लखनऊ। विधानसभा में 8 मार्च की कार्यवाही के दौरान संसदीय कार्य मंत्री आजम खां की खुद पर की गईं टिप्पणियों पर गवर्नर राम नाईक ने सख्त रुख अख्तियार किया है। विधानसभा की कार्यवाही के परीक्षण के बाद गवर्नर ने स्पीकर माता प्रसाद पाण्डेय को शुक्रवार को पत्र लिखकर यहां तक कह दिया है कि सदन में आजम की भाषा उनके संसदीय कार्य मंत्री होने की योग्यता पर सवालिया निशान लगाती है। उन्होंने पत्र की कॉपी सीएम अखिलेश यादव को भी भेजी है।
बजट सत्र में चर्चा के दौरान आजम खां ने नगर निगम और नगर पालिका संशोधन विधेयक का हवाला देते हुए गवर्नर पर सवाल खड़े किए थे। चर्चा के दौरान सीएम खुद भी सदन में मौजूद थे। 9 मार्च को प्रकाशित खबरों को आधार बनाकर उसी दिन गवर्नर ने विधानसभा अध्यक्ष से कार्यवाही की रॉ और एडिटेड फुटेज तलब की थी। 15 मार्च को अध्यक्ष ने उन्हें फुटेज उपलब्ध करवाईं। करीब 10 दिन के परीक्षण के बाद गवर्नर ने तल्ख टिप्पणियों के साथ माता प्रसाद पाण्डेय को पत्र लिखा है, जिसमें आजम के साथ स्पीकर भी सवालों के घेरे में हैं।
सीएम से करूंगा बात पत्र में लिखा है कि आजम की गवर्नर पर 60 लाइनों की टिप्पणी में 20 लाइनें हटा दी गई हैं। उनके भाषण की 33% पंक्तियों को हटाना दर्शाता है कि उनकी भाषा विधानसभा की गरिमा, मर्यादा और परंपरा के अनुकूल नहीं है। सदन में संसदीय कार्यमंत्री का वक्तव्य उनकी योग्यता पर प्रश्नचिह्न के समान है कि क्या वे इस कार्य के योग्य हैं? इस पर सीएम से मुझे विचार करना पड़ेगा।
स्पीकर को बुलाया गवर्नर ने लिखा है कि कार्यवाही में आपके द्वारा (स्पीकर) आजम की भावनाओं को मुझ तक व्यक्तिगत रूप से पहुंचाने का जिक्र है। इसके लिए आप अपनी सुविधानुसार यथाशीघ्र भेंट कर सकते हैं। आपने यह भी कहा था कि ‘जनहित के बिलों पर उन्हें (गवर्नर) गंभीरता से सोचना चाहिए।’ मेरे लंबे राजनैतिक जीवन व गवर्नर के कार्यकाल की अवधि से आप भलीभांति अवगत होंगे कि मैं किस प्रकार जनहित से जुड़े मुद्दों के प्रति संवेदनशील रहा हूं। इस संबंध में आपसे भेंट के दौरान चर्चा का इच्छुक हूं।
संवैधानिक स्थिति अखिलेश सरकार में मंत्री शिवपाल यादव ने इस मामल में प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि यह सीएम का अधिकार है कि मंत्रिमंडल में कौन होगा कौन नहीं, गवर्नर को इस मामले में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है। उन्होंने कहा कि उम्मीद है कि वह अपने संवैधानिक दायित्वों का पालन करेंगे। दूसरी तरफ, संविधानविद् सी बी पांडेय ने कहा, ‘गवर्नर सीएम की संस्तुति पर ही मंत्री नियुक्त करते हैं। ऐसे में गवर्नर सीएम से उन्हें हटाने की सिफारिश कर सकते हैं, उसको मानना सीएम का विवेकाधिकार है। गवर्नर भी विधायिका का अंग हैं। अगर वह किसी मंत्री के सदन में आचरण पर सवाल उठाते हैं तो विधानसभा इस पर चर्चा कर मंत्री के कृत्य की भर्त्सना भी कर सकती है।’
आजम बनाम राजभवन वैसे, राजभवन से आजम खां का पुराना छत्तीस का आंकड़ा रहा है। टीवी राजेश्वर ने गवर्नर रहते हुए जौहर विवि का विधेयक रोका था तो आजम खां ने राजभवन पर सार्वजनिक मंचों से तीखे हमले बोले। राजेश्वर ने इस पर मुलायम और आजम दोनों को तलब कर सफाई मांग ली थी। बीएल जोशी के कार्यकाल में आजम खां ने कहा था कि अगर जौहर विवि पर राजभवन को समस्या है तो वह मुझे बुलाकर बात कर लें। आजम ने गवर्नर से मिलने के बाद कहा कि राज्यपाल उन पर विधेयक वापस लेने का दबाव बना रहे हैं।