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आलोक रंजन पर गाज़ और राहुल भटनागर बनगए योगी के खाश………….इसे कहते हैं राजनीति का खाज़

लखनऊ। विधान सभा चुनावों में सत्ता से बेदखल सरकार के कार्यो की शिकायतों की जांच करना आने वाली सरकारों का नियम बन चुका है।  केंद्र की सरकार हो या प्रदेश की राज्य सरकार, सत्ता से हटने के बाद सभी राजनीतिक पार्टियां शायद इन तथ्यो से परिचित रहती है। शायद इसी कारण से सत्तारूढ़ पार्टी साम,दाम,दंड,भेद का नियम अपनाकर सत्ता में बने रहनके हेतु चुनाव जीतना चाहती है।

यही हाल कुछ उत्तर प्रदेश में है जहां सत्ता से बेदखल समाजवादी पार्टी के कामो की जांच भाजपा द्वारा शुरू की जा चुकी है। इससे पूर्व मायावती काल के कामो की जांच अखिलेश सरकार द्वारा शुरू की गई थी,यद्यपि अब भाजपा को गिराने के उद्देश्य से सपा और बसपा का मिलान का कर्गक्रम जोरो पर है। यह बात दूसरी है कि जांच एजेंसिया अखिलेश सरकार के कार्यकाल में प्रश्नगत जाँच पूरी नही कर सकी।

अखिलेश सरकार के समय मे हुये कार्यो यथा जेपी सेंटर,रिवर फ्रंट योजना,आगरा एक्सप्रेसवे या खरीद फरोख्त- सभी मामलों में जांच प्रचलित हो चुकी है।न्यायमूर्ति आलोक कुमार ने रिवर फ्रंट योजना में हुये घोटालो की रिपोर्ट राज्य सरकार को सौप दी है। राज्य सरकार ने नगर विकास मंत्री सुरेश खन्ना की अध्यक्षता में एक चार सदस्यीय समिति गठित कर दी है जो आलोक कुमार की जांच आख्या पर दोषियों के विरुद्ध कार्यवाही की संस्तुति करेगी। इस समिति की एक बैठक हो चुकी है और दूसरी अगले सप्ताह में होने की आशा है।देखना यह है कि कौन कौन अधिकारी दोषी पाया जाता है और उसके विरुद्ध किस कार्यवाही की संस्तुति यह समिति करेगी और कब ?

सूत्रों के अनुसार जांच रिपोर्ट में कही भी तत्कालीन प्रमुख सचिव वित्त राहुल भटनागर का जिक्र तंक नही है जबकि किसी भी प्रोजेक्ट के अनुमोदन,संशोधन या उसके मूल्य में वृद्धि का पूरा अधिकार प्रमुख सचिव वित्त या उसकी अध्यक्षता में गठित होने वाली वित्त व्यय समिति आदि का ही होता है। प्रोजेक्ट कास्ट को दोगुनी और चौगुनी करने के अनुमोदन देने का पूर्ण दायित्व वित्त विभाग का ही होता है तब जांच की परिधि में प्रमुख सचिव वित्त का न होना ,जांच आख्या पर ही प्रश्न उठाता है।

तत्कालीन प्रमुख सचिव वित्त राहुल भटनागर की वित्त विभाग में अपनी अलग धाक थी।जिसको चाहते उसे पुनर्नियुक्ति देते और जिसे नही चाहते, काबिल होते हुए भी उसकी पत्रावली दाखिल दफ्तर कर दिया करते थे।

ईमानदार अधिकारी का तातपर्य यह नही की उच्चाधिकारियों या नेताओ के दबाव में काम करके अपने को स्वच्छ छवि का अधिकारी साबित करता रहे।

जांच रिपोर्ट के आधार पर तत्कालीन मुख्य सचिव आलोक रंजन पर तो गाज़ गिर रही है । वर्तमान मुख्य सचिव,जो आलोक रंजन के मुख्य सचिव काल में प्रमुख सचिव वित्त जैसे सूबे के सबसे महत्वपूर्ण पद की शोभा बढ़ा रहे थे, सभी मामलों में बेदाग कैसे हो सकते है- बड़ा प्रश्न है !

प्रमुख सचिव वित्त के रूप में राहुल भटनागर मामले मे दागी होने से अबतक बचे हुए है। क्या आलोक रंजन को यह नही मालूम कि जो मामले समीक्षा के लिए उनके सामने आते थे उनपर प्रमुख सचिव वित्त की सहमति होती थी।  कदाचित मुख्य सचिव की समीक्षा बैठक में राहुल भटनागर भी बतौर प्रमुख सचिव वित्त की हैसियत से मौजूद रहते थे।यह औरत तो मुस्तक़िल चालू भी है।सूत्रों के अनुसार आलोक रंजन की ही कृपा से इन्हें मुख्य सचिव का पद मिला था।

माना जा रहा है कि या तो मुख्य मंत्री योगी आदित्य नाथ की राहुल भटनागर पर  विशेष कृपा है या मुख्य सचिव के पद का लाभ उठाते हुये फसाद वाली फाइलों में स्वार्थपरक कार्यवाही पूर्ण कर ली गई, जिसके कारण  राहुल भटनागर का नाम किसी भी शिकायत या जांच में नही आ रहा है।

वैसे किसी भी जांच के दौरान ऐसे अधिकरियो को उन पदों से हटा दिया जाता है जिस पद  पर रहते हुये जांच प्रभावित हो सकती है।