अयोध्या। बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के मुख्य पैरोकार रहे हाशिम अंसारी का बुधवार सुबह करीब 5.30 बजे निधन हो गया। वे 96 साल के थे और लंबे समय से बीमार थे। साल 1949 से ही उनका नाम बाबरी केस से जुड़ गया था। इसके समाधान के लिए लगातार प्रयासरत रहने के कारण उन्हें अयोध्या का गांधी भी कहा जाता था। अयोध्या राजघराने के विमलेंद्र मोहन मिश्र ने उनके घर पहुंचकर श्रद्धांजलि दी। उन्हें हिंदू-मुस्लिम दोनों समुदायों का चहेता बताया।
कहलाते थे अयोध्या के गांधी
बाबरी मस्जिद और राम जन्मभूमि मुद्दे के समाधान का वे लगातार प्रयास करते रहे। हनुमानगढ़ी के महंत और अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष ज्ञान दास के साथ मिलकर उन्होंने सुलह-समझौते की पहल भी शुरू की थी।हाईकोर्ट के फैसले के बाद भी वे समझौते का दौर चलाते रहे। सुलह-समझौता परवान चढ़ता इसी बीच अन्य पक्षकार सुप्रीम कोर्ट चले गए। इससे अंसारी के प्रयासों को धक्का लगा। फिर भी इन्होंने अपना प्रयास नहीं छोड़ा। यही कारण है कि कुछ लोग इन्हें अयोध्या का गांधी भी कहते हैं।
बाबरी मस्जिद और राम जन्मभूमि मुद्दे के समाधान का वे लगातार प्रयास करते रहे। हनुमानगढ़ी के महंत और अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष ज्ञान दास के साथ मिलकर उन्होंने सुलह-समझौते की पहल भी शुरू की थी।हाईकोर्ट के फैसले के बाद भी वे समझौते का दौर चलाते रहे। सुलह-समझौता परवान चढ़ता इसी बीच अन्य पक्षकार सुप्रीम कोर्ट चले गए। इससे अंसारी के प्रयासों को धक्का लगा। फिर भी इन्होंने अपना प्रयास नहीं छोड़ा। यही कारण है कि कुछ लोग इन्हें अयोध्या का गांधी भी कहते हैं।
मोदी के मुरीद थे अंसारी
हाशिम अंसारी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खास मुरीद थे। मुस्लिम समुदाय से भी नरेंद्र मोदी को समर्थन करने की वे अपील करते रहे। उन्होंने अपने पुराने और जर्जर भवन में अभावग्रस्त जीवन जिया। इसके बावजूद देश-दुनिया से समय-समय पर आए बड़े प्रलोभनों को ठुकरा दिया।
हाशिम अंसारी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खास मुरीद थे। मुस्लिम समुदाय से भी नरेंद्र मोदी को समर्थन करने की वे अपील करते रहे। उन्होंने अपने पुराने और जर्जर भवन में अभावग्रस्त जीवन जिया। इसके बावजूद देश-दुनिया से समय-समय पर आए बड़े प्रलोभनों को ठुकरा दिया।
पहली बार 1949 में बाबरी केस में आया था नाम
22/23 जनवरी 1949 को विवादित ढांचे में रामलला के प्रकट होने की घटना को अयोध्या कोतवाली के तत्कालीन इंस्पेक्टर ने दर्ज कराया था। उसमें गवाह के रूप में हाशिम अंसारी सबसे पहले सामने आए थे। फिर 18 दिसंबर 1961 को दूसरा केस हाशिम अंसारी, हाजी फेंकू सहित 9 मुसलमानों की तरफ से मालिकाना हक के लिए फैजाबाद के सिविल कोर्ट में लाया गया। इस दौरान राम मंदिर के प्रमुख पैरोकार रहे दिगंबर अखाड़ा के तत्कालीन महंत परमहंस रामचन्द्र दास से इनकी मित्रता चर्चा में रही। बाद में महंत परमहंस रामचन्द्र दास राम जन्मभूमि के अध्यक्ष हुए।
बाबरी मस्जिद मुद्दे के राजनीतिकरण से हो गए थे नाराज
साल 2014 में बाबरी मस्जिद मुद्दे के राजनीतिकरण से वे नाराज हो गए थे। उन्होंने कहा था कि अब रामलला को वह आजाद देखना चाहते हैं। वह अब किसी भी कीमत पर बाबरी मस्जिद के मुकदमे की पैरवी नहीं करेंगे। छह दिसंबर को काला दिवस जैसे किसी भी कार्यक्रम में शामिल नहीं होंगे। उन्होंने कहा था कि बाबरी मस्जिद की पैरवी के लिए एक्शन कमेटी बनी थी, लेकिन आजम खान उसके कन्वेनर (संयोजक) बना दिए गए। अब सियासी फायदा उठाने के लिए वे मुलायम के साथ चले गए। एक्शन कमेटी के जितने लीडर थे, उनको पीछे छोड़ दिया। हाशिम ने कहा था, “मुकदमा हम लड़ें और राजनीति का फायदा आजम खान उठाएं। इसलिए मैं अब बाबरी मस्जिद मुकदमे की पैरवी नहीं करूंगा। इसकी पैरवी आजम खान करें। हालांकि बाद में बाबरी एक्शन कमिटी के संयोजक जफरयाब जिलानी के मनाने पर वे मुकदमे की पैरवी करने लगे थे।
बाबरी मुद्दे के राजनीतिकरण से जताई थी नाराजगी
साल 2014 में बाबरी मस्जिद मुद्दे के राजनीतिकरण से वे नाराज हो गए थे। उन्होंने कहा था कि वे अब रामलला को आजाद देखना चाहते हैं। वह अब किसी भी कीमत पर बाबरी मस्जिद के मुकदमे की पैरवी नहीं करेंगे। साथ ही ये भी कहा था कि 6 दिसंबर को काला दिवस जैसे किसी भी कार्यक्रम में शामिल नहीं होंगे। उन्होंने कहा था कि बाबरी मस्जिद की पैरवी के लिए एक्शन कमेटी बनी थी, लेकिन आजम खान उसके कन्वीनर (संयोजक) बना दिए गए। अंसारी के मुताबिक, “मुकदमा हम लड़ें और राजनीतिक फायदा आजम खान उठाएं। इसलिए मैं अब बाबरी मस्जिद मुकदमे की पैरवी नहीं करूंगा। इसकी पैरवी आजम खान करें। हालांकि बाद में बाबरी एक्शन कमेटी के संयोजक जफरयाब जिलानी के मनाने पर वे मुकदमे की पैरवी करने लगे थे।
क्या बोले मुस्लिम नेता?
उत्तर प्रदेश जमीअत-उलमा-ए-हिंद के प्रदेश अध्यक्ष मौलाना हयात उल्ला कासमी ने बहराइच में कहा, ‘इस मुकदमें पर काई असर नही पड़ेगा। एक हाशिम अंसारी का इंतकाल हुआ है। सौ लोग इस मुकदमे को लड़ने के लिए खड़े हो जाएंगे और इंशाअल्ला यह मुकदमा जीता जाएगा।’ ‘मुकदमा अदालत में है, इसलिए इस मामले में किसी को न नुकसान होगा न फायदा। मुखालिफ के पास कोई मजबूत दलील नही है। बाबरी मस्जिद जहां थी। वहीं आज भी है।’