सिटी हॉस्टल से निकाला जाना “सबसे तार्किक” फैसला था जो यूनिवर्सिटी के कार्यक्षेत्र में था.

रोहित वेमुला के दलित होने के मामले में जांच रिपोर्ट में कहा गया है कि उसका पालनपोषण उसकी मां वी राधिका ने किया था. जस्टिस रूपनवाल की जांच में यह बात सामने आई है कि राधिका ने खुद को माला समुदाय का घोषित किया था ताकि उनके बेटे रोहित को दलित जाति का प्रमाणपत्र मिल सके.

रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि कि राधिका का ये दावा कि उन्हें पालने-पोसने वाले माता-पिता ने बताया था कि उनके जैविक माता-पिता दलित थे, यह तर्क ‘असंभाव्य और अविश्वसनीय’ है. रिपोर्ट के अनुसार जब राधिका को उसके जैविक माता-पिता का नाम तक नहीं पता है तो उन्हें यह कैसे पता चला कि वे माला जाति की हैं। जस्टिस रूपनवाल की रिपोर्ट के अनुसार रोहित वेमुला का कसते सर्टिफिकेट पूरी जांच प्रक्रिया अपनाए बिना ही बना दिया गया था और जब रोहित की मां माला समुदाय से नहीं आती इसलिए रोहित का कास्ट सर्टिफिकेट सही नहीं था.

जस्टिस रूपनवाल के अनुसार, 26 वर्षीय रोहित ने निजी हताशा के कारण सुसाइड जैसा कदम उठाया न कि भेदभाव के चलते. रूपनवाल की रिपोर्ट के अनुसार, रोहित की मां ने आरक्षण का लाभ लेने के लिए खुद को दलित बताया. रिपोर्ट में आगे बताया गया कि पूर्व केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री स्मृति ईरानी और केंद्रीय मंत्री बंडारू दत्तात्रेय ने केवल अपना जिम्मेदारी निभाई न कि हैदराबाद यूनिवर्सिटी एडमिनिस्ट्रेशन पर कोई दबाव डाला.

जस्टिस रूपनवाल ने अपनी जांच रिपोर्ट अगस्त महीने में ही मिनिस्ट्री ऑफ़ एचआरडी को सौंप दी थी. बता दें कि रोहित वेमुला ने 17 जनवरी को आत्महत्या की थी. पूरे देश में विरोध प्रदर्शन के बाद 28 जनवरी 2016 को मानव संसाधन मंत्रालय ने मामले की जांच के लिए एक सदस्यीय न्यायिक आयोग का गठित की थी.
जस्टिस रूपनवाल की रिपोर्ट तैयार यूनिवर्सिटी के टीचर्स, ऑफिसर्स और अन्य कर्मचारियों से की गई बातचीत पर आधारित है. इस दौरान रिटायर्ड जस्टिस ने यूनिवर्सिटी के 5 स्टूडेंट्स और कैंपस में आंदोलन चलाने वाली ज्वाइंट एक्शन कमेटी के मेंबर्स से भी मुलाकात की.