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क्या गाँधी परिवार भारत में केजीबी के जासूस थे? अगर नहीं तो फिर क्यॊं केजीबी उनके खाते में करॊडों रुपए डालती थी?

दस्तावेज़ कभी झूठ नहीं बॊलते बल्की वे तो प्रमाण होते हैं किसी भी घटना का। और जब दस्तावेज़ किसी बडे देश का हो तो वह कभी भी झूठा नहीं हो सकता। रूस की KGB याने कोमितेत गोसुदर्स्त्वेन्नोय बेज़ोप्स्नोस्ति एक जासूस संस्था थी जो सॊवियत संघ के विघटन काल में रूस में अस्तित्व में थी।

इसी संस्था के अधिकारी विकटर चेब्रीकॊव ने १९८५ में एक खत लिखी थी जिस में उन्हॊंने सॊवियत यूनियन की कम्यूनिष्ट पार्टी से २०,००० करॊड अमरीकी डॉलर को सॊनिया गांधी, राहुल गांधी और पाओला माईनॊ(सॊनिया की माँ) के बैंक खाते में जमा करवाने की अनुज्ञा माँगी थी। इस वक्तव्य को रूस की पत्रकर्ता डॉक्टर यूवेगेनिया अलबाट्स ने अपनी किताब में लिखा है।

इस धनराशी को २० दिसंबर १९८५ को एक प्रस्ताव द्वारा पारित कर गाँधी परिवार के खाते में डाला गया था। इसी पत्रकर्ता ने अपने किताब में लिखा है की ऐसी धनराशी सॊनिया गाँधी को १९७१ से दिया जा रहा था। क्या अर्थ है इसका? क्यॊं एक रूसी जासूसी संस्था सॊनिया को इतनी बडी धनराशी देती रही? क्या संबंध थे सॊनिया और इस संस्था के बीच? क्या आज भी सॊनिया गांधी को विदेशी मूल से पैसे आते हैं?

यूवेगेनिया अलबाट्स अपने ‘ द स्टेट वित इन ए स्टेट: द केजीबी एंड इट्स हॊल्ड आन रशिया’ नामक अंग्रेज़ी किताब में लिखती है कि १९८२ में इस जासूसी संस्था ने बडी धनराशी को राजीव गांधी द्वारा चलाये जाने वाली एक कंपनी में जमा करवाया था। राजीव के मृत्यु के पष्चात इस अपार धनराशी की एकलौती माल्किन बनगयी सॊनिया गांधी। इस घटना का पता तब लगा जब सॊवियत युनियन का विघटन हुआ थी।

स्विस की एक न्यूस मेगज़ीन स्वेज़र इल्लुस्ट्रेटे( ११ नवंबर १९९१) ने इस वाकिये पर प्रकाश डालते हुए लिखा की केजीबी के दस्तावेज से यह बात खुलकर सामने आया है की सॊनिया गांधी जो की दिवंगत राजीव गांधी की पत्नी है वह एक गुप्त बैंक खाते को संभाल रही थी जो उसके नाबालिक बेटे राहुल गांधी के नाम से थी। इस खाते में २.५ बिलियन स्विस्स फ़्रांक जमा की गयी थी।

वसिली मित्रोकिन द्वारा लिखि गयी किताब ‘द मित्रॊकिन आर्चिव’ इस बात पर प्रकाश डालता है कि इंदिरा गांधी के काल से रूस की केजीबी संस्था गांधी परिवार को बडी धनराशी देती रही है। इतना ही नहीं इंदिरा गांधी के कार्यकाल में कई सारे केजीबी के गुप्तचर भारत में बसे हुए थे। खुद इंदिरा भी केजीबी की एजेंट हुआ करती थी जिसका नाम ‘वानॊ’ हुआ करता था। इंदिरा कॊ इसके बदले में सूटकेस भर भर के पैसा मिलता था। १९७८ तक देश में ३० केजीबी गुप्तचर काम कर रहे थे जिनमें से १० तो भारतीय ही थे!

यह मित्रॊकिन आर्चिव १९९९ में प्रकाशित हुई थी और इसके सह संपादक स्वयं केजीबी के एक पूर्व गुप्तचर हुआ करते थे। क्या इसका तात्पर्य यही है की सॊनिया गांधी भारत में विदेशी एजेंट है और उनका मूल उद्देश भारत को बर्बाद करने का है? वर्षॊं से गांधी परिवार भारत को धोखा देती रही और अब भी देती है तो क्या उनपर कॊई कार्यवाही नहीं हॊनी चाहिए? अगर इनके हाथ में दुबारा सत्ता आजाए तो क्या होगा इस देश का?