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ट्रंप कुछ देने नहीं बल्कि लेने ही आ रहे हैं भारत

राजेश श्रीवास्तव

अब जब कल अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प भारत आ रहे हैं तो तमाम सवाल भी खड़े हो रहे हंै कि भारत और अमेरिका के बीच जिन मुद्दों को लेकर मतभ्ोद हैं उन पर भी कुछ होगा या नहीं। लंबे समय से अमरीका भारत के बड़े पॉल्ट्री और डेयरी बाज़ार में आने की इजाजत मांग रहा है। जबकि भारत अपने यहां बिकने वाले मेडिकल औजारों की कीमतों को नियंत्रित करता है। अमरीकी टेक्नॉलॉजी कंपनियों को अपने डेटा स्टोरेज यूनिट भारत में लगाने के लिए कहा जा रहा है लेकिन इन कंपनियों का कहना है कि इससे उनका कारोबारी खर्च बढ़ जाएगा। प्रधानमंत्री मोदी भारत को दी जाने वाली कारोबारी रियायतों की बहाली की मांग कर रहे हैं, जिसे ट्रंप प्रशासन ने 2०19 में बंद कर दिया था। इसके साथ ही भारत अपनी दवाएं और कृषि उत्पाद अमरीकी बाज़ारों में बेरोकटोक बेचना चाहता है। ये वो मुद्दे हैं जिन्हें लेकर दोनों देशों के बीच मतभेद हैं। भारत का कहना है कि ट्रंप प्रशासन को उसे चीन के पैमाने पर नहीं तौलना चाहिए जिसकी अर्थव्यवस्था भारत से पांच गुनी बड़ी है।
ट्रंप प्रशासन के एक अधिकारी ने बताया कि राष्ट्रपति की भारत यात्रा के दौरान कोई कामचलाऊ कारोबारी समझौता नहीं होने वाला है.
हालांकि दौरे से ठीक पहले ट्रंप प्रशासन का यह कहना कि भारत में बढ़ते कारोबारी बाधाओं को लेकर वाशिगटन की अभी भी बहुत सारी चिताएं हैं। हम इन चिताओं का हल चाहते हैं जो हम अभी तक हासिल नहीं कर पाए हैं । इन्हीं चिताओं की वजह से भारत को दी जा रही कारोबारी रियायतें ख़त्म की गईं। अपने बाज़ार में हमें वाजिब और बराबरी की पहुंच देने में भारत पूरी तरह से नाकाम रहा है। इसके अलावा राष्ट्रपति भवन के प्रवक्ता ने भारत और पाकिस्तान के बीच जारी तनाव और कश्मीर पर राष्ट्रपति ट्रंप की मध्यस्थता पेशकश को लेकर भी अपनी बात रखी। उन्होंने कहा कि भारत और पाकिस्तान के तनाव को कम करने की दिशा में राष्ट्रपति ट्रंप बेहद उत्साहित हैं। वे दोनों देशों को द्बिपक्षीय वार्ता के ज़रिए मतभेद सुलझाने के लिए प्रोत्साहित करेंगे। हम ये भी मानते हैं कि अपनी ज़मीन पर चरमपंथियों पर क़ाबू पाने की पाकिस्तानी कोशिश की बुनियाद पर ही दोनों देशों की सार्थक बातचीत हो सकती है।
इन सबके बीच ट्रम्प ने यह कहकर विवाद खड़ा कर दिया है कि भारत का बर्ताव कारोबार के क्षेत्र में तो अच्छा नहीं रहा है पर वे भारत की यात्रा इसलिए कर रहे हैं क्योंकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी उन्हें पसंद हैं और दोनों अच्छे मित्र हैं। इसके बावजूद भारत अपने बड़े दिल के चलते ट्रंप का बाहे फैलाकर स्वागत करने को अभिभूत है। इस विसंगतिपूर्ण बयान से ट्रम्प की यह यात्रा ही अपने आप में अजीब सी भावभूमि पर खड़ी हो जाती है और वह किस दिशा में जाएगी तथा उससे भारत को क्या लाभ होगा, यह देखा जाना जरूरी हो जाता है। पहला सवाल तो यह बनता है कि क्या अमेरिकी राष्ट्रपति अपने देशी हितों को छोड़कर निजी पसंदगी के आधार पर यह यात्रा कर रहे हैं? अगर ऐसा है तो अमेरिकी जनता को उनसे इस बाबत सवाल करना चाहिए। बहरहाल, यह अमेरिका और अमेरिकी जनता का मसला है, इसलिए उसे छोड़कर हमें भारत के दृष्टिकोण से ट्रम्प की यात्रा को देखना चाहिए।
