Breaking News

अखिलेश यादव ने अंसारी बिरादरी को नही दिया टिकट

बाराबंकी।अंसारी बिरादरी के कद्दावर अगुवाकार अहमद हसन को सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने इतना बड़ा गम व तकलीफ दी, कि वह सदमा बर्दाश्त न कर सके। जिन अखिलेश के वालिद की जान अहमद हसन ने बचाई, वही अहमद हसन जेरे इलाज रहे पर अखिलेश ने उनका हाल तक न पूंछा। पूर्वांचल से टिकट वितरण में अंसारी बिरादरी को सिरे से गायब कर अखिलेश ने इतना बड़ा अपमान किया है, जिसकी कोई तुलना नही। इस तरह पसमांदा बिरादरी को अपमानित करने वाले अखिलेश यादव को नतीजे सबक सिखाएंगे।
यह बात आल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज के प्रदेश अध्यक्ष वसीम राइन ने आज विधानसभा रामनगर के अंतर्गत क़स्बा सूरतगंज में आयोजित पत्रकार वार्ता में कही। उन्होंने इस विधानसभा क्षेत्र के चुनाव का जिक्र करते हुए कहा कि जिस कांग्रेस की नेहरू सरकार में मंत्री रहे रफी अहमद किदवई ने आर्टिकल 341 के तहत पसमांदा मुस्लिम समाज पर धार्मिक प्रतिबन्ध लागू किये, उन्ही के भतीजे फरीद महफूज किदवई रामनगर विधानसभा क्षेत्र से समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं। सपा ने 85 प्रतिशत हर बिरादरी को मिलाकर बने पसमांदा समाज को उपेक्षित व अपमानित कर विदेशी मुसलमान को टिकट दे दिया। इसी से सपा की नीति व नीयत की कलई खुल जाती है और इन हालात में सपा कैसे उम्मीद कर सकती है कि पसमांदा समाज उनको पसन्द करेगा। बल्कि अब जागरूक पसमांदा समाज उसे चुनेगा जो उसके हक़ हुक़ूक़ की बात कर रहा है।
प्रदेश अध्यक्ष ने कहा कि दशकों तक देश पर राज कर चुकी कांग्रेस ने हमेशा दबे कुचले पिछड़े पसमांदा मुस्लिम समाज को नापसंद किया और सत्ता में विदेशी मुसलमानों को भागीदारी दी, यही काम सपा और बसपा ने भी किया। फर्क साफ हो जाता है कि पसमांदा मुस्लिम समाज का हितैषी कौन है और किसने केवल वोट बैंक की तरह इस्तेमाल किया, किसने इस समाज के हक़ हुक़ूक़ पर कब्जा जमाए रखा। वह शायद जानते थे कि इन्हें आगे बढ़ाकर वह अपने मकसद में कामयाब नही हो सकेंगे पर दौर बदल चुका है, यही समाज अब जान चुका है कि उसे किसका साथ देना होगा। उन्होंने कहा कि
कुल मुस्लिम आबादी मे पसमांदा मुस्लिम 85% होते हुए कुल जनसख्या का हिस्सा है, कांग्रेस ने इन मुसलमानो को संविधान की आर्टिकल- 341 पर दस अगस् 1950 को पाबंदी लगा दी कि इसका फ़ायदा सिर्फ़ हिंदू को मिलेगा , जबकि 1956 में सिखों व 1991 में नवबौद्ध को शामिल करना मुस्लिम वोट बैंक जो 1989 तक बना रहा धोखा घड़ी नही तो क्या, क्या नेहरू और इंद्रा गांधी विदेशी मूल के मुस्लिम नेतृत्व से इतनी प्रभावित थी के 85 % भारतीय मूल के हज़ारो साल के दबे कुचले पसमांदा मुस्लिम नही याद आये। अंग्रेज़ो ने जिन अंसारी/ बुनकरों के अंगूठे काट लिए अपना कपड़ा बाजार में लाने का लिए। क्योंकि यह मुस्लिम दलित समान पिछड़ी जाति लोकतंत्र वोट की संख्या के आधार पर एमएलए, एमपी बन सकते थे जो विदेशी मूल के पाकिस्तान के जनक और बाकी बचे कुलीन मुस्लिम जो कांग्रेस पर काबिज थे, उनके बराबर में बैठ जाते जो कभी के मुस्लिम मुग़ल तुर्क खान देश भर में शासन में नही बैठ पाये न ही इन्हें समाज मे बराबरी आज़ाद हिदुस्तान व अंगेज़ों के दौर में मिली, हालत यह के कांग्रेस ने 1956 में दलित सिखों को 1991 में नव बोद्ध को शामिल किया पर मौजूद संसद के मुस्लिम सदस्यों जिसमे मक्का के मौलाना आज़ाद, बुखारा के इमाम बुखारी, देवबन्द के मदनी मौलाना लोग, बरेली के आलाहज़रत के लोग, मसलक मसलक जिन के फतवो को यह पसमांदा भारतीय मुसलमान खुदा रसूल के बाद मानता था। सभी ने अपने सियासी उल्लू सभी सरकारों में उठाये पर कभी 85% हिंदुस्तानी मूल के दबे कुचले अंग्रेज़ो के दौर में अंगूठा कटवाए बुनकर अंसारी धुनों, कुंजड़ों राईनी, बंजारों, महीगीरो, ख़ुमरो लालबेगी मुस्लिम बाल्मीकि, कोरी सहित 70 जातियो की सुध तो पिछडो के ब्रांड वाले यादवो व दबे कुचले पर 4 -4 बार यूपी जैसे पसमांदा बाहुल्य को कुल 20 % में 16% आबादी नेतृत्व होने के बाद राज्यसभा सदस्य तक नही दिए। वोट बैंक समझ दोहन किया।