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राम रहीम की कहानी, रिटायर्ड सीबीआई अफसर की जुबानी

बायीं तस्वीर सीबीआई के रिटायर्ड डीआईजी मुलिंजा नारायणन की है। दायीं तस्वीर जेल ले जाते वक्त बलात्कारी राम रहीम की है।

लखनऊ। जिस सीबीआई की जांच के बदौलत गुरमीत राम रहीम पर बलात्कार के आरोप साबित हुए और उसे सजा मिली, उसी सीबीआई को 2007 में रोकने की कोशिश की गई थी। ये बड़ा खुलासा किया है अखबार इंडियन एक्सप्रेस ने। अखबार ने इस केस की जांच करने वाले सीबीआई के डीआईजी रहे मुलिंजा नारायणन से बात की। फिलहाल रिटायर्ड जिंदगी जी रहे मुलिंजा नारायणन की गिनती सीबीआई के सबसे ईमानदार अफसरों में से होती रही है। 2007 में हाई कोर्ट के आदेश पर उन्हें इस केस की जांच की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। केस सौंपने के साथ ही उन पर इसे रफा-दफा करने का दबाव पड़ना शुरू हो गया था। नारायणन ने इंटरव्यू में यह नहीं बताया है कि दबाव किसकी तरफ से आया था, लेकिन समझना बहुत मुश्किल नहीं है। क्योंकि तब सरकार कांग्रेस की थी। नारायणन इंस्पेक्टर से डीआईजी के पद तक पहुंचे थे। 2009 में रिटायरमेंट से पहले उन्होंने जांच पूरी कर ली। उन्हें भरोसा है कि बाकी दो हत्या के मामलों में भी राम रहीम को सज़ा मिलेगी।

केस सौंपने के साथ बंद करने का हुक्म

मुलिंजा नारायणन ने बताया कि “जिस दिन मुझे ये केस सौंपा गया था, मेरे अधिकारी मेरे कमरे में आए और कहा कि ये केस मुझे इसलिए दिया जा रहा है ताकि मैं इसे रफा-दफा कर दूं।” लेकिन उन्होंने ऐसा इस दबाव के आगे झुकने से इनकार कर दिया। वो कहते हैं “मुझे पता था कि ये केस हाई कोर्ट की तरफ से आया है। 2002 में एफआईआर रजिस्टर हुई थी, लेकिन 5 साल में कुछ भी नहीं किया गया।” अदालत ने सीबीआई को ये कहते हुए केस सौंपा था कि मामले की जांच किसी ऐसे अधिकारी से करवाई जाए, जिसे प्रभावित नहीं किया जा सकता हो। नारायणन ने अपने अधिकारी से कहा कि जांच तो होगी और मैं आपके आदेश नहीं मानूंगा।

‘इसके बाद भी लगातार दबाव आते रहे’

नारायणन बताते हैं कि “इसके बाद भी लगातार कोशिशें होती रहीं। कई नेताओं ने भी फोन किया। इनमें हरियाणा के कई सांसद और बड़े नेताओं के नाम शामिल हैं। लेकिन मैंने फैसला कर लिया था कि इस केस में किसी की बात सुनने की जरूरत नहीं है।” उन्हें डेरा के लोगों की तरफ से लगातार धमकियां मिलती रहीं। चूंकि मुझे ये केस हाई कोर्ट ने सौंपा था, लिहाजा मेरे लिए किसी से दबने का कारण भी नहीं था। हालांकि केस में जांच शुरू करने का आधार सिर्फ वो गुमनाम चिट्ठी थी, जिसके जरिए पीड़िताओं ने बाबा के खिलाफ शिकायत दर्ज करवाई थी। सबसे बड़ी चुनौती थी कि कैसे शिकायतकर्ता को ढूंढा जाए। लेकिन आखिरकार वो पीड़ित तक पहुंचने में कामयाब हो गए। उसके बाद चुनौती थी महिला और उसके परिवार को इस बात के लिए मनाना कि वो मजिस्ट्रेट के आगे चलकर दफा 164 के तहत अपना बयान रिकॉर्ड करवाएं।

जब गुरमीत से सीबीआई ने की पूछताछ!

पीड़िता को मनाने में सबसे बड़ी चुनौती थी राम रहीम का डर। वो खुद और इस केस के गवाह इस बात से डरे थे कि राम रहीम के गुंडे उन्हें मार डालेंगे। किसी तरह से ये सारी रुकावटें दूर हुईं। इसके बाद नंबर था आरोपी राम रहीम का। जब उन्होंने पूछताछ की कोशिश शुरू की तो उसने मना कर दिया। बहुत कोशिश के बाद वो सिर्फ आधे घंटे जवाब देने को तैयार हुआ। लेकिन नारायणन और उनकी टीम के अफसरों ने उससे ढाई घंटे तक कड़ी पूछताछ की। वो सवाल-जवाब के दौरान खड़ा रहा। उसने बहुत विनम्र तरीके से सवालों के जवाब दिए, लेकिन आरोपों से इनकार किया।

नारायणन के बारे में दिलचस्प बातें

  • वो कुल 38 साल तक सर्विस में रहे। इस दौरान इंस्पेक्टर से लेकर डीआईजी तक के पदों पर उन्होंने काम किया।
  • उन्होंने राजीव गांधी हत्याकांड, अयोध्या मंदिर और कंधार प्लेन हाइजैक जैसे हाई प्रोफाइल मामलों की भी जांच की थी।
  • नवंबर 2014 में उन्होंने पीएम नरेंद्र मोदी को चिट्ठी लिखकर शिकायत की थी कि सीबीआई उन्हें उनका बकाया वेतन नहीं दे रही।
  • ये वो पैसे थे जो उन्हें रिटायरमेंट के बाद कंसल्टेंट के तौर पर काम करने पर मिलने चाहिए थे।
  • नारायणन ने अपने अनुभवों पर वायस ऑफ सीबीआई नाम से एक किताब भी लिखी है।