यात्रा के पहले ही भारत की इस आलोचना पर भारत को मौन न रहकर अमेरिकी प्रशासन से सवाल पूछा जाना चाहिए और आवश्यकता हुई तो ट्रम्प की मेहमाननवाजी से इंकार करते हुए इस दौरे को ही रद्द करने का ही साहस दिखाना चाहिए था। हालांकि, महाशक्तियों के प्रति बेहद आसक्त मोदी सरकार ने उनका स्वागत करने का फैसला किया। हमारी वैदेशिक नीति का वह गुटनिरपेक्षता का चमकदार अध्याय अवश्य इस अवसर पर याद कर लेना चाहिए जब आजादी के बाद जवाहरलाल नेहरू ने शीतयुद्ध के काल में भी अमेरिका के दबाव में आने से इंकार कर दिया था, यहां तक कि जब एक अमेरिकी राजनयिक ने भारत को यह कहकर गीदड़ भभकी दी थी कि जो अमेरिका के साथ नहीं वह अमेरिका का दुश्मन है, तो भी। इतना जरूर है, कि अगर ट्रम्प द्बारा यह बयान ठीक इस दौरे के पहले नहीं दिया गया होता तो एक सामान्य वैदेशिक नीति की प्रक्रिया के तहत इस यात्रा का आंकलन किया जाता पर अब उसे दूसरे दृष्टिकोण से देखा जाना जरूरी है। यह दो ऐसे राष्ट्राध्यक्षों के बीच होने वाली मुलाकात है जिनमें एक हमेशा चुनावी मोड में रहते हुए दूसरी बार निर्वाचित होकर सत्ता में आए हैं, तो दूसरे वाले जल्दी ही फिर से चुनाव लड़ने जा रहे हैं। ट्रम्प उसी मोदी से मित्रता का दावा करते हुए भारत आ रहे हैं, जो स्वयं अपने आप को ट्रम्प के विरोधी दल के पिछले अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के मित्र होने का दम भरते रहे हैं । यह अलग बात है कि राष्ट्रपति पद से हटने के बाद बराक ने बता दिया था कि भारत के पूर्ववतीã प्रधानमंत्री मनमोहन सिह उनसे (मोदी से) बेहतर थे। जो भी हो, ऐसे स्थान पर पहुंचने के बाद मित्रता पद से होती है, न कि व्यक्ति से- यह मोदी और ट्रम्प दोनों ही जितनी जल्दी समझ लें, उतना अच्छा है। वैसे भी दोनों के व्यक्तित्व में ऐसा कुछ भी नहीं है कि पद से हटने के बाद उनके साथ कोई मित्रता बनाए रखने में दिलचस्पी लेगा।
अमेरिकी राष्ट्रपति ने यह भी संकेत दे दिया है कि वे इस दौरे में भारत के साथ कोई बड़ा व्यापारिक समझौता नहीं करेंगे। इसमें वक्त लगेगा लेकिन आगे जाकर कुछ बेहतर डील करेंगे। इस साल के लगभग अंत में होने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में ट्रम्प भी उम्मीदवार हैं और वे जानते हैं कि नरेन्द्र मोदी उनके लिए भारत में रहने वाले भारतीयों के वोट दिला सकते हैं। इसलिए भारत के कथित रूप से ‘खराब बर्ताव’ के बावजूद ट्रम्प इसलिए भारत आ रहे हैं क्योंकि उन्हें मोदी पसंद हैं। क्यों न हों, आखिर पिछले वर्ष अमेरिका जाकर ‘हाउडी मोदी’ कार्यक्रम के अंतर्गत मोदी जी ने ट्रम्प के चुनाव प्रचार में एक तरह से शिरकत करते हुए ‘अब की बार ट्रम्प सरकार’ का नारा तो लगा ही दिया था। ट्रम्प के इस बयान के बाद कि ‘भारत का बर्ताव अच्छा नहीं रहा है’, भारत द्बारा नौसेना के लिए अमेरिका में बनने वाले रोमियो हेलीकॉप्टर खरीदने हेतु 2.6० अरब डॉलर की डील को सुरक्षा मामलों की केबिनेट समिति ने मंजूरी दे दी। साथ ही प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली इस सुरक्षा समिति ने अमेरिका से ही 1.86 अरब डॉलर की मिसाईल रक्षा प्रणाली की खरीद पर भी विचार-विमर्श किया।
अब देखना यह है कि इतनी सारी विसंगतियों के बीच जब टàंप भारत आ रहे हैं तो इस दौरे से किसी को कुछ हासिल होने वाला है या महज ट्रंप झूला झूलेंगे, ताज का दीदार करेंगे, रामलीला से लेकर रासलीला तक देख्ोंगे। साबरमती आश्रम की सैर करेंगे और अपने वोटों को साध कर लौट जाएंगे या देश को भी कुछ मिलने वाला है। लेकिन अब तक ट्रंप की जुबानी जंग से समझा जाए तो उम्मीद तो कुछ भी नहीं है।