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UN सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता के लिए भारत अस्थायी रूप से वीटो का अधिकार छोड़ने को तैयार

संयुक्त राष्ट्र। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) में स्थायी सदस्य के रूप में शामिल होने के लिए भारत सहित जी4 के अन्य देश वीटो के अधिकार को कुछ समय के लिए छोड़ने को तैयार हैं। संयुक्त राष्ट्र सुधार प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के प्रयास के तहत जी4 देशों ने कहा है कि वे नए विचारों के लिए तैयार हैं और स्थायी सदस्य के तौर पर अस्थायी रूप से वीटो का अधिकार नहीं होने के विकल्प को लिए भी तैयार हैं।

संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थाई प्रतिनिधि सैयद अकबरूद्दीन ने अंतर सरकारी वार्ता बैठक में एक संयुक्त बयान में कहा कि सुरक्षा परिषद में सुधार के लिए बड़ी संख्या में सदस्य देश स्थायी और अस्थायी सदस्यता के विस्तार का समर्थन करते हैं। जी-4 में भारत के अलावा ब्राजील, जर्मनी और जापान शामिल हैं।

बयान में कहा गया, ‘इस बात से अवगत हैं कि आगे बढ़ने के लिए कोई दूसरा तरीका नहीं है, लेकिन इसके साथ ही हम संयुक्त राष्ट्र में सुधार के लिए नए विचारों का स्वागत करते हैं।’ जी4 देशों ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि अभी तक उन्हें कोई प्रगतिशील विचार सुनने को नहीं मिला है और कुछ देश पुराने ठुकराए गए विचारों को दोबारा पेश कर रहे हैं।

बयान में कहा गया कि उनका मानना है कि सुरक्षा परिषद में स्थायी और गैर स्थायी सदस्यों के बीच ‘प्रभाव का असंतुलन’ है और गैर स्थाई श्रेणी में विस्तार करने भर से समस्या हल नहीं होगी। बयान में आगे कहा गया है,‘वास्तव में यह स्थायी और गैर स्थायी सदस्यों के बीच अंतर को और गहरा करेगा।’ वीटो के मुद्दे पर जी4 ने कहा उनका मानना है कि प्रतिबंध लाने पर-वीटो का मामला मात्रात्मक न हो कर गुणवत्ता का है।

यूएनएससी में सुधार और उसके बाद स्थायी सदस्यता के लिए भारत की मुहिम को ब्रिटेन और फ्रांस जैसे देशों सहित संयुक्त राष्ट्र के कई सदस्यों से मजबूत समर्थन मिला है। ये देश इस बात पर जोर दे रहे हैं कि विश्व संस्था की शीर्ष इकाई को निश्चित तौर पर ऐसा होना चाहिए, जो नई वैश्विक शक्तियों को प्रतिबिंबित करे।

संयुक्त रूप से दावेदारी करने के कारण जी4 देशों की स्थिति मजबूत हुई है, लेकिन गुट के सदस्य देशों के क्षेत्रीय विरोधी, गुट के अन्य दावेदारों के प्रति भी उदासीनता दिखा रहे हैं। जैसे चीन नहीं चाहता है कि जापान स्थायी समिति का सदस्य बने और इटली को जर्मनी की दावेदारी पसंद नहीं आ रही है। इसी तरह पाकिस्तान भारत की दावेदारी को कमजोर बनाना चाहता है।