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प्रकाशक और लेखकों के मध्य हुआ कॉन्ट्रेक्ट तथा लेखकों को प्राप्त हुई एडवांस रायल्टी मनी

झाँसी। बुन्देलखण्ड के साहित्यिक इतिहास में आज का दिन स्वर्णिम पल के रूप में दर्ज हो गया है। वर्षों प्रकाशक की तलाश में भटकते रहे बुन्देलखण्ड के बहुत से साहित्यकार गुमनामी के अधेरे में डूब से गये थे और उन साहित्यकारों की कृतियाँ धूल-धूसरित हो रहीं थीं। मण्डलायुक्त डॉ० अजय शंकर पाण्डेय ने बुन्देलखण्ड की साहित्यिक विरासत के संवर्धन करने का जो अभियान चलाया है उसमें अप्रकाशित बुन्देली साहित्य को प्रकाशित कराने का भी प्रमुख जोर रहा है। इसके लिये बुन्देलखण्ड साहित्य उन्नयन समिति का गठन भी किया गया है। मण्डलायुक्त ने इस समिति को जो मुख्य दायित्व सौंपा था वह यही था कि बुन्देलखण्ड की ऐसी पाण्डुलिपियों को रचनाओं को संकलित करायें, जोकि संसाधनों के अभाव में कहीं धूल फाँक रहीं थीं या दम तोड़ रहीं थीं। इसे असली जामा पहनाने मण्डलायुक्त डॉ० अजय शंकर पाण्डेय ने “गुमनाम से नाम की ओर” योजना के माध्यम से अप्रकाशित पुस्तकों को प्रकाशित कराने की सीरीज शुरू की है।
मण्डलायुक्त के सतत् प्रयास का रंग आज अपनी पूरी लौ में दिखा ऐसी 15 पाण्डुलिपियाँ को न केवल अंतिम रूप दिया गया, अपितु इन्हें आज ही एक प्रकाशक उपलब्ध करा दिया गया है। प्रकाशक प्रयागराज की एक प्रतिष्ठित फर्म के रूप में है। बात यहीं खत्म नहीं हुई। प्रकाशक ने आज ही आयुक्त सभागार में इन सभी लेखकों के साथ कॉन्ट्रेक्ट भी साइन किया कॉन्ट्रेक्ट पर प्रकाशक के भी हस्ताक्षर हुए बात यहीं नहीं रुकी, इससे आगे बढ़कर प्रकाशक ने इन रचनाकारों को एडवांस रायल्टी भी उपलब्ध करायी साहित्य जगत के इतिहास का यह पहला ऐसा अवसर है जब एक साथ इतनी पाण्डुलिपियों का कान्ट्रेक्ट प्रकाशक ने एक समय एक दिन और एक स्थान पर किया गया हो। यहीं नहीं लेखकों को जो अभी तक प्रकाशक की तलाश में प्रकाशक चुनने के लिये अपना पैसा खर्च करना पड़ता था, आज इसके उलट उन्हें अपना पैसा खर्च करना तो दूर की बात है बल्कि एडवांस टोकन रायल्टी भी प्राप्त हो गई। इस अवसर पर आज लेखक श्री ओमप्रकाश मिश्रा का कहना है कि “उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था कि हमारी किताब छप पायेगी। लेखक श्री विजय शंकर करौलिया ने कहा कि “यह उनके लिये अकल्पनीय क्षण है” एक लेखक के आंखों में खुशी के आंसू छलक पड़े। लेखक श्री राम प्रकाश गुप्ता ने कहा कि “यह बुन्देलखण्ड के गुमनाम साहित्यकारों के लिये अत्यन्त ही सुखद घड़ी है कि अब उन्हें अपने रचनाओं को छपवाने के लिये दर-दर नहीं भटकना पड़ेगा, वह अपनी हृदय की आन्तरिक गहराइयों से मण्डलायुक्त को कोटि- कोटि धन्यवाद देते हैं।” अन्त में समस्त लेखकों द्वारा सामूहिक रूप से एक सुर में कहा कि बुन्देलखण्ड साहित्य उन्नयन समिति और मण्डलायुक्त ने जो कार्य किया है वह कभी भी भूला नहीं जा सकता है।