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होली के दिन लगेगा साल का पहला चंद्रग्रहण, भारत में नहीं दिखाई देगा

बगहा। समाज के हर वर्ग व हर व्यक्ति के उत्साह व उमंग का त्योहार होली 14 मार्च (Holi 2025 Date) शुक्रवार को पड़ रहा है। खगोल शास्त्र व ज्योतिषीय गणना के अनुसार, साल का पहला चंद्र ग्रहण भी इसी दिन लगने वाला है। सेवानिवृत्त शिक्षक सह आचार्य पंडित भरत उपाध्याय ने बताया कि हर साल फाल्गुन महीने के शुक्ल पक्ष में पूर्णिमा की तिथि पर शाम को होलिका दहन होता है। इसके अगले दिन रंगोत्सव मनाया जाता है।

भारत में नहीं लगेगा ग्रहण:

आचार्य ने बताया कि राहत की बात है कि यह चंद्र ग्रहण भारत में नहीं दिखाई देगा। ऐसे में इसका सूतक काल भी मान्य नहीं होगा।

इसका प्रभाव मुख्य रूप से ऑस्ट्रेलिया, यूरोप व अफ्रीका के अधिकांश क्षेत्र के अलावा प्रशांत, अटलांटिक, आर्कटिक महासागर, उत्तरी व दक्षिणी अमेरिका, पूर्वी एशिया और अंटार्कटिका पर पड़ेगा। भारत में चंद्र ग्रहण दिखाई नहीं देगा, क्योंकि चंद्र ग्रहण भारतीय समय अनुसार दिन में घटित होने वाला है।

राशि का प्रभाव:

14 मार्च को लगने वाला यह चंद्र ग्रहण कन्या राशि में होगा, इसलिए कन्या राशि के जातकों को इस दौरान विशेष सावधानी बरतनी चाहिए, क्योंकि इस राशि से संबद्ध जातकों के लिए ये चंद्र ग्रहण अशुभ फल देने वाला रहेगा। 

अगर चंद्र ग्रहण के वैज्ञानिक दृष्टिकोण की बात करें, तो यह एक खगोलीय घटना है। जब सूर्य, पृथ्वी व चंद्रमा एक सीधी रेखा में आते हैं, तो इस दौरान सूर्य का प्रकाश पृथ्वी पर पड़ता है, लेकिन चंद्रमा पर नहीं पड़ता है। इस घटना को ही चंद्र ग्रहण कहते हैं। 

आचार्य ने कहा कि चंद्र ग्रहण का समय भारतीय समय के अनुसार दिन में है और दिन में चंद्रमा का दिखाई देना संभव नहीं है। यह ग्रहण भारतवासियों के लिए नहीं के बराबर है। 

रिवाजों की रस्सी घोंट रही पर्यावरण का दम, आइये इस बार परंपरा का ध्यान रख हरियाली बचाएं हम

मस्ती, उल्लास और रंगों की बौछार यानी होली का त्योहार। उससे पहले सब होलिका दहन की परंपरा निभाते हैं। गांव से लेकर शहर तक के सभी लोग खुशी में सराबोर होते हैं, त्योहार की मस्ती में झूमते हैं, हर ओर शोर होता है। इस शोर में हरियाली का क्रंदन भी शामिल होता है। होलिका दहन की लपटों में हम सबको प्राणवायु देने वाली हरियाली भी जलकर खाक हो जाते हैं। 

पर्व के उल्लास और गुलाल की उमंग में यह ख्याल किसी को नहीं आता कि रिवाजों की रस्सी लगातार पर्यावरण का दम घोंट रही है। पहले जहां कुछ प्रमुख जगहों पर होलिका दहन होता था। इसमें पूरी परंपरा का निर्वहन किया जाता था। उपले के साथ कुछ औषधीय लकड़ियों का भी इस्तेमाल किया जाता था। 

आज हर गांव और टोलों-मोहल्लों में होलिका दहन किया जाता है। आज कल एक गांव में दो से तीन जगह होलिका जलती है। इसमें लकड़ियों के साथ कूड़ा व टायर भी लोग जलाते हैं। इसके लिए हरे पेड़ भी काटे जाते हैं। यह पर्यावरण को नुकसान पहुंचाता है।