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पत्नी की गैरमौजूदगी में दिए गए तीन तलाक को कोर्ट ने अवैध करार दिया

उज्जैन। देश में तीन तलाक पर चल रही तीखी बहस के बीच शहर की एक फैमिली कोर्ट ने एक महिला को उसके पति द्वारा दिए गए तीन तलाक को ‘अवैध, प्रभावहीन और शून्य’ घोषित कर दिया। कोर्ट का मानना है कि इस मुद्दे पर तलाक देते समय महिला के पति ने मुस्लिम धार्मिक ग्रंथों में दी गई प्रक्रिया का पालन नहीं किया, इसलिए यह तलाक गैरकानूनी है।

पीड़ित महिला के वकील अरविंद गौड़ ने रविवार को बताया कि उज्जैन फैमिली कोर्ट के अडिशनल प्रिंसिपल जज ओमप्रकाश शर्मा ने अपने आदेश में कहा है, ‘तौसीफ शेख द्वारा अर्शी खान को नौ अक्तूबर 2014 को दिया गया तलाक अवैध, प्रभावहीन और शून्य है।’ उन्होंने कहा कि कोर्ट ने अर्शी की शिकायत पर सुनवाई के दौरान नौ मार्च को यह आदेश दिया।

गौड़ ने बताया कि उज्जैन निवासी अर्शी और देवास के रहने वाले तौसीफ का निकाह 19 जनवरी 2013 को हुआ था। निकाह के कुछ समय बाद ही वह पत्नी से दहेज की मांग करने लगा। जब उसकी मांग ठुकरा दी गई तो वह अर्शी को मानसिक रुप से परेशान करने लगा। उन्होंने कहा कि इससे परेशान होकर महिला अपने पति का घर छोड़कर अपने मायके उज्जैन वापस आ गई। बाद में उसने अपने पति के खिलाफ दहेज विरोधी कानून के तहत मुकदमा दायर कर दिया, जो अब भी अदालत में विचाराधीन है।

गौड़ ने बताया कि इस बीच तौसीफ ने अर्शी को नौ अक्तूबर 2014 को मुस्लिम समाज में चली आ रही प्रथा के अनुसार देवास में तीन लोगों के सामने पीड़ित महिला की गैरमौजूदगी में तलाक दे दिया। इस तलाक को देने के लिए उसने अदालत का दरवाजा नहीं खटखटाया। तलाक देने के बाद उसने पीड़िता को एक नोटिस के जरिए सूचित किया कि उसने उसे तीन तलाक बोलकर तलाक दे दिया है।

उन्होंने बताया कि इसके बाद उसके मुवक्किल ने इस नोटिस का जवाब दिया और अदालत में इसे यह कहकर चुनौती दी कि इस तलाक में मुस्लिम धार्मिक ग्रंथों में दी गई प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया। उन्होंने कहा कि तौसीफ इसका कोई ठोस उत्तर देने में असमर्थ रहा, जिसके कारण अदालत ने इस तलाक को अवैध घोषित कर दिया। इस मामले में तौसीफ ने फैमिली कोर्ट के क्षेत्राधिकार का मुद्दा भी उठाया, लेकिन न्यायाधीश ने उसकी इस दलील को भी खारिज कर दिया।