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नेताओं, टैक्स चोरों और भगोड़ों की मोदी सरकार ने बजा दी…………….’घंटी’!

नई दिल्ली। नेताओं को हम इसलिए चुनते हैं ताकि वो देश चलाएं, जनता के लिए नीति बनाएं. लेकिन जब नेता ही अपनी पार्टियों की आय की जानकारी छिपाने लगते हैं तो इनका चरित्र कठघरे में आता है. देश का एक आम आदमी अपनी कमाई का स्रोत अगर नहीं बता पाता है तो कानून कार्रवाई करता है. लेकिन देश की हर छोटी बड़ी राजनीतिक पार्टी बहुत चालाकी से अपनी कमाई का स्रोत छिपा लेती हैं.

यही कारण रहा कि पिछले ही हफ्ते चुनाव सुधारों पर काम करने वाली संस्था ADR यानी Association for Democratic Reforms की रिसर्च ने बताया देश की राष्ट्रीय और क्षेत्रीय पार्टियों के 69% पैसे का कोई हिसाब किताब नहीं है. लेकिन अब पार्टियों के इसी गुप्त कमाई वाली चाल की बजट ने घंटी बजा दी है.

ABP न्यूज़ लगातार ये मुद्दा उठाता रहा है कि देश में कमाई की जानकारी देने को लेकर आम जनता और राजनीतिक दलों में दोहरा मापदंड क्यों है? लेकिन अब इन राजनीतिक दलों की घंटी बजट ने बजा दी है. वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा कि चुनाव आयोग की तरफ से दिए गए सुझाव को मानते हुए, एक राजनीतिक पार्टी एक शख्स से नकद चंदे के रूप में अधिकतर 2000 रुपए ही ले पाएगी. यानी अब पार्टियां किसी से भी दो हजार रुपए से ज्यादा लेंगी तो उन्हें बताना पड़ेगा कि इसका स्रोत क्या है. अब समझिए कि कैसे बजट में हुआ ऐलान राजनीतिक दलों के चंदे घोटाले की घंटी बजा सकता है.

दरअसल Representation of the People Act, 1951 के section 29-C के तहत राजनीतिक दलों को 20 हज़ार रुपये से ज्यादा के चंदे की ही जानकारी चुनाव आयोग को देनी होती है. इसी का फायदा अब तक पार्टियां उठा लेती थीं. जैसे 2004 से 2015 के बीच राष्ट्रीय-क्षेत्रीय पार्टियों की कुल आय 11 हज़ार 367 करोड़ 34 लाख रुपये थी. लेकिन पार्टियों ने 20 हज़ार रुपये से ज्यादा के चंदे के तौर पर सिर्फ 1 हज़ार 835 करोड़ रुपये मिला हुआ दिखाया. बाकी हजारों करोड़ का चंदा कहां से आया, किसने दिया ये सब पार्टियां गोल कर गई थीं.

लेकिन अब पार्टियों को ना सिर्फ दो हजार रुपए से ज्यादा के चंदे की जानकारी देनी पड़ेगी. बल्कि दो हजार रुपए से ज्यादा का चंदा, चेक या दूसरे डिजिटल माध्यम से ही लेना होगा. वैसे अब तक मिली छूट का फायदा किस पार्टी ने कितना उठाया, ये भी यहां आपके लिए जानना जरूरी है.

2004 से 2015 के बीच कांग्रेस पार्टी को अज्ञात स्रोत से सबसे ज्यादा पैसा मिला है. 11 वर्षों के दौरान कांग्रेस को 3 हज़ार 323 करोड़ रुपये ऐसे सोर्स से मिले हैं, जिनकी कोई जानकारी चुनाव आयोग को नहीं दी गई है. दावे तो बीजेपी भी बड़े बड़े करती है. लेकिन इस मामले में वो भी पीछे नहीं. BJP को 2 हज़ार 125 करोड़ 95 लाख रुपये अज्ञात स्रोतों से मिले हैं. क्षेत्रीय दलों में समाजवादी पार्टी को सबसे ज्यादा 766 करोड़ रुपये अज्ञात सोर्स से मिले हैं. जो उसकी कुल आय का करीब 94% है. सबसे ज्यादा चौंकाती है बहन जी की पार्टी बीएसपी, क्योंकि बीएसपी की आय में 11 साल में 2057 फीसदी का इजाफा हुआ. और 11 साल के दौरान बीएसपी के चंदे का कोई हिसाब किताब नहीं. क्योंकि पार्टी दावा करती है कि उसे 100 फीसदी चंदा अज्ञात स्रोत से मिला है.

