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अगर वाजपेयी एलओसी पार करने की इजाजत दे देते तो एक सप्ताह में भारतीय सेना पाकिस्तान के भीतर होती

नई दिल्ली। कारगिल की लड़ाई के दौरान हम पाकिस्तानी सैनिकों को अपने देश की सीमा से बाहर खदेड़ने में लगे थे, लेकिन दूसरी ओर हमारी सेना नियंत्रण रेखा पार कर पाकिस्तान में घुसने के लिए भी तैयार बैठी थी। तत्कालीन सेनाध्यक्ष वीपी मलिक ने प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को साफ शब्दों में यह बता दिया था। वाजपेयी ने उन्हें ऐसा न करने की सलाह दी। अगर प्रधानमंत्री उन्हें एलओसी पार करने की इजाजत दे देते तो एक सप्ताह के भीतर भारतीय सेना पाकिस्तान में प्रवेश कर जाती।

पूर्व सेनाध्यक्ष वीपी मलिक ने अपनी किताब ‘कारगिल’ में लिखने के अलावा सार्वजनिक मंचों से भी कई दफा यह बात कही है। मलिक ने प्रधानमंत्री को यह भरोसा दिलाया था कि कारगिल से जल्द ही पाकिस्तानी सेना को खदेड़ देंगे। उन्हें कारगिल के अलावा कई दूसरे मोर्चों पर भी लड़ाई शुरू करनी होगी। इसके लिए अंडमान निकोबार की ब्रिगेड को पश्चिमी सीमा पर लाने और नौसेना के बेड़े को बंगाल की खाड़ी से अरब सागर में जाने की सलाह दी थी।

अगर सैन्य मामलों के विशेषज्ञों की मानें तो मलिक की यह सलाह पाकिस्तान को एक साथ कई मोर्चों पर घेरने के लिए थी। इसका परिणाम कैसा रहता, यह बाद में पता चलता, लेकिन उस वक्त पाकिस्तान को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ती।

वाजपेयी ने नवाज को फोन कर कहा- हम अपने क्षेत्र में घुसपैठ बर्दास्त नहीं करेंगे

आपरेशन विजय शुरू होगा, यह निर्णय लेने के बाद प्रधानमंत्री वाजपेयी ने अपने समकक्ष नवाज शरीफ को फोन पर कहा था कि हम अपने क्षेत्र में घुसपैठ बर्दास्त नहीं करेंगे। हम अपनी जगह खाली कराएंगे। उन्होंने यह भी कहा कि यह महज घुसपैठ नहीं है, बल्कि नई जगह पर कब्जा करना है।

वाजपेयी यहां तक तो ठीक थे, लेकिन मलिक की यह रणनीति, कि हम एलओसी पार कर पाकिस्तान को सबक सिखाएंगे, पर ऐतराज था। उन्होंने इससे साफ इंकार दिया। सेनाध्यक्ष ने जब वायुसेना के कारगिल में उतरने की बात बताई तो वाजपेयी ने कहा, ध्यान रहे कि किसी भी रूप में एलओसी का उल्लंघन न हो। जो भी एयर स्ट्राइक करनी है वह अपनी सीमा के भीतर हो।

मालिक की सलाह पर प्रधानमंत्री और तीनों सेना प्रमुखों के बीच नियमित बैठक शुरू हुई

कारगिल की लड़ाई के बाद पूर्व सेनाध्यक्ष मलिक ने प्रधानमंत्री वाजपेयी को तीनों सेना प्रमुखों के साथ नियमित बैठक करने की सलाह दी थी। उस वक्त यह बात दूसरे कई बड़े नेताओं और नौकरशाहों को रास नहीं आई थी। वाजपेयी ने उनकी यह सलाह बखूबी मानी। बाद में यह परंपरा बंद हो गई। हालांकि प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भी अपने कार्यकाल में यह परंपरा शुरू की थी, लेकिन वह कुछ समय तक ही चल सकी।