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यू0पी0 सरकार ने दी इलाहाबाद हाईकोर्ट को चुनौती, सुप्रीमकोर्ट में सुनवाई 4 को

उत्तर प्रदेश में निकाय चुनाव को लेकर राजनीति जबरदस्त तरीके से जारी है। ओबीसी आरक्षण के मुद्दे पर इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को उत्तर प्रदेश की सरकार ने फिलहाल सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। इसको लेकर जो बड़ी खबर आ रही है. वह यह है कि इस मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में 4 जनवरी को होगी। राज्य सरकार की ओर से इस मामले में सॉलीसीटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट में अपना पक्ष रखा। यूपी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाने की भी मांग की। उत्तर प्रदेश सरकार के इस मांग पर मुख्य न्यायाधीश ने बुधवार यानी कि 4 जनवरी को सुनवाई के लिए लगाने की बात कही है। हालांकि, यूपी सरकार जल्द से सुनवाई के पक्ष में है।

हाईकोर्ट के फैसले को उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी जिसके बाद वह मामले की जल्द सुनवाई के लिए तैयार भी हो गया था। आपको बता दें कि इलाहाबाद उच्‍च न्‍यायालय ने 27 दिसंबर को उत्तर प्रदेश सरकार की नगर निकाय चुनाव संबंधी मसौदा अधिसूचना को रद्द करते हुए राज्य में नगर निकाय चुनाव बिना ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) आरक्षण के कराने का आदेश दिया था। राज्य सरकार ने इस आदेश के खिलाफ अपनी अपील में कहा है कि उच्च न्यायालय पांच दिसंबर की मसौदा अधिसूचना को रद्द नहीं कर सकता है, जिसमें अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और महिलाओं के अलावा ओबीसी के लिए शहरी निकाय चुनावों में सीटों का आरक्षण प्रदान किया गया था।

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हाईकोर्ट के फैसले पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ट्वीट कर कहा था कि उत्तर प्रदेश सरकार नगरीय निकाय सामान्य निर्वाचन के परिप्रेक्ष्य में एक आयोग गठित कर ट्रिपल टेस्ट के आधार पर अन्य पिछड़ा वर्ग के नागरिकों को आरक्षण की सुविधा उपलब्ध कराएगी। इसके उपरान्त ही नगरीय निकाय सामान्य निर्वाचन को सम्पन्न कराया जाएगा। उन्होंने आगे लिखा कि यदि आवश्यक हुआ तो माननीय उच्च न्यायालय के निर्णय के क्रम में सभी कानूनी पहलुओं पर विचार करके प्रदेश सरकार माननीय सर्वोच्च न्यायालय में अपील भी करेगी। राज्य के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने लिखा कि नगरीय निकाय चुनाव के संबंध में माननीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद के आदेश का विस्तृत अध्ययन कर विधि विशेषज्ञों से परामर्श के बाद सरकार के स्तर पर अंतिम निर्णय लिया जाएगा, परंतु पिछड़े वर्ग के अधिकारों को लेकर कोई समझौता नहीं किया जाएगा!