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IIP-GDP में मैन्युफैक्चरिंग ग्रोथ के आंकड़ों में बड़ा अंतर, कौन सही?

data13नई दिल्ली। मेक इन इंडिया और स्टार्टअप्स के नारों के बीच औद्योगिक उत्पादन में लगातार दूसरे महीने दिसंबर में भी गिरावट दर्ज की गई। ये गिरावट खास तौर पर माइनिंग और मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में रही। लेकिन जिस चीज ने ध्यान खींचा वह मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की ग्रोथ को लेकर जीडीपी आंकड़ों और आईआईपी आंकड़ों में बड़ा अंतर है।
केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय द्वारा जारी हालिया आंकड़ों ने कुल औद्योगिक उत्पादन और सकल घरेलू उत्पादन के आंकड़ों को लेकर नया विवाद भी खड़ा होता दिख रहा है। अक्टूबर से दिसंबर के बीच तिमाही के लिए मौजूदा वित्तीय वर्ष के जीडीपी आंकड़ों में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की ग्रोथ 12.6 फीसदी बताई गई थी, जबकि हालिया जारी औद्योगिक उत्पादन सूचकांक के आंकड़ों में इसी अवधि में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की ग्रोथ 0.9 फीसदी बताई गई है।

हालांकि सरकार का कहना है कि दोनों ही आंकड़ों में यह मतभेद गणना करने के अगल-अगल तरीकों को अपनाने के कारण है। जहां आईआईपी फैक्ट्रियों द्वारा कुल उत्पादन से जुड़े आंकड़े मिलने पर निर्भर करता है वहीं नई जीडीपी गणना के लिए सकल मूल्य वर्धित अवधारणा (ग्रॉस वैल्यू ऐडेड कॉनसेप्ट) का इस्तेमाल किया जाता है, और इसके लिए आंकड़े स्टॉक एक्सचेंज से लिए जाते हैं।

वहीं मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की ग्रोथ के आंकड़ों में इतने बड़े अंतर से हैरान आईसीआरए की सीनियर इकॉनमिस्ट अदिति नायर का कहना है कि जीडीपी में बढ़ा हुआ आंकड़ा दरअसल लोअर इनपुट कॉस्ट की देन है। इसके अलावा जहां आईआईपी गणना के लिए 2004-05 को बेस इयर मानता है वहीं जीडीपी की गणना के लिए बेस इयर 2011-12 तय किया गया है।

वहीं क्रिसिल के चीफ इकॉनमिस्ट डीके जोशी का कहना है, ‘नया बेस इयर हकीकत के ज्यादा नजदीक है। वैल्यू ऐडेड औद्योगिक उत्पादन की तुलना में तेजी से बढ़ सकता है। इनमें से एक वॉल्यूम इंडिकेटर है जबकि दूसरा वैल्यू ऐडेड।’

जोशी ने नई जीडीपी गणना का समर्थन करते हुए आईआईपी में समय के साथ सुधार करने की भी जरूरत बताई।