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या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता , नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः “

बाराबंकी या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता , नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ” बसंतीय नवरात्रि के प्रथम दिन जनपद के विभिन्न गांवों व कस्बों में श्रद्धालुओं ने कलश स्थापना के पश्चात आदि शक्ति स्वरूपा मां दुर्गा के प्रथम स्वरूप मां शैलपुत्री की विधि विधान पूर्वक पूजा अर्चना करने के उपरांत नवरात्र का व्रत धारण किया।पौराणिक मान्यताओं के अनुसार बसंतीय नवरात्र के प्रथम दिन आराध्य देवी मां शैलपुत्री की पूजा-अर्चना किये जाने का विधान है पूर्व जन्म में इनके पिता राजा दक्ष थे जिन्होंने प्रजेश की उपाधि प्राप्त होने पर यज्ञ किया समस्त परिजनों को आमंत्रित किया परंतु अपने दामाद भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया । यज्ञ स्थल पहुंचने पर सती का तिरस्कार हुआ अपमान से कुपित सती ने यज्ञ की अग्नि में कूदकर अपने प्राणों की आहुति दे दिया उधर भगवान शिव की समाधि भंग हुई तो उन्होंने वीरभद्र नामक अपने गण को भेजा जिन्होंने यज्ञशाला का विध्वंस कर दिया तत्पश्चात सूचना मिलने पर भगवान शिव सती के जले हुए शरीर को लेकर चल पड़े धरती पर सती के अंग जहां जहां पर गिरे वहां वहां पर शक्ति पीठों की स्थापना हुई।
सती का अगला जन्म पर्वतराज हिमालय के यहां हुआ राजा की पुत्री होने के कारण इनका नाम शैलपुत्री पड़ा नवरात्र के प्रथम दिन इन्हीं की पूजा अर्चना किए जाने का विधान शास्त्रों में मिलता है नवरात्र के प्रथम दिन इनके इस स्वरूप की विधि विधान पूर्वक पूजा अर्चना करने से सारे संकट दूर हो जाते हैं तथा लौकिक और पारलौकिक दोनों लोगों में शांति मिलती है इसलिए साधक को मां दुर्गा के इस स्वरूप की साधना करनी चाहिए।नवरात्रि के प्रथम दिन जनपद के नागेश्वर नाथ मंदिर शीतला देवी मंदिर जंगलेश्वर मंदिर अमरा देवी मंदिर अमरा कटेहरा मंदिर गुरसेल मंदिर ज्वालामुखी मंदिर महादेवा कुंतेश्वर धाम मंदिर समेत पूरे जनपद के विभिन्न गांवों में श्रद्धालुओं ने कलश स्थापना के पश्चात आदि शक्ति स्वरूपा मां दुर्गा के प्रथम स्वरूप मा शैलपुत्री की विधि विधान पूर्वक पूजा अर्चना के उपरांत नवरात्रि व्रत को धारण किया वहीं सौभाग्यवती स्त्रियों ने मां दुर्गा को अपने सुहाग सूचक बिंदी सिंदूर चूड़ी कंठहार व धानी चुनरिया भेंट करके अपने सुहाग की लंबी उम्र की कामना किया।