नई दिल्ली। पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों के नतीजे कांग्रेस के लिए भारी मायूसी लेकर आए हैं। असम में बीजेपी पहली बार सरकार बनाने में सफल रही है तो केरल में लेफ्ट के गठबंधन LDF को बहुमत मिला है। चुनावों से पहले दोनों राज्यों में कांग्रेस की सरकारें थीं। कांग्रेस की बात करें तो पार्टी के लिए पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु के नतीजे भी निराशा ही लेकर आए हैं। बंगाल में लेफ्ट के साथ और तमिलनाडु में DMK के साथ जाना भी कांग्रेस के काम नहीं आया। असम के मुख्यमंत्री तरुण गोगोई चौथी बार अपनी सरकार बनाने में नाकाम रहे।
अमस में जीत के बाद बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने कहा कि देश ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ अभियान की ओर दो कम और बढ़ गया है। पीएम मोदी ने बीजेपी कार्यकर्ताओं को संबोधन में कहा कि असम में बीजेपी की सरकार बनाना कई लोगों के लिए जम्मू-कश्मीर में बीजेपी के सरकार में शामिल होने जैसा चौंकाऊ है। उधर, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और राहुल गांधी ने हार स्वीकार करते हुए कहा कि वह जनता के लिए और ज्यादा काम करेंगे।
असम में पहली बार, BJP सरकार
असम में बीजेपी गठबंधन ने इतिहास रच दिया है। 15 साल से सत्ता पर काबिज कांग्रेस को हटाकर बीजेपी पहली बार पूर्वोत्तर के किसी राज्य में सरकार बनाने जा रही है। बीजेपी ने यहां केंद्रीय मंत्री सर्वानंद सोनोवाल को सीएम कैंडिडेट बनाकर उतारा। उसके पाले में असम गण परिषद (AGP) और बोडोलैंड पीपल्स फ्रंट (BPF) जैसे क्षेत्रीय दलों की गोलबंदी हुई। बांग्लादेशियों पर बीजेपी के आक्रामक तेवर रहे। कांग्रेस की यहां रणनीतिक हार हुई है। तीन बार के मुख्यमंत्री तरुण गोगोई के नेतृत्व से लोग पार्टी के अंदर और बाहर ‘मुक्ति’ चाहते थे, लेकिन राहुल गांधी के गोगोई के पक्ष में खड़े हो जाने से हेमंत विस्व सरमा जैसे बड़े नेता कांग्रेस से अलग हो गए। उन्होंने चुनाव से कुछ महीने पहले बीजेपी का दामन थाम लिया था।
असम में बीजेपी को 59 और कांग्रेस को 26 सीटें मिली हैं। AIUDF को 13, AGP को 13 और BPF को 12 सीटें मिली हैं। 2011 में हुए विधानसभा चुनावों में असम में कांग्रेस को 78 सीटें मिली थीं, जबकि बीजेपी को 5 सीटों पर जीत मिली थी।
बंगाल में TMC की ममतामयी वापसी
एक तरफ लेफ्ट-कांग्रेस का गठबंधन, दूसरी तरफ बीजेपी का धुआंधार चुनाव प्रचार, इन दोनों चुनौतियों को ममता बनर्जी ने धता बता दिया है। उनकी पार्टी तृणमूल कांग्रेस पश्चिम बंगाल के चुनाव में दो-तिहाई बहुमत से काफी आगे निकल गई। 2011 विधानसभा चुनाव में जीत के बाद उन्होंने 2014 के लोकसभा चुनाव में ज्यादा बड़ी जीत हासिल की और इस बार उससे भी आगे निकल गईं। इससे ममता का राष्ट्रीय राजनीति में कद बढ़ेगा। लेफ्ट में ममता के सामने उनके कद का नेता भी नहीं था। कांग्रेस ने लेफ्ट के मुकाबले अच्छा प्रदर्शन किया। बीजेपी भले ही 2014 का प्रदर्शन नहीं दोहरा पाई लेकिन 2011 के मुकाबले उसने बड़ी मौजूदगी दर्ज कराई है।
TMC को 203 सीटों पर जीत मिल चुकी है। बीजेपी ने भी तीन सीटें जीतने में सफलता हासिल की है। CPI(M) को 25 सीटें मिली हैं तो कांग्रेस 36 सीटों पर जीती है। 2011 के विधानसभा चुनावों में TMC को 184 और लेफ्ट गठबंधन को 62 सीटें मिली थीं। कांग्रेस को भी 2011 में 46 सीटें मिली थीं।
