Breaking News

जर्जर भवन वाले परिषदीय विद्यालयों का संचालन कतई न हो: सीएम योगी

लखनऊ सीएम योगी ने कहा कि यह सुनिश्चित किया जाए कि जर्जर भवन वाले परिषदीय विद्यालयों का संचालन कतई न हो। पठन-पाठन वहीं हो जहां विद्यालय भवन व्यवस्थित हो। यदि कहीं जर्जर भवन हो तो उसे तत्काल ध्वस्त कराएं, वहां के बच्चों को समीपवर्ती अन्य विद्यालयों में शिफ्ट करें।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने निर्देश दिया है कि प्रदेश के सभी जिलों में एक-एक विद्यालय अभ्युदय कंपोजिट विद्यालय के रूप में विकसित किया जाए। अभ्युदय कंपोजिट विद्यालयों को प्रारंभिक तौर पर पायलट प्रोजेक्ट के रूप में लिया जाए। इसके बाद आगे और विस्तार दिया जाए।

वह शुक्रवार को बेसिक शिक्षा विभाग की योजनाओं की प्रगति और भावी कार्य योजना की समीक्षा बैठक कर रहे थे। उन्होंने कहा कि डिजिटल लर्निंग को प्रोत्साहित करने के लिए प्राथमिक व उच्च प्राथमिक विद्यालयों के 2.36 लाख शिक्षकों को सितंबर तक टैबलेट उपलब्ध कराया जाए। शिक्षकों का प्रशिक्षण कराया जाए ताकि वे इसका बेहतर प्रयोग कर सकें।

मुख्यमंत्री ने कहा कि परिषदीय विद्यालयों में ढांचागत विकास के लिए ऑपरेशन कायाकल्प के पहले चरण में अपेक्षित सफलता मिली है। अब इंफ्रास्ट्रक्चर के साथ शैक्षिक गुणवत्ता, पठन-पाठन का माहौल, तकनीकी दक्षता, डिजिटल लर्निंग, वोकेशनल शिक्षा की ओर बढ़ना होगा। इसके लिए ऑपरेशन कायाकल्प के दूसरे चरण की शुरुआत की तैयारी करें।

उन्होंने कहा कि विद्यालय में कहीं भी शिक्षकों का अभाव न हो। शिक्षक-छात्र का अनुपात मानक के अनुरूप हो। विद्यालयों में कक्षाओं की संख्या बढ़ाई जाए। यह सुनिश्चित करें कि जर्जर भवन वाले परिषदीय विद्यालयों का संचालन कत्तई न हो। कहीं जर्जर भवन हो तो उसे तत्काल ध्वस्त कराएं, वहां के बच्चों को समीपवर्ती अन्य विद्यालयों में शिफ्ट करें। प्रोजेक्ट अलंकार के तहत माध्यमिक विद्यालयों के जीर्णोद्धार कार्य को तेजी से बढ़ाएं। शासकीय के साथ-साथ वित्तपोषित अशासकीय विद्यालयों में संबंधित प्रबंध तंत्र के सहयोग से जीर्णोद्धार का कार्य कराया जाना चाहिए।

ड्रॉप आउट बच्चों को रोकने का हो प्रबंध
सीएम ने बताया कि परिषदीय विद्यालयों के इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करने में 11 हजार करोड़ रुपये खर्च किये गए हैं। बेसिक शिक्षा परिषद के विद्यालयों में विद्यार्थियों की संख्या बढ़ी है। 55 से 60 लाख नए बच्चों का नामांकन हुआ। इस संख्या को और बढ़ाने के साथ ही ड्रॉप आउट को नियंत्रित किए जाने की जरूरत है। इसके लिए अभिभावकों से संवाद तथा तकनीक का प्रयोग किया जाए।