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पूरा माहौल बनाने के बावजूद कांग्रेस ने नरेंद्र मोदी के खिलाफ प्रियंका गांधी को क्यों नहीं उतारा?

हिमांशु शेखर

प्रियंका गांधी के वाराणसी से चुनाव लड़ने को लेकर पिछले कई दिनों से चल रहा सस्पेंस खत्म हो गया है. कांग्रेस ने इस लोकसभा सीट से अजय राय को लोकसभा का टिकट देने का ऐलान कर दिया है. पिछली बार भी अजय राय को वाराणसी से उतारा गया था. तब भी उनकी उम्मीदवारी का ऐलान लगभग आखिर में ही हुआ.

2014 में वाराणसी लोकसभा सीट जीतने वाले नरेंद्र मोदी को 581,022 वोट मिले थे. आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल ने दूसरा स्थान हासिल किया था. उन्हें 209,238 वोट मिले थे. कांग्रेस प्रत्‍याशी अजय राय 75,614 मत पाकर तीसरे स्‍थान पर रहे थे..

ऐसा क्यों हुआ इसे लेकर अलग-अलग सूत्रों से अलग-अलग जानकारियां मिल रही हैं. प्रियंका गांधी वाराणसी से लड़ें कि नहीं, इसे लेकर कांग्रेस के अंदर भी दो धड़े बन गए थे. एक धड़े की राय थी कि अगर प्रियंका यहां से चुनावी मैदान में उतरती हैं तो सपा-बसपा महागठबंधन पर उम्मीदवार वापस लेने का दबाव पैदा होगा. इन लोगों को यह भी लग रहा था कि प्रियंका की उम्मीदवारी की स्थिति में कुछ और छोटे दल अपने उम्मीदवार वापस ले लेंगे ताकि मुकाबला सीधा नरेंद्र मोदी और प्रियंका गांधी के बीच हो.

दूसरी तरफ, कांग्रेस के अंदर ही एक दूसरा धड़ा प्रियंका गांधी के वाराणसी से उतरने के खिलाफ था. उसकी राय थी कि अगर प्रियंका चुनाव लड़ेंगी तो इससे नरेंद्र मोदी बनाम प्रियंका गांधी का ​राजनीतिक विमर्श न सिर्फ वाराणसी बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी शुरू हो सकता है. इन नेताओं के मुताबिक ऐसा होना पार्टी के लिए दोधारी तलवार की तरह होता. इससे फायदा तो यह होता कि लोगों के मन में भाजपा ने जो धारणा बैठा दी है कि नरेंद्र मोदी के विकल्प राहुल गांधी नहीं हो सकते, उन्हें प्रियंका गांधी के तौर पर नया विकल्प मिल जाता. लेकिन नुकसान यह होता कि नेतृत्व को लेकर पार्टी के अंदर एक भ्रम की स्थिति पैदा हो जाती और राहुल गांधी के नेतृत्व पर उठने वाले सवाल बरकरार रहते.

कई जानकार यह भी मानते हैं कि प्रियंका गांधी अपनी चुनावी राजनीति की शुरुआत नरेंद्र मोदी से लड़कर तो नहीं ही करना चाहेंगी जहां ज्यादा संभावना उनकी हार की हो. कांग्रेस के भविष्य के नेता की शुरुआत पराजय से हो, पार्टी ऐसा कभी नहीं चाहेगी. एक वर्ग के मुताबिक इस हार से कांग्रेस को तो नुकसान होगा ही, प्रियंका गांधी को भी इस झटके से उबरने में लंबा समय लग सकता है. कुछ दूसरे जानकारों के मुताबिक प्रियंका गांधी अपनी सियासी पारी की शुरुआत के लिए कोई सुरक्षित दांव ही खेलना चाहेंगी जैसे कि रायबरेली जैसे किसी सीट से उतरना.

बताया यह भी जा रहा है कि कांग्रेस ने एक योजना के जरिए ही नरेंद्र मोदी की टक्कर में प्रियंका गांधी का नाम चलवाया था. इसके लिए करीब दो हफ्ते तक एक सर्वे भी हुआ. इसके तहत वाराणसी सीट का गहराई से अध्ययन किया गया. सर्वे के नतीजे में कहा गया कि प्रियंका गांधी अगर चुनाव लड़ती हैं तो वे नरेंद्र मोदी से पार नहीं पा सकेंगी. जानकारों के मुताबिक पूरा जोर लगाने पर भी उन्हें मिलने वाले संभावित वोटों का आंकड़ा साढ़े तीन लाख के पार नहीं जा रहा था.

आंकड़े बताते हैं कि वाराणसी सीट पर 15 लाख से ज्यादा मतदाता हैं. इनमें मुस्लिम समुदाय के तीन लाख वोटर हैं. इसके बाद ब्राह्मण वोटरों का नंबर आता है जिनकी संख्या पौने तीन लाख के करीब है. इसके अलावा वाराणसी लोकसभा सीट पर दो लाख वैश्य, डेढ़ लाख कुर्मी, डेढ़ लाख यादव, डेढ़ लाख भूमिहार, 65 हजार कायस्थ और 80 हजार चौरसिया समुदाय से ताल्लुक रखने वाले मतदाता हैं. दलित वोटरों की संख्या भी 80 हजार के आसपास है.

सर्वे के मुताबिक कांग्रेस सोच रही थी कि अगर सपा-बसपा महागठबंधन यहां उम्मीदवार न उतारे तो मुस्लिम समुदाय के दो लाख वोट प्रियंका गांधी को मिल जाएंगे. इसके अलावा अंदाजा लगाया जा रहा था कि बाकी समुदायों के मिलाकर डेढ़ लाख वोट पार्टी के खाते में आ सकते हैं. लेकिन सपा-बसपा महागठबंधन ने यहां से शालिनी यादव को उतार दिया. ऐसे में कांग्रेस के लिए समीकरण और मुश्किल हो गए. यहां यह भी याद रखना जरूरी है कि फिलहाल वाराणसी लोकसभा क्षेत्र के तहत आने वाली पांचों विधानसभा सीटों में से कांग्रेस के पास एक भी नहीं है.

जैसा कि ऊपर जिक्र हुआ, नरेंद्र मोदी को पिछली बार करीब छह लाख वोट मिले थे. कांग्रेस के सर्वे में यह भी कहा गया कि वे इस बार प्रधानमंत्री के रूप में उम्मीदवार हैं लिहाजा उनके वोट पिछली बार के मुकाबले बढ़ेंगे ही. माना जा रहा है कि इन सभी समीकरणों ने वाराणसी से प्रियंका गांधी की उम्मीदवारी पर राहुल गांधी को कदम पीछे हटाने के लिए मजबूर कर दिया.