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रोहिंग्या समस्या पर ‘चार मोर्चे’ वाली रणनीति अपना रही मोदी सरकार

नई दिल्ली। म्यांमार से भागकर लाखों की संख्या में बांग्लादेश पहुंच रहे रोहिंग्या शरणार्थियों का मुद्दा इन दिनों पूरी दुनिया में चर्चा का विषय बना हुआ है। इस जटिल समस्या को लेकर भारत सरकार ने भी अपना स्टैंड साफ कर दिया है। दरअसल, मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए मोदी सरकार इसे लेकर एक साथ चार मोर्चों पर काम कर रही है। यह समस्या एक तरह से भारत की कूटनीति और आतंकवाद से लड़ने की क्षमताओं के लिए एक बड़ी परीक्षा की तरह है।

विदेश दौरे से लौटने के बाद पीएम मोदी को इस बात का अहसास था कि म्यांमार के शरणार्थियों के मुद्दे पर अगर उन्होंने कोई साफ स्टैंड नहीं लिया तो इससे भारत और बांग्लादेश के अंदर कई तरह की समस्याएं खड़ी हो जाएंगी। सरकार के सीनियर अफसर इसे लेकर तुरंत सक्रिय हो गए। बांग्लादेश के उच्चायुक्त सैयद मुअज्जम अली की भारतीय विदेश सचिव एस जयशंकर से मुलाकात के बाद, भारत ने अपने रुख में अहम बदलाव लाते हुए म्यांमार से हिंसा रोकने और शरणार्थियों को बाहर जाने से रोकने की अपील की। दूसरी तरफ बुधवार से भारत रोजाना रोहिंग्या शरणार्थियों के लिए राहत सामग्री बांग्लादेश भेजने का काम भी कर रहा है। ऐसा लगता है कि भारत ने म्यांमार से बांग्लादेश की तरफ 180 डिग्री का डिप्लोमैटिक टर्न ले लिया है।

सुप्रीम कोर्ट भी रोहिंग्या शरणार्थियों को देश से बाहर किए जाने को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रहा है। सोमवार को केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर अपना पक्ष रखेगी। गृह राज्य मंत्री किरन रिजिजू साफ कह चुके हैं कि रोहिंग्या शर्णार्थियों को वापस भेजा जाएगा। सूत्र बता रहे हैं कि सरकार इस मामले में चार मोर्चों वाली रणनीति पर काम कर रही है। सरकार की इस रणनीति की झलक विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के बयानों में भी दिखेगी, जब वह संयुक्त राष्ट्र महासभा में दूसरी बार भारत का प्रतिनिधित्व करेंगी।

इस रणनीति के तहत भारत रोगिंग्या आतंकी समूहों के खिलाफ कार्रवाई के म्यांमार के अधिकार का भारत समर्थन करता रहेगा। 9 सितंबर को जारी बयान में विदेश मंत्रालय ने कहा, ‘हमने रखाइन प्रांत में म्यांमार के सुरक्षाबलों पर आतंकी हमलों की पहले भी कड़ी आलोचना की है। दोनों देशों ने तभी से आतंकवाद के खिलाफ लड़ने की मजबूत इच्छाशक्ति दिखाई है और यह तय किया है कि इसे किसी भी हाल में न्यायसंगत नहीं ठहराया जाएगा।’ म्यांमार दौरे के समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी सुरक्षाबलों के जवानों और अन्य निर्दोष लोगों के मारे जाने पर चिंता जाहिर की थी।

इसके साथ ही, भारत रखाइन प्रांत के विकास में मदद भी म्यांमार की करेगा ताकि समस्या से उसकी जड़ में ही निपटा जा सके। इसके अलावा, भारत रोंहिग्या मुद्दे के राजनीतिक समाधान के लिए म्यांमार का दबाव भी डालेगा। शुक्रवार को विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने बांग्लादेश की पीएम शेख हसीन से फोन पर हुई बातचीत में कहा कि भारत, म्यांमार द्वारा रोहिंग्या मुस्लिमों को बांग्लादेश और क्षेत्र के दूसरे देशों की तरफ खदेड़ने के कदम का विरोध करेगा। बड़ी संख्या में रोहिंग्या मुस्लिमों के दूसरे देशों में जाने से इस बात की आशंका काफी बढ़ रही है कि पाकिस्तान स्थित लश्कर-ए-तैयबा, अल-कायदा और यहां तक कि इस्लामिक स्टेट (IS) जैसे आतंकी संगठन भी उनका इस्तेमाल आतंकी गतिविधियों के लिए कर सकते हैं। इस बात के पर्याप्त सबूत मौजूद हैं कि काफी संख्या में रोहिंग्या मुस्लिम आतंकी संगठनों में शामिल हुए हैं। बांग्लादेश पहले ही आतंकवाद की समस्या से जूझ रहा है। ऐसे में वहां जमात और बीएनपी जैसे आतंकी संगठन अपने हितों के लिए रोहिंग्या का इस्तेमाल कर सकते हैं। बांग्लादेश में अगले साल चुनाव होने हैं और अगर वहां ऐसा होता है तो यह देश के लिए काफी घातक साबित होगा।

सूत्रों ने बताया कि चार मार्चों वाली रणनीति के तहत ही भारत सरकार अवैध प्रवासियों को देश के बाहर करने के अपने अधिकार का जमकर बचाव करेगी। यह मुद्दा बीजेपी के लिए राजनीतिक तौर पर काफी संवेदनशील है, क्योंकि पार्टी नॉर्थ-ईस्ट के राज्यों में चुनाव के दौरान इसके खिलाफ खुलकर प्रचार भी कर चुकी है। इसके अलावा जम्मू में रोहिंग्या मुस्लिमों की मौजूदगी ने भी ‘आतंकी कनेक्शन’ की आशंका को मजबूत किया है। जाकिर मूसा जैसे आतंकियों द्वारा रोहिंग्या मुस्लिमों का समर्थन करना इसी का संकेत है।

इसके अतिरिक्त, भारत ने इस सप्ताह अपने अधिकार के खिलाफ टिप्पणी के लिए संयुक्त राष्ट्र को भी आड़े हाथों लिया। संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत के स्थायी प्रतिनिधि राजीव के. चंदर ने ने कहा, ‘संयुक्त राष्ट्र के उच्चायुक्त की ओर से इस तरह की टिप्पणियों से हम आहत हैं। उनका बयान भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में आजादी और हकों को गलत तरीके से बढ़ावा देने वाला है। गलत और चुनिंदा रिपोर्टों के आधार पर कोई जजमेंट देना गलत है और इससे किसी भी समाज में मानवाधिकार की चिंता नहीं की जा सकती।’