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यूपीए हो या एनडीएए, भारत सरकार के साथ स्थिर संबंधों से नवीन पटनायक को फायदा होता है

लोकसभा चुनाव का बिगुल बजने वाला है। इसके साथ ही कुछ राज्यों में विधानसभा के चुनाव भी होंगे। लोकसभा के साथ दिन राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने हैं। उनमें आंध्र प्रदेश और ओडिशा शामिल है। इन दोनों ही राज्यों में भाजपा अपने दम पर लगातार लड़ाई लड़ती रहती है। हालांकि, इन दोनों ही राज्यों में एक सामानता जरूरी है जो कि भाजपा के लिए परिस्थितियों को काफी सहज करता है। ओडिशा में बीजेडी और नवीन पटनायक की सरकार है। वहीं, आंध्र प्रदेश में जगन मोहन रेड्डी के नेतृत्व वाली वाईएसआर कांग्रेस की सरकार है। यह दोनों दल भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए गठबंधन का हिस्सा नहीं है। बावजूद इसके केंद्रीय नेतृत्व के साथ इन दोनों ही नेताओं के रिश्ते बेहद में सहज है, सरल है। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि बीजेडी और वाईएसआर कांग्रेस की रणनीति भाजपा के लिए क्या है? वाईएसआर कांग्रेस और बीजेडी का जो रिश्ता भाजपा के साथ है, उसे क्या नाम दिया जा सकता है?

नवीन पटनायक और भाजपा

चाहे यूपीए हो या एनडीए, भारत सरकार के साथ स्थिर संबंधों से नवीन पटनायक को फायदा होता है। ओडिशा की अधिकांश लोकसभा सीटें जीतने का उनका रिकॉर्ड मोदी की लोकप्रियता से भी नहीं टूटा। हालांकि, मोदी और पटनायक के प्रतिद्वंद्वी नहीं हैं। उनके अच्छे संबंध हैं। लेकिन ओडिशा में बीजेपी ने बीजेडी के वोटों में सेंध लगा ली है। दोनों पार्टियाँ हमेशा एक-दूसरे की प्रतिद्वंद्वी नहीं थीं। 1997 में अपने पिता की मृत्यु के बाद नवीन पटनायक ने पहली बार चुनावी राजनीति में प्रवेश किया और उपचुनाव जीता। जब एक साल बाद जनता दल विभाजित हो गया, तो पटनायक ने अपनी पार्टी बनाई और केंद्र में तत्कालीन अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार में केंद्रीय इस्पात और खान मंत्री बने। इससे नई क्षेत्रीय पार्टी बीजेडी की राजनीतिक शुरुआत हुई, जो आज तक ओडिशा पर शासन कर रही है। बाद में 2000 में, बीजद और भाजपा ने ओडिशा में गठबंधन सरकार बनाई, जिसमें पटनायक मुख्यमंत्री बने। भगवा पार्टी के साथ गठबंधन में, पटनायक ने 1998, 1999 और 2004 में तीन लोकसभा चुनाव और साथ ही 2000 और 2004 में दो विधानसभा चुनाव भी लड़े। 2008 में दोनों दलों के बीच गठबमधन टूट गईं।

दोनों दलों के बीच अनौपचारिक सौहार्द हमेशा एक-दूसरे के लिए आपसी समर्थन पर आधारित रहा है। मोदी सरकार ने अतिरिक्त उधार अनुमति के रूप में वित्तीय प्रोत्साहन देकर ओडिशा की मदद की है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, राज्य को वर्ष 2021-22 और 2022-23 के लिए 2,725 करोड़ रुपये की अतिरिक्त उधारी की अनुमति मिली है। दोनों पार्टियों के बीच अच्छे संबंध इस बात से भी जाहिर होते हैं कि प्रधानमंत्री और गृह मंत्री के अनुरोध पर बीजद ने अश्विनी वैष्णव (निवर्तमान केंद्रीय रेल मंत्री) को राज्यसभा के लिए नामित किया। नवीन पटनायक ये बाद हमेशा मानते है कि केंद्र के साथ रिश्ते बनाकर ही राज्य को विकसित किया जा सकता है।

जगन मोहन रेड्डी और भाजपा

पड़ोसी राज्य आंध्र में सत्ताधारी और विपक्षी दोनों पार्टियों के प्रमुख बीजेपी के साथ गठबंधन करना चाहते हैं। स्थिति अनोखी नहीं है। टीडीपी के नायडू 2014 में बीजेपी की मदद से ही सत्ता में वापस आये। 2019 में जगन के नेतृत्व वाली वाईएसआरसीपी की जीत एक कठिन संघर्ष और सफल अभियान का परिणाम थी। जगन को इस बार अपनी बहन की अगुवाई वाली कांग्रेस और पुराने दुश्मन नायडू दोनों से लड़ना होगा। जगन मोहन रेड्डी को पता है कि लोकसभा चुनाव के बाद एक बार फिर से नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार केंद्र में बन सकती है। इसलिए जगनमोहन रेड्डी केंद्र के साथ अपने रिश्ते बना कर रख रहे हैं। साथ ही साथ जगन मोहन रेड्डी को भी लगता है कि केंद्र के साथ रिश्ते बना कर रखने से राज्य को फायदा होगा और एक अच्छा संकेत जाएगा। कुछ लोगों का मानना है कि केंद्र के साथ अच्छे रिश्ते की वजह से ही केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) जैसी केंद्रीय एजेंसियों द्वारा जगन के खिलाफ मामलों में कोई प्रगति नहीं हुई है, जबकि ये एजेंसियां ​​कई विपक्षी नेताओं के पीछे लगातार भाग रही हैं।

 

जगन मोहन रेड्डी भगवा पार्टी के साथ नहीं जा सकते क्योंकि मुस्लिम अल्पसंख्यक और दलित ईसाई वाईएसआरसीपी का एक बड़ा समर्थन आधार हैं। इसलिए, जगन संसद के दोनों सदनों में भाजपा को लगातार समर्थन दे रहे हैं और बदले में, उनके मामलों पर निष्क्रियता के रूप में मोदी सरकार द्वारा उनका समर्थन किया जाता है। जगन चाहते हैं कि यह यथास्थिति 2024 के बाद भी जारी रहे क्योंकि कई सर्वेक्षण और रिपोर्ट मोदी के लिए तीसरे कार्यकाल का संकेत देते हैं। यह भी कहा जाता है कि जगन मोदी-शाह की जोड़ी के मौन समर्थन के बिना टीडीपी सुप्रीमो चंद्रबाबू नायडू पर इस तरह की प्रतिशोध की कार्रवाई करने की हिम्मत नहीं कर पाते।