श्रीनगर। लद्दाख में लगातार चीनी सेना की घुसपैठ की घटनाओं के बाद पीपल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के सैनिकों को अब पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) में नियंत्रण रेखा पर स्थित चौकियों पर देखा गया है। चीनी सैनिकों को देखने के बाद से सुरक्षा बल सजग हो गए हैं। घटनाक्रमों की जानकारी रखने वाले सूत्रों ने कहा कि सेना ने उत्तर कश्मीर के नौगांव सेक्टर के सामने स्थित अग्रिम चौकियों पर पीएलए के वरिष्ठ अधिकारियों को देखा।
इसके बाद पाकिस्तानी सेना के अधिकारियों के कुछ संवाद समाने आए हैं, जिनसे पता चलता है कि चीनी सैनिक नियंत्रण रेखा से लगे इलाकों में कुछ निर्माण कार्य करने आए हैं। सूत्रों ने कहा कि सेना ने इस मुद्दे पर आधिकारिक रूप से पूरी तरह चुप्पी साधी रखी है, लेकिन वह विभिन्न खुफिया एजेंसियों को नियंत्रण रेखा पर पीएलए सैनिकों की मौजूदगी की लगातार सूचनाएं दे रही है। पिछले साल के आखिर में पीएलए सैनिकों को पहली बार देखा गया था और तब से तंगधार सेक्टर के सामने भी उनकी मौजूदगी देखी गई है।
इस इलाके में चीनी सरकार के स्वामित्व वाली चाइना गेझौबा ग्रुप कंपनी लिमिटेड 970 मेगवाट की झेलम-नीलम पनबिजली परियोजना का निर्माण कर रही है। यह पनबिजली परियोजना उत्तर कश्मीर के बांदीपोरा में भारत द्वारा बनाई जा रही किशनगंगा विद्युत परियोजना के जवाब में बनाई जा रही है। किशनगंगा परियोजना 2007 में शुरु हुई थी और इस साल इसके पूरे होने की उम्मीद है।
पाकिस्तानी सेना के अधिकारियों की बातचीत में यह भी पता चला कि चीनी सेना पीओके में स्थित लीपा घाटी में कुछ सुरंगें खोदने का काम करेगी। ये सुरंगें हर मौसम में चालू रहने वाली एक सड़क के निर्माण के लिए खोदी जाएंगी। यह सड़क काराकोरम राजमार्ग जाने के एक वैकल्पिक रास्ते के तौर पर काम करेगी। पीएलए अधिकारियों के दौरे को कुछ विशेषज्ञ 46 अरब डॉलर की लागत से चीन द्वारा बनाए जा रहे चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (सीपीईसी) के हिस्से के तौर पर देख रहे हैं। इसके तहत कराची के ग्वादर बंदरगाह को काराकोरम राजमार्ग के रास्ते चीन के शिनजियांग प्रांत से जोड़ा जाएगा। कारोकोरम राजमार्ग चीन के अवैध कब्जे वाले क्षेत्र में आता है।
भारत ने पिछले साल गिलगिट और बल्टिस्तान में चीनी सैनिकों की मौजूदगी को अस्वीकार्य बताते हुए विरोध दर्ज कराया था। यह क्षेत्र पीओके में आता है। देश के सुरक्षा हलकों के कुछ विशेषज्ञ पीओके में पीएलए की मौजूदगी को लेकर गंभीर चिंता जताते आए हैं। चीनी अधिकारियों ने कई बार कहा है कि सीपीईसी यूरेशिया से एशिया को जोडने वाला एक आर्थिक पैकेज है।
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में चीनी अध्ययन विभाग के प्रोफेसर श्रीकांत कोडपल्ली को लगता है कि पीएलए की बढ़ती मौजूदगी भारत के लिए चिंता का विषय है। कोडपल्ली चीन को लेकर भारत की नीति से संबंधित एक थिंक टैंक का हिस्सा रहे हैं। उन्होंने कहा, ‘हमें पता है कि चीन पीओके में एक स्थानीय नाम से पीएलए की तीन डिवीजनों का विकास करने जा रहा है, जो कब्जे वाले कश्मीर में चीनी हितों की रक्षा करेंगे। लोगों को चीन की रणनीति को समझने की जरूरत है।’
पीओके से आ रही खबरों से पता चला है कि पीएलए एक स्थानीय नाम के तहत पीओके में एक सुरक्षा शाखा की स्थापना करेगा। इन तीन नए डिवीजनों में करीब 30,000 कर्मी होंगे, जिन्हें चीनी कंपनियों द्वारा बनाए गए प्रतिष्ठानों में और उसके पास तैनात किया जाएगा। उन्होंने कहा कि इस तरह चीन कश्मीर के उत्तरी हिस्से में नियंत्रण रेखा पर अपनी मौजूदगी को सही ठहराने की कोशिश कर सकता है।