प्रदेश के सियासी इतिहास पर गौर करें तो यादव वोटबैंक पहले कांग्रेस और फिर जनसंघ के साथ रहा। फिर चौधरी चरण सिंह के साथ गोलबंद हुआ। इनके बाद मुलायम सिंह यादव का आधार वोटबैंक बन गए। सियासी अखाड़े के पहलवान मुलायम सिंह यादव ने अपनी सियासी ताकत बढ़ाने के लिए हर जिले में अपने आधार वोट बैंक का एक बड़ा नेता तैयार किया।
वर्ष 2001 की सामाजिक न्याय समिति की रिपोर्ट के मुताबिक प्रदेश में पिछड़े वर्ग के बीच यादव आबादी करीब 19.40 फीसदी है। इनकी एकजुटता सत्ता के समीकरणों को साधने के लिए मजबूत जमीन जैसा है। पर, चुनावी नतीजे खुद-ब-खुद बता देते हैं कि अब हालात बदल गए हैं।
विधानसभा चुनाव के बाद 10 अक्तूबर 2022 को मुलायम सिंह यादव का निधन हो गया। भाजपा ने यादव वोट बैंक को साधने और पैठ बढ़ाने के लिए मुलायम सिंह को पद्मविभूषण से नवाजा, तो उत्तर प्रदेश से ताल्लुक रखने वाले मोहन यादव को मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री बना दिया। मोहन यादव तीन बार यूपी आ चुके हैं।
अखिल भारतीय यादव महासभा कई दशक से मुलायम सिंह यादव के साथ रहा, पर उनके निधन के बाद इसमें दो फाड़ हो गया। इसका एक वर्ग सपा के साथ है, तो दूसरा भाजपा के। पिछले दिनों महासभा के अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने वाले राज्यसभा सदस्य रहे उदय प्रताप सिंह अब बुजुर्ग हो चले हैं। फरवरी में यादव महासभा के कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मिलकर अहीर रेजीमेंट की मांग पर समर्थन मांगा। यादव महासभा के कार्यकारी राष्ट्रीय अध्यक्ष श्याम सिंह यादव जौनपुर से बसपा के सांसद हैं, लेकिन पिछले दिनों कांग्रेस की भारत जोड़ो न्याय यात्रा में शामिल होकर साफ संदेश दे दिया कि वह कांग्रेस के साथ हैं।
- प्रदेश के 12 जिलों में यादवों की आबादी 20 फीसदी से अधिक मानी जाती है। आजमगढ़, देवरिया, गोरखपुर, बलिया, गाजीपुर, वाराणसी, जौनपुर, बदायूं, मैनपुरी, एटा, इटावा, कन्नौज और फर्रुखाबाद में यादव मतदाताओं का दबदबा है। वहीं 10 जिलों में करीब 15 फीसदी आबादी है।
- सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डवलपिंग सोसाइटीज की एक चुनावी अध्ययन रिपोर्ट बताती है कि 2022 के विधानसभा चुनावों में 83 फीसदी यादवों ने सपा को वोट दिया। लोकनीति-सीएसडीएस की रिपोर्ट के मुताबिक 2019 में 60 फीसदी यादवों ने सपा-बसपा को और 23 फीसदी ने भाजपा को, पांच फीसदी ने कांग्रेस को वोट दिया था। इस बार भाजपा करीब 30 से 35 फीसदी यादवों का वोट हासिल करने का लक्ष्य बनाकर कार्य कर रही है।
प्रदेश की सियासत में यादव समाज से पहली बार रघुवीर सिंह यादव आगरा पूर्वी सीट से कांग्रेस के टिकट पर 1952 में सांसद चुने गए थे।
फिर 1957 में बाराबंकी से रामसेवक यादव सोशलिस्ट पार्टी से सांसद बने। फिर राम नरेश यादव और मुलायम सिंह यादव जैसे नेता निकले। 1967 में यूपी में गैर-कांग्रेसी सरकार बनी तो मुलायम सिंह कैबिनेट मंत्री बने। 1977 में राम नरेश यादव प्रदेश के पहले यादव मुख्यमंत्री बने। मंडल आंदोलन के दौरान मुलायम सिंह उभरे और 1989 में जनता दल से मुख्यमंत्री बने। यादव वोटों के दम पर मुलायम सिंह यादव तीन बार मुख्यमंत्री बने तो अखिलेश यादव एक बार। अब स्थिति यह है कि मुलायम सिंह यादव के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने वाले पूर्व मंत्री नरेंद्र सिंह यादव, पूर्व सांसद सुखराम सिंह यादव, पूर्व देवेंद्र सिंह यादव, पूर्व सभापति रमेश यादव, पूर्व विधायक हरिओम यादव भाजपा में हैं। पूर्व सांसद डीपी यादव अपनी पार्टी बना चुके हैं।