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घरेलू हिंसा कानून पर 4 हफ्ते में सुप्रीमकोर्ट ने मांगा डेटा

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने घरेलू हिंसा के मामले में राज्यों की ओर से राजस्व अधिकारियों और जिला कलेक्टरों को सुरक्षा अधिकारियों के रूप में नियुक्त करने पर नाराजगी जताई। दरअसल, घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण अधिनियम 2005 के तहत संकट में महिलाएं इन अधिकारियों संपर्क करती हैं। SC ने केंद्र को लंबित मुकदमों की संख्या, दर्ज शिकायतों, फंडिंग पैटर्न और सुरक्षा अधिकारियों के लिए पात्रता मानदंड की जानकारी देने का निर्देश दिया। साथ ही यह पता लगाने के लिए भी कहा कि इस कानून की 17 साल की यात्रा कितनी प्रभावी रही है।

केंद्र को चार सप्ताह के भीतर यह जानकारी उपलब्ध कराने का आदेश देते हुए पीठ ने कहा कि देश में बड़े कानून बनाए गए हैं, जिनकी जमीनी स्तर पर प्रभावशीलता को जानने के लिए शायद ही कोई तंत्र है। न्यायमूर्ति यूयू ललित, न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट और न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा की पीठ ने कहा, ”सुंदर, भव्य कानून बनाना एक बात है, लेकिन जमीन पर उसके असर को जानने के लिए तंत्र तैयार करना होगा।”

न्यायालय ने वी द वूमेन ऑफ इंडिया नाम के गैर सरकारी संगठन की ओर से दायर जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की। याचिका में आरोप लगाया गया था कि अधिनियम के तहत मुहैया कराए गए सुरक्षा अधिकारी पर्याप्त नहीं हैं। एनजीओ की ओर से पेश हुईं एडवोकेट शोभा गुप्ता ने अदालत को बताया कि भले ही उन्हें नियुक्त किया गया हो, लेकिन घरेलू हिंसा की शिकार महिलाओं के लिए अधिनियम के तहत सुरक्षा, मुआवजे और अन्य राहत के लिए उनसे संपर्क की शायद ही कोई जानकारी उपलब्ध है।