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अपनों की वजह से अखिलेश ने गंवाई अपनों की सीटें, सपा की हार में प्रसपा को मिल रहा जीत का मजा (अखिलेश की गलतियां : पार्ट 2)

राजेश श्रीवास्तव
लखनऊ । लोकसभा चुनाव 2०19 के नतीजों से समाजवादी पार्टी को काफी झटका लगा है। डिपल, धर्मेंद्र और अक्षय की हार से समाजवादी पार्टी एक बार फिर गहरे संकट में है। समाजवादी पार्टी के परिवार की तीनों सीटों पर हार से यह साफ है कि सपा से अलग हुए शिवपाल सिह यादव ने परिवार के तीनों सदस्यों के सिर पर जीत का ताज नहीं सजने दिया। इन सीटों पर सपा प्रत्याशियों को मिली हार में शिवपाल की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता है। फिरोजाबाद में तो खुद शिवपाल अक्षय को चुनौती दे रहे थे और उन्होंने सपा के ही कोर वोट बैंक का बंटवारा कर अक्षय यादव के करीब 67 हजार वोट कम करके उनको शिकस्त की ओर ढकेल दिया। वहीं बदायूं और कन्नौज में भी शिवपाल के प्रभाव को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है और इसे धर्मेंद्र और डिपल की हार की एक वजह माना जा सकता है।
विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से गलबहियां करने के बाद भी करारी शिकस्त मिलने से सपा के हौसले पस्त हुए थे तो हालिया लोकसभा चुनाव में बसपा और रालोद के साथ गठबंधन ने पार्टी में नई जान फूंकने की कवायद भी बेनतीजा साबित हो गयी। आलम यह रहा कि पार्टी अपनी ही पांच वीआईपी सीटों में से तीन सीटों को नहीं बचा सकी। सपा की साइकिल पर सवार होकर बसपा के हाथी ने दस सीटों पर अपनी जीत का परचम लहराया पर सपा को इसका कोई फायदा नहीं मिल पाया। बसपा से वोट ट्रांसफर होने पर यूपी की तमाम सीटों पर अपनी जीत के सपने संजोने वाले अखिलेश यादव को अपनी पत्नी और भाईयों को ही हारते देखना पड़ गया। यही वजह है कि चुनाव नतीजे आने के बाद सपा में गाज गिरनी शुरू हो गयी है। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने पार्टी के सभी मीडिया पैनलिस्ट को हटाकर इसकी शुरुआत कर दी है। वहीं सोशल मीडिया पर सपा के समर्थक अखिलेश यादव की चुनावी रणनीति और उनके सलाहकारों की घेराबंदी करने लगे है।
पिछले लोकसभा चुनाव के मुकाबले केवल डिपल यादव को कन्नौज में इस बार ज्यादा वोट मिले पर वह भाजपा के सुब्रत पाठक को हराने में नाकाम रहीं। पिछले चुनाव में डिपल को जहां 4.89 लाख वोट मिले थे तो इस बार 5.5० लाख से ज्यादा वोट मिले है। इस तरह अनुमान लगाया जा सकता है कि बसपा के करीब 6० हजार वोट डिपल को ट्रांसफर तो हुए पर ये जीत के लिए नाकाफी थे।
यदि पिछले चुनाव में बसपा को मिले 1.27 लाख वोट पूरी तरह डिपल को ट्रांसफर होते तो कन्नौज में जीत की तस्वीर कुछ अलग होती। हैरानी की बात यह है कि फिरोजाबाद में अक्षय यादव और बदायूं में धर्मेंद्र यादव के वोट हालिया चुनाव में घट गये। बीते चुनाव में फिरोजाबाद में अक्षय यादव को जहां 5.34 लाख वोट मिले थे वे इस बार घटकर 4.67 लाख ही रह गये। इसी तरह बदायूं में धर्मेंद्र यादव को भी छह हजार वोटों का घाटा सहना पड़ा है। पिछले लोकसभा चुनाव में धर्मेंद्र यादव को जहां 4.98 लाख वोट मिले थे तो इस बार वोटों की संख्या 4।92 लाख पर ही थम गयी। वहीं फिरोजाबाद और बदायूं सीट पर बसपा का वोट बैंक ट्रांसफर होने के संकेत नहंी मिले है जिसका सीधा नुकसान सपा को उठाना पड़ा है।
