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सुप्रीम कोर्ट ने अदालतों के अपने अधिकार क्षेत्र के बाहर जाकर फैसला सुनाने पर नाराजगी जताई है, बदला हाईकोर्ट का फैसला

नई दिल्ली एनसीबी ने इस मामले में दोनों के खिलाफ मामला दर्ज कर दोनों को हिरासत में ले लिया। इसके बाद संदिग्ध पाउडर को जिसे हेरोइन बताया जा रहा था, उसे जांच के लिए भेजा गया। 30 जनवरी 2023 को लेबोरेट्ररी ने अपनी रिपोर्ट में संदिग्ध पाउडर के हेरोइन होने से इनकार कर दिया।

सुप्रीम कोर्ट ने अदालतों के अपने अधिकार क्षेत्र के बाहर जाकर फैसला सुनाने पर नाराजगी जताई है। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय का फैसला पलट दिया, जिसमें नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो को एक व्यक्ति को गलत तरीके से हिरासत में रखने के लिए पांच लाख रुपये मुआवजा देने का आदेश दिया गया था। जस्टिस संजय करोल और जस्टिस मनमोहन की पीठ ने कहा कि मुआवजा देने का आदेश कानूनी अधिकार के बिना लिया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो की याचिका पर सुनवाई करते हुए ये निर्देश दिए। नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी।

क्या है मामला
नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो ने मान सिंह वर्मा और अमन सिंह नामक व्यक्तियों के पास से 1280 ग्राम संदिग्ध पाउडर बरामद किया था। इस संदिग्ध पाउडर को कथित तौर पर हेरोइन बताया गया। एनसीबी ने इस मामले में दोनों के खिलाफ मामला दर्ज कर दोनों को हिरासत में ले लिया। इसके बाद संदिग्ध पाउडर को जिसे हेरोइन बताया जा रहा था, उसे जांच के लिए भेजा गया। 30 जनवरी 2023 को लेबोरेट्ररी ने अपनी रिपोर्ट में संदिग्ध पाउडर के हेरोइन होने से इनकार कर दिया। इसके बाद एनसीबी ने पाउडर को और जांच के लिए चंडीगढ़ स्थित सीएफएसएल लेबोरेट्री भेजा, लेकिन वहां से भी रिपोर्ट निगेटिव आई।

इसके बाद एनसीपी ने क्लोजर रिपोर्ट लगाकर मामला बंद कर दिया और आरोपियों को जेल से रिहा कर दिया। इस बीच एक आरोपी ने जमानत के लिए उच्च न्यायालय में अपील की थी। जब आरोपी के खिलाफ क्लोजर रिपोर्ट दाखिल हुई तो याचिका पर सुनवाई करते हुए उच्च न्यायालय ने कहा कि युवक को गलत तरीके से जेल में रखा गया और जब एक रिपोर्ट में पता चला गया था कि संदिग्ध पाउडर ड्रग नहीं है तो फिर भी युवक को जेल से रिहा नहीं किया गया और सीएफएसएल की रिपोर्ट का इंतजार किया गया। ऐसे में अदालत ने एसीबी को जेल से रिहा किए गए व्यक्ति को पांच लाख रुपये का हर्जाना देने का आदेश दिया।

सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा
इस मामले पर टिप्पणी करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बार बार देखा गया है कि अदालतें अपने अधिकार क्षेत्र के बाहर जाकर आदेश सुनाती हैं। यह मामला भी इसका उदाहरण है। इस मामले में उच्च न्यायालय के समक्ष दायर याचिका पहले ही निष्फल हो गई थी क्योंकि जिला अदालत ने पहले ही प्रतिवादी को रिहा करने का आदेश दिया था। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि स्वतंत्रता पर अनुचित प्रतिबंध और स्थापित प्रक्रियाओं के बिना किसी व्यक्ति को हिरासत में रखना उसके अधिकारों का अपमान है, लेकिन इसके संबंध में कानून उपचार तक ही सीमित हैं।