भारत के प्रधान न्यायाधीश इस मसले को लेकर भावुक हो गए। उन्होंने रूंधे गले से कहा, ‘यह किसी प्रतिवादी या जेलों में बंद लोगों के लिए नही बल्कि देश के विकास के लिए, इसकी तरक्की के लिए मैं आपसे हाथ जोड़कर विनती करता हूं कि इस स्थिति को समझें और महसूस करें कि केवल आलोचना करना काफी नहीं है। आप पूरा बोझ न्यायपालिका पर नहीं डाल सकते।’
उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों और मुख्यमंत्रियों के एक संयुक्त सम्मेलन के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए न्यायमूर्ति ठाकुर ने कहा कि 1987 के बाद से, जब विधि आयोग ने जजों की संख्या को प्रति दस लाख लोगों पर दस न्यायाधीशों की संख्या को बढ़ाकर 50 करने की सिफारिश की थी, तब से ‘कुछ नहीं हुआ है।’
उन्होंने कहा, ‘इसके बाद सरकार की अकर्मण्यता आती है क्योंकि संख्या में बढ़ोतरी नहीं हुई।’ न्यायमूर्ति ठाकुर ने कहा कि विधि आयोग की सिफारिशों का अनुसरण करते हुए उच्चतम न्यायालय ने 2002 में न्यायपालिका की संख्या में वृद्धि का समर्थन किया था। प्रणब मुखर्जी की अध्यक्षता वाली विधि विभाग संबंधी संसद की एक स्थायी समिति ने जजों की संख्या और आबादी के अनुपात को दस से बढ़ाकर 50 करने की सिफारिश की थी।