लोकसभा चुनाव 2०19 से पहले चाचा (शिवपाल सिह यादव) और भतीजे (अखिलेश यादव) के बीच टकराव के बाद सपा से टूट कर बनी प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) भले ही इस लोकसभा चुनाव में कोई सीट न जीत पाई हो लेकिन, शिवपाल यादव के खेमे के नेताओं को सपा की हार में ही जीत का मजा आ रहा है। वास्तव में प्रसपा को अपने किसी प्रत्याशी के न जीत पाने का अफसोस नहीं है। प्रसपा नेता इसी में खुश और संतुष्ट हैैं कि जिसने उनके नेता का अपमान किया, उसे उसके किए का फल मिल गया।
17वीं लोकसभा के लिए हुए चुनाव में समाजवादी पार्टी के परंपरागत मतदाताओं के बीच यही एक बात गहराई से तैर रही थी कि शिवपाल सिह यादव तो हर कदम पर पार्टी और मुलायम के लिए समर्पित रहे लेकिन, नेताजी (मुलायम) और अखिलेश ने शिवपाल के साथ ठीक नहीं किया। यहां लोग यह मान रहे थे कि अपमानजनक परिस्थितियों के कारण ही शिवपाल को अलग पार्टी बनाने का कठिन फैसला लेना पड़ा। लोगों की इस सहानुभूति ने जहां शिवपाल को हौसला दिया, वहीं सपा के गढ़ में भी सेंध लगा दी।
शिवपाल ने भी हर वह दांव आजमाया, जिससे सपा के लिए मुश्किलें कम न होने पाएं। अपनी पुरानी पैठ की बदौलत जहां उन्होंने सपा के जमीनी कार्यकर्ताओं में दो फाड़ की नौबत ला दी, वहीं परिवार को भी वह अखिलेश के खिलाफ ले आए। फीरोजाबाद में अपने समर्थन के लिए वह बदायूं से निवर्तमान सांसद धर्मेंद्र यादव के पिता और मुलायम के बड़े भाई अभयराम यादव को ले आए। फीरोजाबाद के मतदाता इससे दुविधा में आ गए, जिसके नतीजे में सपा हार गई।
प्रसपा ने लोकसभा चुनाव में कश्मीर से कन्याकुमारी तक देश के 12 राज्यों में करीब 12० उम्मीदवार उतारे थे। इसमें 5० प्रत्याशी यहां प्रदेश में थे। वैसे तो ज्यादातर सीटों पर प्रसपा कुछ खास मौजूदगी दर्ज नहीं करा सकी लेकिन, फीरोजाबाद में सपा को हराने में प्रसपा की बड़ी भूमिका रही। फीरोजाबाद में समाजवादी पार्टी जितने वोट से हारी, उसके तीन गुना वोट प्रसपा के खाते में गए जबकि सुल्तानपुर में भी बसपा प्रत्याशी की हार और प्रसपा को मिले वोटों की संख्या में ज्यादा अंतर नहीं है। प्रसपा नेता आश्वस्त हैैं कि तीन महीने पुरानी उनकी पार्टी ने उम्मीद से बेहतर प्रदर्शन किया है।
एक मुकाबला और दिलचस्प रहा, वो था फ़िरोज़ाबाद का। यहां से बीजेपी के चंद्र सेन जादोन ने समाजवादी पार्टी के यादव परिवार के एक और बड़े नाम अक्षय यादव को 28,781 वोटों से हराया। जादोन को 495819 (46.०9%), अक्षय यादव को 467०38 (43.41%) वोट मिले। यहां से अखिलेश के चाचा शिवपाल को 91869 (8.54%) वोट मिले। चुनाव से ठीक पहले पारिवारिक कलह के बाद शिवपाल ने प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) बनाई और इसी के टिकट से वो फ़िरोज़ाबाद से खड़े थे।
यूपी में जीत का सबसे बड़ा अंतर ग़ाज़ियाबाद से बीजेपी उम्मीदवार वीके सिह का रहा, जो 5 लाख से अधिक अंतर से जीते। फतेहपुर सीकरी से कांग्रेस के दिग्गज नेता और अभिनेता से नेता बने राजबब्बर को बीजेपी के राजकुमार चहर ने 4.95 लाख से अधिक मतों से हराया।

सपा की तीन वीआईपी सीटों का गणित

कन्नौज
प्रत्याशी 2०19 में मिले वोट 2०14 में वोट 2०14 में बसपा को वोट
डिपल यादव 5,5०,734 4,89,164 1,27,785
बदायूं
धर्मेंद्र यादव 4,92,898 4,98,378 1,18,9०6
फिरोजाबाद
अक्षय यादव 4,67,०38 5,34,583 1,18,9०68