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BBC का दावा कि जीसस एक बौद्ध साधू थे, जिन्होंने 61-65 साल भारत में बिताये थे

दुनिया के सबसे बड़े ईसाइ धर्म के अनुयायियों के भगवान ईसा मसीहा जिसे वे जीसस नाम से पुकारते हैं, उनके जीवन से जुड़े एक रहस्य से परदा उठ गया है। ईसा मसीहा के जीवन के 13 से 29 की उम्र तक फिलिस्तीन में उनके ठिकाने या गतिविधियों का कोई भी उल्लेख बाइबिल, पश्चिमी, या मध्य पूर्वी किताब नहीं है। आम तौर पर इसे जीसस की “The Lost Years” कहते हैं और इस बीच जीसस कहां थे, क्या कर रहे थे इसका पता किसी को नहीं था। लेकिन 1887 में रूस के एक डॉक्टर ने भारत, तिबत और अफगानिस्तान में पर्यटन  कर जीसस के इन खॊये हुए वर्षों के बारे में पता लगना शुरू किया।

इस डॉक्टर का नाम निकॊलस नॊटॊविच था और उन्होंने 1894 में एक किताब ‘The Unknown Life of Christ’ लिखी थी जिसमें उन्होंने जीसस के खॊये हुए वर्षों के बारे में अपने खोज को दाखिल किया था। सन 1887 में तिबत यात्रा के दौरान एक हादसे में उनके पैर पर चॊट लगी और वे शुश्रूशा के लिए एक हेमिस बौद्ध मठ में ठहरे हुए थे। उसी बौद्ध मठ में उन्हें ईसा यानी जीसस से जुड़े सच का पता चला। इसा यानी भगवान का बेटा जो इसराइल के एक छॊटे से परिवार में पैदा हुआ था। बौद्ध मठ में मिले उस दस्तावेज़ के 224 छंदों में से 200 का अनुवाद करने के बाद उन्हें पता चला कि तिबत के वैदिक विद्वानों ने ईसा को 13 से 29 की उम्र तक तिबत में पढ़ाया था।

हेमिस मठ के एक लामा ने निकॊलस को उस वक्त जीसस के बारे में बताते हुए कहा कि बौद्ध धर्म के बाईस बुद्ध भिक्षुओं के बाद जीसस ही वह पहले बौद्ध संत थे जो महान भविष्यद्वक्ता थे। ईसा किसी भी दलाई लामा के तुलना में भगवान से अधिक निकट थे। लामा ने कहा था कि ईसा का नाम और उनके कृत्य बौध धर्म के पवित्र लेखन में दर्ज है। भारत में ईसा के समय की खोज पूरी तरह से ईसा के खोए हुए वर्षों के साथ-साथ, मध्य पूर्व में उनके जन्म के समय के साथ भी पूरी तरह से सटीक बैठता है। जब एक लामा गुरू का देहांत होता है तो बौद्ध विद्वान तारॊं की सहायता से अपने अगले लामा की खॊज करते हैं और सही आयू में उसे अपने साथ बौद्ध मठ ले आते हैं और उसे शिक्षा दीक्षा प्रदान करते हैं।

विशेषज्ञों का अनुमान है कि बाईबल में आनेवाले ‘तीन बुद्धिमान पुरुष’ की कहानी का मूलभूत आधार यही है, और अब यह माना जाता है कि ईसा को 13 की आयु में भारत ले जाया गया था और बौद्ध के रूप में पढ़ाया गया था। उस समय, बौद्ध धर्म को स्थापित हुए पांच सौ साल हो गये थे और ईसाई धर्म पैदा भी नहीं हुआ था। माना जाता है कि ईसा मसीहा भारत के वाराणासी और पुरी जगन्नाथ और बिहार के राजगृहा में बौद्ध धर्म के प्रचार प्रसार में जुटे हुए थे। लेकिन वहां के ब्राह्मणॊं के विरॊध के बाद वे कश्मीर चले गये और वहां अगले छह साल तक उन्होंने बौद्ध धर्म का अद्ययन किया।

रूसी दार्शनिक और वैज्ञानिक निकॊलस रोरिच और जर्मनी के विद्वान होलगर केर्स्टन भी मानते हैं की ईसा ने अपने शुरुवाती और अंतिम दिनों को भारत के कश्मीर में बिताया था। BBC के वृत्तचित्र में, यह बताया गया है कि ईसा एक बौद्ध भिक्षू थे और विशेषज्ञों का मानना ​​है कि ईसा को सूली पर चढ़ाया नहीं गया था और वे वहां से बचकर अपने प्रिय भूमी भारत आये थे जहां 45 वर्ष रहने के बाद अस्सी साल के उम्र में उनकी मृत्यु हो गयी थी। जीसस की एक कश्मीरी पत्नी और बच्चे का उल्लेख भी कई किताबों में मिलता है। माना जाता है कि जीसस को कश्मीर के रोज़ा बल मंदिर में दफ़नाया गया था। यह तथ्य वेटिकन के कपॊलकल्पित झूठ से परदा हटा देता है कि दुनिया का सबसे पहला और पुराना धर्म ईसाई धर्म है। वेटिकन यह कभी नहीं चाहेगा कि झूठ से परदा हटे और सच लोगों के सामने आये। अगर सच सामने आयेगा तो लोगों को ठग कर पैसा कमाने का उसका धंदा ही बंद हो जायेगा।