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आंग सान सू ची ने कहा- रोहिंग्या मुसलमानों पर एक्शन सही, अंतरराष्ट्रीय दबाव में नहीं आएंगे

संयुक्त राष्ट्र। दुनियाभर में रोहिंग्या मुसलमानों को लेकर उठ रहे सवालों के बीच संयुक्त राष्ट्र की बैठक में म्यांमार की स्टेट काउंसलर आंग सान सू ची ने कहा है कि हम अंतरराष्ट्रीय दबाव में नहीं आएंगे. उन्होंने अपने भाषण में रखाइन प्रांत में अराकान इलाक़े में रह रहे कुछ रोहिंग्या मुसलमानों पर हुई कार्रवाई को सही करार दिया. उन्होंने ये तो कहा कि किसी भी तरह से मानवाधिकार का उल्लंघन ठीक नहीं है, लेकिन कुछ रोहिंग्या मुसलमानों को आतंकवादी बताने से भी नहीं चूकीं. उन्होंने रोहिंग्या मुसलमानों एक वर्ग पर पुलिस बलों पर हमले और देश विरोधी काम करने का आरोप लगाया. खास बात ये है कि संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुतेरस ने बैठक से पहले कहा कि सू ची के पास हिंसा रोकने का ये आखिरी मौका है. उन्होंने जोर देकर कहा कि रोहिंग्या मुसलमानों की घर वापसी म्यांमार सरकार की जिम्मेदारी है.रोहिंग्या मुद्दे पर चौतरफा दबाव के बीच सू ची संयुक्त राष्ट्र की आम सभा में भाग लेने नहीं पहुंचीं हैं. ये स्टेट ऑफ़ द यूनियन भाषण उन्होंने नाय पीय ताव में दिया.

सू ची ने कहा- कई महीनों की शांति के बाद 25 अगस्त को सुरक्षाबलों पर हथियार  बंद गुट ने हमला कर दिया. सरकार ने जांच में इस आतंकी हमले के लिए रोहिंग्या और उनके समर्थकों का हाथ पाया. हम किसी भी तरह के मानवाधिकार उल्लंघन का विरोध करते हैं और सुरक्षा बलों को इन आतंकियों पर कार्रवाई के दौरान नियमों का पालन करने के निर्देश दिए गए हैं.

उन्होंने कहा कि मुझे इस बात की जानकारी है कि इस वक़्त पूरी दुनिया हमारे देश पर नज़र रखे हुए है. जैसा कि मैंने पिछली बार यूएन आम सभा में कहा था कि एक ज़िम्मेदार सदस्य देश होने के नाते हम यहां रहने वाले सभी नागरिकों की सुरक्षा, शांति और विकास कार्यों को करते रहेंगे और किसी भी तरह के अंतरराष्ट्रीय दबाव में नहीं आएंगे, हालांकि जो शरणार्थी लौटना चाहते हैं वे जांच के बाद आ सकते हैं.

गौरतलब है कि म्यांमार से बड़ी तादाद में खदेड़े जा रहे रोहिंग्या मुसलमान बांग्लादेश में शरण लेने पहुंचे हैं. खाने के सामान और राहत सामग्री की यहां भारी कमी है. इन हालात में बच्चे और बूढ़े सबसे ज़्यादा परेशान हैं. इन्होंने बांग्लादेश के शामलापुर और कॉक्स बाज़ार में शरण ली हैं. शरणार्थी शिविरों में ही बच्चों को औरतें जन्म दे रही हैं. बांग्लादेश में इनकी जान बची हुई है, लेकिन मुसीबतों की कमी नहीं है.

कई मानवाधिकार संगठन भारत सरकार से गुहार लगा रहे हैं कि इन शरणार्थियों को देश में ही रहने दिया जाए वहीं सरकार का मानना है कि रोहिंग्या मुसलमान अवैध प्रवासी हैं और इसलिए कानून के मुताबिक उन्हें बाहर किया जाना चाहिए. गृह मंत्रालय कह चुका है कि वह रोहिंग्या मुसलमानों को भारत में शरण नहीं देगा, बल्कि उन्हें वापस लौटा देगा. इसके साथ ही भारत-म्यांमार सीमा पर चौकसी बढ़ा दी गई है. सीमा पर सरकार ने रेड अलर्ट जारी किया है.

क्या है विवाद
रोहिंग्या समुदाय 12वीं सदी के शुरुआती दशक में म्यांमार के रखाइन इलाके में आकर बस तो गया, लेकिन स्थानीय बौद्ध बहुसंख्यक समुदाय ने उन्हें आज तक नहीं अपनाया है. 2012 में रखाइन में कुछ सुरक्षाकर्मियों की हत्या के बाद रोहिंग्या और सुरक्षाकर्मियों के बीच व्यापक हिंसा भड़क गई. तब से म्यांमार में रोहिंग्या समुदाय के खिलाफ हिंसा जारी है. रोहिंग्या और म्यांमार के सुरक्षा बल एक-दूसरे पर अत्याचार करने का आरोप लगा रहे हैं. ताजा मामला 25 अगस्त को हुआ, जिसमें रोहिंग्या मुसलमानों ने पुलिस वालों पर हमला कर दिया. इस लड़ाई में कई पुलिस वाले घायल हुए, इस हिंसा से म्यांमार के हालात और भी खराब हो गए.