प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नई दिल्ली के भारत मंडपम में YUGM कॉन्क्लेव को संबोधित किया। इस दौरान उन्होंने कहा कि शिक्षा प्रणाली देश के भविष्य के लिए युवाओं को तैयार करने में अहम भूमिका निभाती है, हम इस प्रणाली का आधुनिकीकरण कर रहे हैं। अनुसंधान और विकास (आर एंड डी) पर 2013-14 में सकल व्यय 60,000 करोड़ रुपये था, हमने इसे सवा लाख करोड़ रुपये तक बढ़ा दिया है। उन्होंने यह भी कहा कि हमारा लक्ष्य है कि ‘‘एआई भारत के लिए कारगर हो’’, हमें भारत को भविष्य की हर प्रौद्योगिकी में दुनिया में सर्वश्रेष्ठ बनाने की दिशा में काम करना है।
मोदी ने कहा कि आज यहां सरकार, एकेडमी, साइंस और रिसर्च से जुड़े भिन्न भिन्न क्षेत्र के लोग इतनी बड़ी संख्या में उपस्थित हैं। इस एकजुटता को ही युग्म कहते हैं। एक ऐसा युग्म जिसमें विकसित भारत के फ्यूचर टेक से जुड़े स्टेकहोल्डर्स एक साथ जुड़े हैं, एक साथ जुटे हैं। मुझे विश्वास है, हम जो भारत की इनोवेशन कैपेसिटी और डीप टेक में भारत की भूमिका को बढ़ाने का प्रयास कर रहे हैं, उसे इस आयोजन से बल मिलेगा।
उन्होंने कहा कि किसी भी देश का भविष्य उसकी युवा पीढ़ी पर निर्भर होता है, इसलिए ये जरूरी है कि हम अपने युवाओं के भविष्य के लिए और उनको भारत के उज्ज्वल भविष्य के लिए तैयार करें। इसमें बड़ी भूमिका देश के एजुकेशन सिस्टम की भी होती है, इसलिए हम देश के एजुकेशन सिस्टम को 21वीं सदी की जरूरतों के मुताबिक आधुनिक बना रहे हैं। उन्होंने कहा कि देश में नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति लाई गई है। इसे शिक्षा के वैश्विक मानक को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है। नई शिक्षा नीति आने के बाद हम भारतीय एजुकेशन सिस्टम में बड़ा बदलाव भी देख रहे हैं।
प्रधानमंत्री ने कहा कि DIKSHA प्लेटफॉर्म के तहत एक राष्ट्र, एक डिजिटल बुनियादी ढांचा का निर्माण किया गया है। ये बुनियादी ढांचा, एआई आधारित है। इसका इस्तेमाल देश की 30 से ज्यादा भाषाओं और 7 विदेशी भाषाओं में textbooks तैयार करने में हो रहा है। उन्होंने कहा कि एक राष्ट्र, एक सदस्यता ने युवाओं को ये भरोसा दिया है कि सरकार उनकी जरूरतों को समझती है। आज इस योजना की वजह से उच्च शिक्षा हासिल करने वाले छात्रों की पहुंच विश्व स्तरीय शोध पत्रिकाएँ तक आसान हो गई है।
उन्होंने कहा कि हमने विकसित भारत के लक्ष्य के लिए अगले 25 साल की समय-सीमा तय की है। हमारे पास समय सीमित है, लक्ष्य बड़े हैं। मैं यह बात वर्तमान के लिए नहीं कह रहा हूँ। इसलिए यह ज़रूरी है कि हमारे विचार से लेकर प्रोटोटाइप तक का सफ़र भी कम से कम समय में पूरा हो। जब हम लैब से बाज़ार की दूरी कम कर देते हैं, तो रिसर्च के नतीजे लोगों तक तेज़ी से पहुँचने लगते हैं। इससे रिसर्च को भी प्रेरणा मिलती है।