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आज से शारदीय नवरात्र की शुरुआत, हम बताते हैं किस दिन आदि शक्ति के किस रूप की होगी पूजा

लखनऊ। आज गुरुवार से शारदीय नवरात्र की शुरुआत हो रही है. घरों में नौ दिनों तक देवी के नौ रूपों की पूजा की जाएगी. बेहद भक्तिभाव से मनाए जाने वाले इस पर्व में नौ दिनों तक व्रत रखने की परंपरा है.

नवरात्र में मां आदि शक्ति के नौ रूपों का पूजन किया जाता है. हर दिन शक्ति के अलग रूप की पूजा होती है. यह नौ दिन भारतीय संस्कृति की अनूठी झलक पेश करते हैं. नवरात्र का हर दिन समान भक्ति भाव से पूजा जाता है.

नवरात्र का पहला दिन, मां शैलपुत्री: नवरात्र के पहले दिन शक्ति स्वरूपा मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है. मां शैलपुत्री को आदि शक्ति का प्रथम स्वरूप माना जाता है. पर्वतराज हिमालय के घर पुत्री रूप में उत्पन्न होने के कारण इनका नाम ‘शैलपुत्री’ पड़ा. नवरात्र-पूजन में प्रथम दिवस इन्हीं की पूजा और उपासना की जाती है. मां के दाहिने हाथ में त्रिशूल और बायें हाथ में कमल का फूल सुशोभित है. शैलपुत्री माता का वाहन बृषभ है.

नवरात्र का दूसरा दिन, मां ब्रह्मचारिणी: नवरात्र के दूसरे दिन माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा जाती है. ब्रह्म का अर्थ है तपस्या और चारिणी यानी आचरण करने वाली. इस प्रकार ब्रह्मचारिणी का अर्थ हुआ तप का आचरण करने वाली. मां ब्रह्मचारिणी के दांए हाथ में जप की माला और बाएँ हाथ में कमंडल रहता है. मां दुर्गा का यह स्वरूप भक्तों और सिद्धों को अनंत फल देने वाला है. इनकी उपासना से तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार और संयम की वृद्धि होती है.

नवरात्र का तीसरा दिन, मां चन्द्रघण्टा: नवरात्र के तीसरे दिन मां के चंद्रघंटा स्वरूप का पूजन किया जाता है. मां चंद्रघंटा का स्वरूप शांतिदायक और कल्याणकारी है. मां चंद्रघंटा के माथे पर अर्धचंद्र शोभित रहता है. इसी लिए मां को चंद्रघंटा कहा जाता है. चंद्रघंटा मां के तीन नेत्र व दस भुजाएं हैं. मां अनेक अस्त्र शस्त्र से सुशोभित हैं. मां का वाहन सिंह है.

नवरात्र का चौथा दिन, कूष्माण्डा माता: नवरात्र-पूजन के चौथे दिन कूष्माण्डा देवी के स्वरूप की ही उपासना की जाती है. माँ की आठ भुजाएँ हैं. ये अष्टभुजा देवी के नाम से भी विख्यात हैं. इनके सात हाथों में कमंडल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा है. आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जपमाला है. इनका वाहन सिंह है.

नवरात्र का पांचवा दिन, स्कन्दमाता: शेर पर सवार होकर माता दुर्गा अपने पांचवें स्वरुप स्कन्दमाता के रुप में भक्तजनों के कल्याण के लिए सदैव तत्पर रहती हैं. शास्त्रों के अनुसारा माता स्कन्दमाता की पूजा करने से सारी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है और उसे इस मृत्युलोक में परम शांति का अनुभव होने लगता है. माता की कृपा से उसके लिए मोक्ष के द्वार स्वमेव सुलभ हो जाता है.

नवरात्र का छठा दिन, मां कात्यायनी: माँ दुर्गा के छठे स्वरूप का नाम कात्यायनी है. इनके पूजन से अद्भुत शक्ति का संचार होता है व दुश्मनों का संहार करने में ये सक्षम बनाती हैं. पूरे मन से पूजा करने वाले भक्तों को बहुत सरलता से माँ के दर्शन प्राप्त हो जाते हैं.

नवरात्र का सातवां दिन, मां कालरात्रि: माँ दुर्गाजी की सातवीं शक्ति कालरात्रि के नाम से जानी जाती हैं. दुर्गापूजा के सातवें दिन माँ कालरात्रि की उपासना का विधान है. माँ की नाक के छिद्रों से आग की भयंकर ज्वालाएँ निकलती रहती हैं. इनका वाहन गदहा है. ये ऊपर उठे हुए दाएं हाथ की मुद्रा से सभी को वर प्रदान करती हैं. बाईं तरफ के ऊपर वाले हाथ में लोहे का काँटा तथा नीचे वाले हाथ में कटार है.

नवरात्र का आठवां दिन, मां महागौरी: महाष्टमी के दिन महागौरी की पूजा का विशेष विधान है. देश भर में महाष्टमी की पूजा की छटा देखते ही बनती है. महागौरी का स्वरूप उज्जवल, कोमल, एवं श्वेत है. मां की चार भुजाएं हैं. इन चारों भुजाओं में शंख, चक्र, धनुष और वाण धारण किए हुए हैं.

नवरात्र का नौवां दिन, मां सिद्धिदात्री: माँ दुर्गाजी की नौवीं शक्ति का नाम सिद्धिदात्री हैं. ये सभी प्रकार की सिद्धियों को देने वाली हैं. मां सिद्धिदात्री सुर और असुर दोनों के लिए पूजनीय हैं. जैसा कि मां के नाम से ही प्रतीत होता है मां सभी इच्छाओं और मांगों को पूरा करती हैं. ऐसा माना जाता है कि देवी का यह रूप यदि भक्तों पर प्रसन्न हो जाता है, तो उसे 26 वरदान मिलते हैं. माँ सिद्धिदात्री चार भुजाओं वाली हैं. इनका वाहन सिंह है. ये कमल पुष्प पर भी आसीन होती हैं. इनकी बाएं तरफ के नीचे वाले हाथ में कमलपुष्प है.