हांलाकि सरकार ने एक रास्ता अब ऐसा खोल दिया है. जिसके जरिए पार्टियां फिर चंदे के खेल में काला धन खपा सकती हैं. क्योंकि ऐलान किया गया है कि अब पार्टियों को चंदा देने वाला कोई भी शख्स चेक के जरिये बॉन्ड खरीद सकते हैं और ये रकम किसी राजनीतिक पार्टी के पंजीकृत खाते में चले जाएगी. और ये बॉन्ड किसने राजनीतिक दल के लिए लिया, ये सार्वजनिक नहीं होगा.

आज के बजट ने राजनीतिक दलों के काले चंदे पर लगाम लगाने वाली घंटी तो बजाई है. लेकिन सवाल ये है कि अगर सरकार बीस रुपए की चीज भी कैशलेस तरीके से खरीदने को जनता को प्रेरित कर रही है तो क्यों नहीं पार्टियों को भी छोटा सा चंदा भी चेक या डिजिटल तरीके से लेने का नियम बनाया जाए. चुनाव प्रक्रिया में मौजूद सभी लूपहोल्स अगर बंद नहीं किए गए तो देश में राजनीतिक दल चंदे का घोटाला करते रहेंगे.

टैक्स चोरों की खुली पोल
लेकिन काला धन छिपाकर रखने में जनता भी पीछे नहीं. आज जब देश के वित्त मंत्री ने बजट में टैक्स पर राहत की खबर दी तो पता चला देश में कितने लोग ऐसे हैं जो टैक्स नहीं भरते. अपनी कमाई छिपा लेते हैं.

सरकार आपसे टैक्स इसलिए लेती है, ताकि देश में जिन्हें जरूरत है, उन तक पैसा पहुंचाया जा सके, उन तक सरकारी योजनाओं के जरिए मदद पहुंचाई जा सके.

सरकार ने आज बताया है कि 125 करोड़ की आबादी वाले देश में 2015-16 में सिर्फ 3 करोड़ 70 लाख लोगों ने टैक्स रिटर्न भरा. जिसमें 99 लाख लोग वो हैं जो 2.5 लाख से कम आय दिखाते हैं. 1 करोड़ 95 लाख लोग वो हैं जो 2.5 लाख से 5 लाख के बीच अपनी आय दिखाते हैं. देश में सिर्फ 52 लाख लोग ऐसे हैं जो 5 लाख से 10 लाख के बीच अपनी इनकम बताते हैं.
और सिर्फ 24 लाख लोग ऐसे हैं जो 10 लाख से ज्यादा आय बताते हैं. तो 50 लाख से ज्यादा आय दिखाने वाले लोगों की संख्या देश में सिर्फ एक लाख 72 हजार है.

यहीं पर आकर सरकार का माथा ठनकता है. और यहीं से आपको भी वो जानकारी हम देना चाहते हैं, जो बताती है कि देश में आप भले ईमानदारी से अपना टैक्स पेट काटकर सरकार को दे रहे होंगे, लेकिन लाखों लोग कैसे टैक्स बचाकर काला धन जमा कर रहे हैं.

माथा इसलिए ठनकता है. क्योंकि सिर्फ 24 लाख लोग अपनी आय 10 लाख से ज्यादा बताते हैं. जबकि हर साल 25 लाख तो सिर्फ कारें ही बिक जा रही हैं. 2015 में 2 करोड़ लोगों ने तो विदेश यात्रा की है. 2016 में देश में 10 करोड़ लोगों ने हवाई यात्रा की है. सिर्फ जनवरी भर में ही देश में 60 हजार रॉयल एनफील्ड गाड़ी लोगों ने खरीद ली, जो कम से कम सवा लाख रुपए की आती है.

यही वजह है कि सरकार कह रही है कि देश की ईमानदार जनता पर बोझ डालकर देश के करोड़ों लोग अपना टैक्स बचा रहे हैं. वित्त मंत्री जेटली ने कहा कि हमारा समाज व्यापक रूप से टैक्स जमा करने का पालन नहीं करता. अर्थव्यवस्था में कैश की भरपूर मात्रा होने कारण लोग अपना टैक्स चुकाने से बच जाते हैं. जब बहुत ज्यादा लोग टैक्स चोरी करते हैं, तो इसका भार, उन लोगों पर पड़ता है जो ईमानदार हैं और ईमानदारी से टैक्स चुकाते हैं.

यहां आपको ये दिलचस्प बात भी जरूर जाननी चाहिए कि देश में हर 100 वोटर में से सिर्फ 7 लोग ऐसे होते हैं जो अपना टैक्स ईमानदारी से भरते हैं. नॉर्वे एक ऐसा देश है जहां हर सौ वोटर में सौ टैक्सपेयर भी हैं. स्वीडन में प्रति सौ मतदाता में से 98 टैक्स जरूर भरता है.

सरकार टैक्स चोरों के काले मन की सच्चाई तो देश को बता चुकी है. लेकिन ये टैक्स चोर कैसे रडार पर आएंगे और कैसे इनसे टैक्स वसूला जाए. ये सिस्टम अभी जटिल बना हुआ. अर्थशास्त्री यहां सवाल उठाते हैं.