केरल में भ्रष्टाचार की आंच से जले चांडी
केरल में भी हर पांच साल पर सरकार बदलने की परंपरा रही है। इस वजह से यहां पहले से माना जा रहा था कि UDF की विदाई और LDF की ही ताजपोशी होगी। हालांकि ओमन चांडी इस स्थापित परंपरा को तोड़ देने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रहे थे। उनके पक्ष में कुछ बातें जा भी रही थीं जैसे कि वह खुद को ‘विकास पुरुष’ के रूप में स्थापित करने में जुटे थे।
बीजेपी एक स्थानीय पार्टी- भारत धर्म जन सेना के साथ गठबंधन कर एझवा और नायर समुदाय में जिस तरह की सेंधमारी की कोशिश में थी, वह भी उन्हें मुफीद लग रहा था, क्योंकि यह वोट लेफ्ट का माना जाता रहा है। हालांकि उनकी कोई भी उम्मीद काम नहीं आई, क्योंकि वह खुद घोटाले और भ्रष्टाचार की आंच में जल गए। चुनावी साल में सोलर घोटाले को लेफ्ट पार्टियों ने कांग्रेस के खिलाफ खूब भुनाया और जनता के बीच UDF सरकार की इमेज घोटाले में लिप्त सरकार की बन गई।
CPI(M) को 58 और CPI को 19 सीटों पर जीत मिली है। बीजेपी के खाते में भी एक सीट आई है। कांग्रेस के हाथ 20 सीटें लगी हैं। इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग को 18 सीटें मिली हैं। JD(S) को 3 और केरल कांग्रेस (M) को 6 सीटें मिली हैं। पिछले चुनाव में सीपीएम के पास 45 सीटें थीं, कांग्रेस के पास 38, एमयूएल के पास 20 और सीपीआई के पास 13 सीटें थीं।
तमिलनाडु: ब्रैंड अम्मा की जीत
तमिलनाडु में जयललिता की जीत को ‘ब्रैंड अम्मा’ की जीत माना जाएगा। राज्य में सब कुछ जयललिता के पक्ष में नहीं था। वहां की स्थापित परंपरा हर पांच साल पर सत्ता परिवर्तन की रही है। बाढ़ में सरकार के ‘मिस मैनेजमेंट’ से वोटर्स में गुस्सा भी था। जयललिता की खराब सेहत, लंबे समय तक वोटर्स से दूरी और भ्रष्टाचार के आरोप भी AIADMK के लिए खतरे की घंटी बजा रहे थे। इन सबके बावजूद अगर जयललिता की जीत हुई है तो उसकी वजह यही है कि पांच साल में उन्होंने खुद को एक ब्रैंड के रूप में स्थापित कर लिया था।
जयललिता ने सरकारी खजाने से ही तमाम ऐसी सब्सिडी स्कीम चालू कीं, जिसने उनकी छवि राज्य में गरीब समर्थक की बना दी। ऐसे में लोग उन्हें किसी भी सूरत में खत्म होते नहीं देखना चाह रहे थे। लोगों को लग रहा था कि अगर किसी दूसरी पार्टी की सरकार आएगी तो ये योजनाएं चालू नहीं रह पाएंगी। ऐसे में अम्मा का समर्थन उनकी मजबूरी बन गया था। दूसरी वजह यह भी रही कि करुणानिधि और उनकी पार्टी जिस शिद्दत के साथ भ्रष्टाचार के मुद्दे को उठाकर जयललिता को बैकफुट पर ला सकती थी, वह नहीं कर पाई। तीसरी बात यह भी रही कि विजयकांत के नेतृत्व में बने थर्ड फ्रंट के चलते जयललिता विरोधी वोटों का विभाजन हुआ।
232 विधानसभा सीटों में AIADMK 118 सीटें जीत चुकी हैं। DMK को 76 सीटों पर जीत मिल गई है। कांग्रेस के खाते में 8 सीटें आई हैं। पिछले विधानसभा चुनावों में तमिलनाडु में AIADMK को 203 और डीएमके को 31 सीटें मिली थीं।
पुडुचेरी की बात करें तो कांग्रेस को 15 सीटें मिली हैं तो AIADMK चार सीटें जीतने में सफल रही है। AINRC को आठ और DMK को 2 सीटें मिली हैं। कांग्रेस को 30 विधानसभा सीटों वाले इस राज्य से ही राहत मिली है।