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डोकलाम पर चीन की सेना और राजनीतिक नेतृत्व में दरार

नई दिल्ली। डोकलाम में भारत और चीन की सेनाओं के विवादित क्षेत्र से पीछे हट जाने का भले ही एेलान हो चुका है, लेकिन यह बात सामने आई है कि सेनाएं महज 150-150 मीटर और पीछे हटी हैं। बताया जा रहा है कि चीन की सेना के दबाव के कारण यह स्थिति पैदा हुई है, जबकि चीन का राजनीतिक नेतृत्व गतिरोध पूरी तरह खत्म करने के पक्ष में है। 16 जून से शुरू हुए डोकलाम गतिरोध के दौरान दोनों देशों की सेनाएं महज 150 मीटर की दूरी पर आमने-सामने थीं। गतिरोध सुलझाने के लिए भारत और चीन के बीच सहमति बनी थी कि दोनों देशों की सेनाओं को आमने-सामने से हटाया जाए। अब बताया जा रहा है सेनाएं वहां से महज 150 मीटर और पीछे हटी हैं।

सूत्रों का कहना है कि चीन का राजनीतिक नेतृत्व अब भी डोकलाम में 16 जून से पहले की स्थिति कायम करने के लिए तैयार है, लेकिन पीएलए (पीपल्स लिबरेशन आर्मी) यानी चीन की सेना उसे रोके हुए है। यह चीनी सेना का ही दबाव था कि डोकलाम में पहले भारतीय सैनिकों के हटने और फिर चीनी सैनिकों के हटने की शर्त रखी गई। भारत ने इस पर अमल करते हुए अपने सैनिकों के पीछे हटने की सूचना चीन को तय समय पर दे दी, लेकिन चीनी सेना ने अपनी ओर से संदेश देने में देरी की। काफी हीलाहवाली के बाद चीनी सैनिक पीछे हटे थे। अभी यह साफ नहीं कि सेनाएं पूरी तरह पीछे कब तक हटेंगी और 16 जून से पहले की स्थिति कब बहाल होगी।

भारत और चीन के राजनीतिक नेतृत्व की पहल से ही डोकलाम का गतिरोध हल हुआ था। जी-20 सम्मेलन के दौरान हैम्बर्ग में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग अलग से मिले और गतिरोध सुलझाने का रास्ता साफ किया। इसके बाद दोनों देशों के बीच राजनयिक बातचीत के आधार पर सेनाओं के पीछे हटने पर सहमति बनी थी। इसी सहमति के बाद प्रधानमंत्री ब्रिक्स देशों के सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए चीन गए और उनकी वहां के राष्ट्रपति शी चिनफिंग के साथ दोबारा अच्छे माहौल में बातचीत हुई और संबंध सुधारने पर चर्चा हुई। चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने भी गुरुवार को कहा कि चीन और भारत को एक दूसरे को खतरा समझने वाली मानसिकता को दूर करके यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनके आपसी मतभेद नियंत्रण से बाहर न जाने पाएं। उन्होंने यह भी कहा कि पिछले कुछ महीनों में आपसी संबंध स्पष्ट कारणों से प्रभावित और कमजोर हुए हैं।

बता दें कि चीनी राष्ट्रपति ने पीएलए के जॉइंट स्टाफ डिपार्टमेंट के चीफ को हटाया, उसके तुरंत बाद भारत और चीन के बीच सहमति सामने आई थी। चीन में सैन्य सुधारों के तहत जॉइंट स्टाफ डिपार्टमेंट के चीफ पद का गठन पिछले साल ही किया गया था, जो सबसे ऊंचा सैन्य पद है। शी चिनफिंग 2015 से सैन्य सुधारों में जुटे हैं, भ्रष्ट सैन्य अधिकारियों से निपट रहे हैं और करीबी अफसरों को आगे बढ़ा रहे हैं, लेकिन सेना के साथ उनकी मुश्किल खत्म नहीं हो रही है। शी चिनफिंग 2014 में जब भारत आए थे, तब भी चीनी सेना ने भारत में घुसपैठ की कोशिश की थी।

हाल के दिनों में शी चिनफिंग की ओर से पीएलए को सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी के आदेशों का पालन करने की हिदायत देने की जरूरत बार-बार पड़ी है। लगातार मजबूत होती पीएलए के सामने शी चिनफिंग की ताकत का अंदाजा अब कम्युनिस्ट पार्टी की अगली कांग्रेस में साफ होगा, जो 18 अक्टूबर को होगी। माना जा रहा है कि तब तक डोकलाम में 16 जून से पहले की स्थिति बहाल होनी मुश्किल है।