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SC/ST एक्ट को आरक्षण से जोड़ना गदहापंती होगा, ये अंधा कानून है !

योगेश किसलय

राजू बता रहे थे कि उनके केबल नेटवर्क को लेकर एक युवक भारी तनाजा किये हुए था । पुलिस की भी मदद ली गयी लेकिन युवक मानने को तैयार नही था। फिर एक दिन दस बारह लोगो के बीच उसे सौहार्दपूर्ण तरीके से स्थिति को समझाया गया। लड़के ने बात मान ली और खुशी खुशी घर गया । लेकिन कुछ ही दिन बाद उनमे से आठ दस लोगो को पता चला कि हरिजन थाना से उनपर वारंट आया हुआ है। केस करने वाला वही लड़का था जिसे समझा बुझाकर भेजा गया था। वारंट मिलने तक उन्हें पता भी नही था कि युवक हरिजन है। वारंट मिलते ही उन्होंने पुलिस के वरीय अधिकारियों से भेंट की। उस लड़के को बुलाया गया । लड़के ने कहा कि किसी ने उसे समझाया कि अगर वह इनलोगो पर sc st केस करता है तो 20 लाख रुपये मांगे जाएंगे । कुछ पुलिस वालों पर खर्च होगा बाकी पैसे आपस मे बाँट लेंगे। 

पता नही किसने यह कानून बनाया लेकिन नेचुरल जस्टिस के सिद्धांतों के खिलाफ यह कानून है । एकदम अंधा कानून। अगर कोई sc, st एक्ट के तहत आता है तो किसी को भी चुटकियो में परेशान किया जा सकता है । सबसे पहले तो इसके लिए सरकार पर मुकदमा होना चाहिए जो हर फॉर्म में जाति कालम लगाए हुए है। जिस समय आरक्षण मिलना हो उस समय भी उन्हें जाति बताना होता है । सरकार इन्हें अपनी ही नजरो में क्यों गिराना चाहती है जाति पूछकर?
2008 में एक सर्वे आया था जिसमे झारखंड की आदिवासी और दलित लड़कियों के शोषण के आंकड़े बताये गए थे। अचरज होगा कि सबसे अधिक शोषण करने वाले आदिवासी और दलित ही थे और उसके बाद मुस्लिम ।

यह कोई sc, st एक्ट की वजह से नही बल्कि सामाजिक संरचना के कारण ऐसे आंकड़े सामने आए थे। सर्वे करने वाला कोई सवर्ण नही था बल्कि आदिवासी युवक ही था। आज वह एक राजनैतिक दल के साथ जुड़ा हुआ है इसलिए उसने अपना नाम नही बताने का आग्रह किया है।
उधर भारत बंद को लेकर जो हिंसा हुई है उसके कुछ सामान्य तथ्य उजागर हुए हैं। हिंसा करने वाले अधिकांश युवा प्रोफेशनल हैं या बेहद अनाड़ी। ये करनी सेना में भी केसरिया फाटा बंधे दिखाई पड़ते हैं और दलित पार्टी में भी नीला फाटा लपेटे नजर आते हैं । यह केवल भाड़े पर काम करने का धंधा नही बल्कि एक फोबिया है। इन्हें पता भी नही होता है कि आंदोलन किस बात को लेकर है लेकिन तोड़फोड़ करने में ये आगे होते हैं।

जरूरी नही कि इसके लिए उन्हें पैसा दिया गया हो वे स्वयंसेवी की तरह इसमे कूद जाते हैं । कभी फेसबुक पर मैंने क्लेप्टोमेनिया नामक बीमारी की चर्चा की थी जिसमे सम्पन्न लोगों को भी छोटी छोटी चीजे चुराने की आदत सी होती है, निरुद्देश्य। क्रिकेटर ,फ़िल्म कलाकार, पत्रकार और डॉक्टर भी इस बीमारी से ग्रसित होते हैं। वैसा ही एक फोबिया है जो किसी भी युवक को भीड़ का हिस्सा बनकर हिंसा के लिए प्रेरित करता है। इस हिंसा में भी अधिकांश ऐसे ही लोगो की भूमिका रही है । वे भी ऐसा करते हैं निरुद्देश्य। इसे BIpolar disorder कहा जाता है। ( मनोविज्ञान से जुड़े लोगों से कन्फर्म कर लें )। हमे ऐसे बीमारू लोगो को पहचानना होगा। और अंत मे , इस एक्ट को आरक्षण से जोड़ना गदहापंती होगा।
पुनश्च: इस विषय पर फेसबुक पर सैकड़ो पोस्ट लिखे जा रहे हैं जिसमे सवर्ण को स्वर्ण लिखा जा रहा है। भाईलोग सवर्ण को स्वर्ण लिखियेगा तो पंगा और बढ़ेगा ।यानी तू स्वर्ण और मैं कांसा।

(वरिष्ठ पत्रकार योगेश किसलय के फेसबुक वॉल से)