मगध के एक आधुनिक चाणक्य जिसने बचपन में चाय बेचने वाले नरेंद्र मोदी की चुनावी रणनीति की कमान को संभालते हुए लोकसभा चुनाव 2014 में उनका प्याला वोटों से भर दिया, फिर नीतीश कुमार को ‘बिहार में बहार हो नीतेशे कुमार हो’ के नारे के साथ फिर से राज्य के सर्वोच्च कुर्सी पर काबिज किया और अमरिंदर सिंह को पंजाब का कैप्टन बना दिया। जगनमोहन को पदयात्रा के सहारे सीएम की कुर्सी तक पहुंचाया और ममता को बंगाल में जीत की सियासी हैट्रिक लगवाई। राजनीतिक विश्लेषक, चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर की उपलब्धियों का कहकहा जब भी पढ़ा या लिखा जाएगा तो इन घटनाक्रमों का जिक्र खुद ब खुद आ जाएगा। लेकिन इसके साथ ही राजनीति के इस आधुनिक चाणक्य के साथ जुड़ी है एक और खास चीज जो अक्सर कामयाबी के आगे धूमिल होकर रह जाती है। प्रशांत किशोर जिस भी पार्टी के लिए काम करते हैं वहां उनके कार्यशैली की वजह से धुर विरोधी भी ढेर सारे पैदा हो जाते हैं। फिर आखिरकार एक टाइम पार्टी के लिए ऑल टाइम फेवरेट रहने वाले पीके की वहां से विदाई हो जाती है। बंगाल चुनाव में ममता की जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले प्रशांत किशोर और ममता बनर्जी के लिए बीच सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है।