अर्थशास्त्री प्रवीण झा बताते हैं कि टैक्स चोरी की व्यवस्था बहुत जटिल है, बजट में ऐसा कोई भी क़दम नहीं उठाया गया है जिससे ये कहा जा सके कि टैक्स चोरी में ज़बरदस्त गिरावट होगी. जिस देश में सिर्फ 57 अरबपतियों के पास 70 फीसदी आबादी के बराबर का पैसा रखा हो, वहां ये बात गले नहीं उतरती कि 10 लाख से ज्यादा कमाने वाले सिर्फ 24 लाख हैं. ऐसे में जरूरत है कि सरकार अब सिर्फ आंकड़े ना बताए बल्कि कदम उठाए. ताकि ईमानदारी से टैक्स चुकाने वाली जनता पर बोझ कम हो.

डूबे पैसों की वसूली
बैंकों के पैसे डकार कर भागे विजय माल्या जैसे लोगों को सही रास्ते पर लाने की तैयारी सरकार ने इस बजट में कर ली है. वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कड़ा कानून बनाकर डूबे पैसों की वसूली का इरादा जताया है. 17 बैंकों का 7 हजार करोड़ रुपये लेकर लंदन भाग गया विजय माल्या वो चेहरा है, जिसके बहाने आम जनता को देश की बैंकिग व्यवस्था को खोखला कर रहे खतरनाक घुन पता चला.

इस बजट में वित्त मंत्री ने साफ कर दिया है कि बैंकों का पैसा डकारने वाले भगोड़ों पर कठोर कार्रवाई की जाएगी. कानून बनाकर लोन डिफॉल्टरों की संपत्ति को जब्त कर रकम की वसूली की जाएगी. बैंक डिफॉल्टर्स की जानकारी देने वाली संस्था – क्रेडिट ब्यूरो इन्फॉर्मेशन ऑफ इंडिया यानी सिबिल के ताजा आंकड़े बताते हैं. सिबिल के मुताबिक साल 2013 से 2015 के दौरान बैंकों ने कर्ज की 1 लाख 14 हजार करोड़ से ज्यादा की रकम डूबत खाते में डाली है. इसमें से साढ़े 52 हजार करोड़ की रकम ऐसी है, जिसकी वापसी की उम्मीद ही नहीं है.

बैंकों के भगोड़ों ने हमारे-आपके हक पर कैसे डाका डाला है ये भी समझ लीजिए. सरकार ने इस साल खेती और किसानों के कल्याण के लिये जितने का बजट रखा है, बैंकों की डूबी रकम उसके डेढ़ गुना से भी ज्यादा है.

जानकारों के मुताबिक …देश में कर्ज की ऊंची ब्याज दर के पीछे बैंकों की ये डूबी हुई रकम यानी NPA ही है. सरकार इसकी वसूली करने में कामयाब होती है तो देश की जनता को जापान, अमेरिका की तरह बेहद सस्ती दरों में कर्ज मिलने का रास्ता भी साफ हो जाएगा. रिजर्व बैंक पिछले साल सुप्रीम कोर्ट को ऐसे डेढ़ सौ लोन डिफॉल्टर की लिस्ट सौंप चुका है. जिन पर पांच सौ करोड़ से ऊपर की उधारी है.

ये तो कर्ज डकार जाने वाली मोटी मछलियां हैं. अगर ये दायरा 25 लाख के कर्ज तक लाएं…तो डिफॉल्टर्स का आंकड़ा सवा पांच हजार के पार पहुंच जाता है. बताने की जरूरत नहीं कि लोन लेकर दबा जाने का ये गोरखधंधा नेता-अफसर गठजोड़ से चलता है. और कड़वी हकीकत है कि राजनीतिक दबाव या संपर्कों के कारण दिये गये बैंकों के कर्ज ही ज्यादा डूबे हैं.

ऐसे में सबसे बड़ा सवाल ये है कि बैंकों को इस नापाक गठजोड़ से बचाने के लिये सरकार क्या उपाय करने वाली है? एक और कड़वी हकीकत और है. बैंकों के डूबे कर्जों की वसूली के साल 2013 में ही डेट रिकवरी ट्रिब्यूनल यानी कर्ज वसूली आयोग बन गया था. लेकिन बुनियादी ढांचे की कमी के कारण कर्ज वसूली आयोग में 70 हजार से ज्यादा केस पेंडिंग हैं, जिनमें कुल मिलाकर 5 लाख करोड़ से ज्यादा वसूली होनी है. जाहिर है कर्ज वसूली आयोग का बुनियादी ढांचा दुरुस्त किये बैंकों के डूबे कर्जों की वसूली आसान नहीं होगी.