Breaking News

CWG 2018, Women Hockey : 12 साल के खालीपन के बाद हरेंद्र की टीम करेगी गोल्डन धमाका!

जब वो हॉकी पर बात नहीं करते हैं, तो उसके बारे में आमतौर पर सोच रहे होते हैं. अंग्रेजी का एक शब्द है आब्जर्वेशन. लेकिन यह भी भारतीय महिला हॉकी कोच हरेंद्र सिंह के बारे में बताने के लिए काफी नहीं है. करियर के करीब 40 साल हो गए हैं. इसमें जूनियर के तौर पर खेलने से शुरुआत होती है. फिर 1990 के एशियाड में भारत का प्रतिनिधित्व करने का मौका आता है. उसके बाद एक कोच के तौर पर जिंदगी जीनी शुरू की. इस दौरान तमाम उतार-चढ़ाव रहे हैं.

कोच की जिंदगी में तारीफ और आलोचना एक ही सिक्के के दो पहलू हैं. हरेंद्र के लिए भी रहे हैं. हर बार मिलने पर उनकी पहली लाइन होती है – भाई साहब, हॉकी में क्या हो रहा है. इस सवाल के साथ खिली हुई मुस्कान होती है. शायद वो भूल जाते हैं कि वही हैं, जो इस खेल के बीचोंबीच खड़े हैं. लेकिन उनका पहला सवाल हमेशा हॉकी के बारे में होता है. जानकारी लेना उनके लिए ऑक्सीजन की तरह है. इसमें कोई शक नहीं कि उन्होंने टैलेंटेड, ज्यादातर गरीब घरों से आई, कई बार दिशाहीन लड़कियों के ग्रुप में जीत की भूख भरी है. टीम को उन्होंने दिशा दिखाई है. इसे एक ऐसी टीम बनाया है, जो जीत चाहती है, जो पोडियम पर चढ़ना चाहती है.

हरेंद्र ने कभी नहीं सोचा था कि एक दिन वो महिला टीम के कोच बनेंगे. इसकी वजह यही थी कि उन्होंने करीब दो दशक तक पुरुष टीम के साथ काम किया है. वो शायद आश्वस्त नहीं थे कि अपनी जानकारी को वो महिला टीम तक कामयाबी के साथ पहुंचा पाएंगे. तब वो आशंकित थे. अब अलग हरेंद्र दिखते हैं. वो कहते हैं, ‘इन लोगों से मुझे सीखने को मिला है.’ हरेंद्र मुस्कुराते हुए कहते हैं कि महिला टीम का कोच बनने के बाद वो बेहतर इंसान बने हैं और कम्युनिकेशन भी बेहतर हुआ है.

 

indian a women hockey

गोल्ड कोस्ट कॉमनवेल्थ में टारगेट पर है पदक जीतना. लेकिन हरेंद्र कहते हैं, ‘गोल्ड. जीतने और गोल्ड जीतने के लिए ही कोशिश होती है. नहीं तो फिर क्या फर्क पड़ता है.’ उन्हें लगता है कि गोल्ड जीतने लायक टीम उनके पास है. लेकिन गोल्ड या मेडल सोचने से पहले पूल में निपटना होगा. भारतीय टीम पूल ए में है, जहां मलेशिया, वेल्स, इंग्लैंड और दक्षिण अफ्रीका की टीमें हैं.

टीम की कप्तान रानी रामपाल को लगता है कि एशिया कप और दक्षिण कोरिया के खिलाफ सीरीज जीतने से मिला मोमेंटम मदद करेगा. खेलों में नंबर्स का भी बड़ा मतलब होता है. ओलिंपिक चैंपियन इंग्लैंड के खिलाफ भारत ने 27 मैच खेले हैं. दो जीते, 19 हारे हैं और छह ड्रॉ रहे हैं. दो में एक जीत 2002 के कॉमनवेल्थ गेम्स में थी, जब जीत के साथ भारत ने गोल्ड जीता था.

दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ भारत ने 35 मैच खेले हैं. नौ जीते और 19 हारे हैं. सात ड्रॉ रहे हैं. मलेशिया के खिलाफ 32 मैचों में भारत नहीं हारा है. 29 मैच जीते और तीन ड्रॉ रहे हैं. वेल्स के खिलाफ पांच मैच खेले हैं. भारत चार बार जीतने में कामयाब रहा है. एक मैच ड्रॉ रहा है.

हरेंद्र ट्रेनिंग के अलावा साइकोलॉजिकल तरीके अपनाने में यकीन रखते हैं. उन्हें लगता है कि पुरुष प्रधान भारतीय समाज में महिला खिलाड़ियों के लिए यह मौका है, जब वे अपने परिवार को गर्व का मौका दे सकते हैं, ‘हमें इसका सम्मान करना होगा कि ज्यादातर लड़कियों ने उस सोच को तोड़ा है, जहां लड़कियों का खेलना अच्छा नहीं माना जाता. वे अपने परिवार का ध्यान रख रही हैं. यह भूख है, जो उन्हें जीतने और अपनी छाप छोड़ने के लिए प्रेरित करती है.’

गोलकीपर सविता पूनिया दक्षिण कोरिया के खिलाफ विश्राम मिलने के बाद टीम में लौटी हैं. डिफेंस में दीपिका, सुनीता लाकड़ा, दीप ग्रेस इक्का, गुरजीत कौर और सुशीला चानू हैं. मिड फील्ड में निकी प्रधान हैं, जो झारखंड के खूंटी जिले में हेसल गांव से हैं. 2016 में वो झारखंड की पहली महिला ओलिंपिक हॉकी खिलाड़ी बनीं. उनके साथ मोनिका, नमिता टोप्पो, नेहा प्रधान और लीलिमा मिंज हैं. फॉरवर्ड लाइन को डिफेंस और मिड फील्ड से उम्मीदें हैं कि उनके सपोर्ट से वे गोल करने में कामयाब होंगे. फॉरवर्ड लाइन में रानी, वंदना कटारिया, लालरेमसियामी, नवजोत कौर, नवनीत कौर और पूनम रानी हैं. इनके पास अनुभव भी है और कामयाबी के लिए प्रेरणा भी. रानी अब प्लेमेकर की तरह खेलती हैं. उन्हें लगता है कि टीम में अनुभव और युवा का मिश्रण है. वो और कोच हरेंद्र टीम में फिटनेस लेवल के खासा ऊपर जाने की बात कहते हैं.

 

harendra-singh2_2812hi_875

हरेंद्र को लगता है कि टीम 14 अप्रैल को फाइनल में खेलने का मन बना चुकी है. उन्हें लगता है कि महिलाएं अब ज्यादा दृढ़ हैं और उन्हें पता है कि कब क्या करना है. पिछले पांच कॉमनवेल्थ गेम्स में भारत ने एक गोल्ड और एक सिल्वर जीता है. 2002 में गोल्ड के बाद 12 साल पहले सिल्वर मिला था. उसके बाद से टीम खाली हाथ लौट रही है. यही बात तब कही गई थी, जब हरेंद्र आए थे और टीम एशिया कप के लिए गई थी. तब कहा गया था कि 13 साल हो गए कप जीते. भारतीय टीम जीत कर लौटी.

हरेंद्र एक बार फिर अपनी उन यादों में गोते खाएंगे, जिसमें जीत, हार, रोमांचक लम्हे, आंसू और दुख का मिश्रण है. वहां से वो कुछ सीख लेंगे, कुछ जानकारी लेंगे.. उन सबके साथ उस सवाल या कमेंट के जवाब में उतरेंगे कि 12 साल हो गए मेडल जीते… वैसे भी वह ‘उम्मीद है’ शब्द का इस्तेमाल नहीं करते. वह तो कहते हैं, ‘हम गोल्ड जीतने के लिए तैयार हैं.’